भारत की जेब का सबसे बड़ा दुश्मन बना डॉलर, सस्ता होने नहीं दे रहा पेट्रोल-डीजल!

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नई दिल्ली: मई 2022 से भारत में पेट्रोल और डीजल की कीमत में कोई बदलाव नहीं हुआ है. कच्चे तेल के दाम 80 डॉलर के आसपास घूम रहे हैं. डॉलर इंडेक्स भी 103 लेवल पर है. उसके बाद भी देश में पेट्रोल और डीजल को सस्ता नहीं किया गया है. वास्तव में अमेरिकी डॉलर ही आम लोगों की जेब का सबसे बड़ा दुश्मन बना हुआ है. रुपए के मुकाबले डॉलर का रिकॉर्ड लेवल पर होना ही देश में पेट्रोल और डीजल को सस्ता नहीं होने दे रहा है. जानकारों की मानें जब तक डॉलर के मुकाबले रुपया 80 या उससे नीचे नहीं आएगा, तब तक पेट्रोल और डीजल का सस्ता होना मुमकिन नहीं है. आइए आपको भी बताते हैं कि आखिर मौजूदा समय में डॉलर और रुपए के बीच की इस जंग में दोनों कहां पर खड़े हैं? साथ ही आने वाले दिनों में दोनों की स्थितियां कैसी रह सकती हैं.

नवंबर के महीने में कच्चे तेल की कीमत में काफी गिरावट देखने को मिल चुकी है. पहले बात ब्रेंट क्रूड ऑयल के दाम की करें तो 9 फीसदी की गिरावट देखने को मिल चुकी है. मौजूदा समय में ब्रेंट क्रूड ऑयल की कीमत 81.81 डॉलर प्रति बैरल पर है. वहीं दूसरी ओर अमेरिकी क्रूड ऑयल की कीमत में भी गिरावट देखने को मिली है, जो कि ब्रेंट के मुकाबले कम है. डब्ल्यूटीआई क्रूड ऑयल के दाम नवंबर के महीने में 4.56 फीसदी सस्ता हुआ है. जबकि मौजूदा समय में डब्ल्यूटीआई का लेवल 77.60 डॉलर प्रति बैरल पर है. जानकारों की मानें तो आने वाले दिनों में कच्चे तेल की कीमत में कोई खास बदलाव देखने को नहीं मिलेगा. मुमकिन है कि कच्चे तेल की कीमत थोड़ी और कम हो जाए.

दूसरी ओर डॉलर इंडेक्स में गिरावट देखने को मिल रही है. मंगलवार को भी डॉलर इंडेक्स 0.14 फीसदी की गिरावट के साथ 103.29 के लेवल पर कारोबार कर रहा है. नवंबर के महीने में भी डॉलर इंडेक्स में 3.14 फीसदी की गिरावट देखने को मिल चुकी है. एक नवंबर को डॉलर इंडेक्स का लेवल 106.67 पर था. वास्तव में फेड की मीटिंग के बाद डॉलर इंडेक्स में गिरावट देखने को मिली है. डॉलर इंडेक्स में गिरावट की वजह ब्याज दरों में कोई बदलाव ना करना था. जानकारों की मानें तो एफओएमसी के मिनट्स काफी कुछ तय करेंगे. मुमकिन है कि अगली फेड मीटिंग में ब्याज दरों में इजाफा हो और डॉलर इंडेक्स में तेजी आ जाए और कच्चे तेल की कीमत में और ज्यादा गिरावट देखने को मिल जाए.

कच्चे तेल के दाम और डॉलर इंडेक्स सब सस्ते पेट्रोल और डीजल को सपोर्ट कर रहे हैं. लेकिन रुपए के मुकाबले डॉलर का लेवल पेट्रोल और डीजल सस्ता करने की राह में सबसे बड़ा रोड़ा बना हुआ है. मौजूदा समय में रुपए के मुकाबले डॉलर 83.35 के लेवल पर है. नवंबर के महीने में रुपए के मुकाबले डॉलर भले ही फ्लैट हो, लेकिन रुख अपिश है. नवंबर में रुपए के मुकाबले डॉलर 0.07 फीसदी की ऊपर है. वहीं बात मौजूदा साल की करें तो रुपए के मुकाबले डॉलर में 0.64 फीसदी का इजाफा देखने को मिल चुका है. इसका मतलब है कि पूरे साल डॉलर औसतन रुपए के मुकाबले 81 या 82 के लेवल से ऊपर बना रहा. जिसने पेट्रोल और डीजल के दाम को कम नहीं होने दिया है.

केडिया एडवाइजरी के डायरेक्टर अजय केडिया ने कहा कि पेट्रोल और डीजल के दाम में सबसे बड़ा रोड़ा डॉलर है. जो रुपए के मुकाबले रिकॉर्ड लेवल पर बना हुआ है. जब तक रुपए के मुकाबले डॉलर का लेवल पर 80 या उससे नीचे नहीं आता है. तब तक पेट्रोल और डीजल के दाम कम होना मुमकिन नहीं दिखाई दे रहा है. वहीं जिस तरह के हालात मौजूदा समय में देखने को मिल रहे हैं. साथ ही आने वाले दिनों में जो परिस्थितियां बनी रह सकती हैं, उससे यही लगता है कि डॉलर इंडेक्स फरवरी मार्च तक 85 का लेवल पार कर सकता है.

एचडीएफसी सिक्योरिटीज में कमोडिटी और करेंसी के हेड ने कहा कि दिसंबर के महीने में डॉलर इंडेक्स से लेकर कच्चे तेल की कीमत और रुपए के मुकाबले डॉलर के लेवल में कोई खास बदलाव आने के आसार नहीं है. जनवरी के महीने में काफी कुछ चेंज देखने को मिल सकते हैं. उन्होंने बताया कि जनवरी के महीने में रुपए के मुकाबले डॉलर गिरता है तो 82.60 के लेवल पर पहुंच सकता है. अगर इसमें इजाफा होता है और 84 का लेवल तोड़ता है तो यह 86 के लेवल पर पहुंचकर ही दम लेगा. लेकिन इसकी उम्मीदें कम ही है. जनवरी के महीने में पेट्रोल और डीजल के दाम में गिरावट के आसार ज्यादा हैं.

वहीं दूसरी ओर भारत में पेट्रोल और डीजल की कीमत में कोई बदलाव देखने को नहीं मिला है. देश के महानगरों में आखिरी बार पेट्रोल और डीजल की कीमत में 21 मई के दिन बदलाव देखने को मिला था. उस वक्त देश की वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने पेट्रोल और डीजल की कीमत में टैक्स को कम किया था. उसके बाद कुछ प्रदेशों ने वैट को कम या बढ़ाकर कीमतों को प्रभावित करने का प्रयास किया था. दिलचस्प बात ये है कि जब से देश में इंटरनेशनल मार्केट के हिसाब से पेट्रोल और डीजल की कीमत में रोज बदलाव होने की शुरुआत हुई है, तब से यह पहला मौका है जब पेट्रोलियम कंपनियों ने रिकॉर्ड टाइमलाइन के दौरान कोई बदलाव नहीं किया है.

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