फाल्गुन माह की अमावस्या के बाद 21 फरवरी 2023 को फाल्गुन शुक्ल पक्ष की शुरुआत हो जाएगी. वैसे तो फाल्गुन का पूरा महीना श्रीकृष्ण की आराधना के लिए अति उत्तम माना जाता है लेकिन फुलैरा दूज के पर्व पर राधा-कृष्ण की पूजा का विशेष महत्व है. फाल्गुन माह के शुक्ल पक्ष की द्वितीया तिथि को फुलेरा दूज का त्योहार मनाया जाता है. इस दिन श्रीकृष्ण राधा और उनकी गोपियों संग फूलों की होली खेलते हैं.
मान्यता है कि इस दिन रंग बिरंगे फूल श्रीकृष्ण को अर्पित करने से वैवाहिक जीवन में प्रेम बढ़ता. सुयोग्य जीवनसाथी की कामना के साथ इस दिन कुंवारी लड़किया व्रत भी रखती है. ब्रजभूमि के कृष्ण मंदिरों फुलेरा दूज का त्योहार बहुत ही धूमधाम से मनाया जाता है. कहते हैं कि फुलेरा दूज पर राधा-कृष्ण से जुड़ी रोचक कथा का श्रवण करने पर दांपत्य जीवन खुशियों से महक उठता है.
फुलेरा दूज की कथा
फुलेरा दूज की पौराणिक कथा के अनुसार एक बार की बात है श्रीकृष्ण अपने कार्य में इतने व्यस्त हो गए कि कई दिनों तक राधा रानी से मिलने बरसाने न जा पाए. राधा जी श्रीकृष्ण के वियोग में व्याकुल हो गईं. उन्हें दुखी देखकर गोपियां भी श्रीकृष्ण से रूठ गईं थी. राधा के उदास होने के कारण मथुरा के वन सूखने लगे और पुष्प मुरझा गए.
ऐसे शुरू हुई फूलों की होली खेलने की परंपरा
जब श्रीकृष्ण को इस बात का ज्ञान हुआ, तो वे राधाजी और गोपियों से मिलने बरसाने गए. कृष्ण को देख राधा रानी प्रफुल्लित हो उठीं और चारों ओर फिर से हरियाली छा गई. राधा जी को छेड़ने के लिए कृष्ण ने खिले हुए फूल तोड़कर उनपर फेंके. जवाब में राधा रानी ने भी ऐसा ही किया. यह नजारा देख वहां मौजूद गोपियां और ग्वाले भी एक दूसरे संग फूलों की होली खेलने लगे. उस दिन फाल्गुन माह के शुक्ल पक्ष की द्वितीया तिथि थी, तभी से इस दिन को फुलेरा दूज का त्योहार मनाया जाने लगा.
फुलेरा दूज का महत्व
फुलेरा दूज के दिन को विवाह और शुभ कार्यो के लिए अबूझ मुहूर्त माना जाता है. कहते हैं इस दिन शादी करने वालों का जीवन प्रेम और सुख से भर जाता है. राधारानी और श्रीकृष्ण सच्चे प्रेम के प्रतीक हैं. फुलेरा दूज पर उनकी पूजा से दांपत्य जीवन और प्रेमी जीवन में रिश्तों में मजबूती आती है, प्रेम और सौहार्द भाव बढ़ता है.