दुनिया प्रलय के और करीब पहुंच गई है। परमाणु वैज्ञानिकों ने दुनिया में तबाही का संकेत देने वाली डूम्सडे क्लॉक में 10 सेकंड कम कर इसके संकेत भी दे दिए हैं। तीन साल में ऐसा पहली बार किया गया है। इससे पहले कयामत का समय रात 12 बजे से सिर्फ 100 सेकंड दूर था। बुलेटिन ऑफ द एटॉमिक साइंटिस्ट्स (बीएएस) ने रूस और यूक्रेन के बीच युद्ध, कोरोना महामारी, जलवायु संकट और जैविक खतरे को इसके लिए जिम्मेदार माना है। वैज्ञानिका का मानना है कि डूम्सडे क्लॉक कभी भी तबाही के इतनी ज्यादा करीब नहीं पहुंची है। बीएएस की इस घड़ी में आधी रात 12 बजने का मतलब है कि दुनिया समाप्त हो जाएगी और आधी रात होने में जितना कम समय रहेगा दुनिया में परमाणु युद्ध होने का खतरा उतना ज्यादा होगा।
कयामत का वक्त बताने वाली इस घड़ी में समय का निर्धारण बुलेटिन ऑफ द एटॉमिक साइंटिस्ट संगठन करता है। डूम्सडे क्लॉक एक सांकेतिक घड़ी है, जो महामारी, परमाणु और जलवायु संकट के कारण वैश्विक तबाही की आशंका को दर्शाती है। इसके माध्यम से बताया गया कि दुनिया अपने अंत के कितने करीब है। 2023 में डूम्सडे क्लॉक के वक्त को आधी रात में 90 सेकंट पर निर्धारित कर दिया।
इस घड़ी में आधी रात यानी रात के 12 बजे विनाश के सैद्धांतिक बिंदु को चिह्नित करते हैं। किसी विशेष समय पर वैज्ञानिकों के खतरों को भांपने के आधार पर घड़ी की सुइयां एक-दूसरे के करीब या दूर चली जाती हैं।
नया समय एक ऐसी दुनिया को दर्शाता है, जिसमें यूक्रेन पर रूस के आक्रमण से परमाणु युद्ध की आशंकाओं के बादल फिर से मंडराने लगे हैं। बुलेटिन ऑफ एटॉमिक साइंटिस्ट्स के अध्यक्ष और मुख्य कार्यकारी अधिकारी राहेल ब्रोंसन ने मंगलवार को कहा कि परमाणु हथियारों का उपयोग करने के लिए रूस की परोक्ष धमकियां विश्व को याद दिलाती हैं कि दुर्घटना, इरादे या गलत अनुमान से संघर्ष का बढ़ना एक भयानक जोखिम है। आशंका है कि संघर्ष हर किसी के नियंत्रण से बाहर हो सकता है। उन्होंने कहा कि ध्यान आकर्षित करने के लिए बुलेटिन की इस घोषणा को पहली बार अंग्रेजी से यूक्रेनी और रूसी भाषा में अनुवादित किया जाएगा।
क्या है विनाश की ‘घड़ी’?
इस घड़ी को 1947 में अल्बर्ट आइंस्टीन सहित परमाणु वैज्ञानिकों के एक समूह ने बनाया। उन्होंने द्वितीय विश्व युद्ध के दौरान दुनिया के पहले परमाणु हथियार विकसित करने के लिए मैनहट्टन प्रोजेक्ट पर काम किया था। यह घड़ी एक तरह का सांकेतिक प्रतीक है, जो दिखाती है कि दुनिया विनाश के कितने करीब है। इसमें महाविनाश या कयामत का समय रात के 12 बजे रखा गया। यह इस बात का प्रतीक है कि घड़ी की सुई के रात के 12 बजे पर आने का मतलब विनाश का दिन है। वैज्ञानिक दुनियाभर में तबाही के खतरों के मद्देनजर घड़ी की सुई को आगे-पीछे करते हैं। 75 से अधिक साल पहले इस घड़ी में आधी रात में सात मिनट का समय निर्धारित किया था। घड़ी 1991 में कयामत के दिन से सबसे दूर थी, क्योंकि शीत युद्ध खत्म हो गया। संयुक्त राज्य अमेरिका व सोवियत संघ ने एक संधि पर हस्ताक्षर किए और दोनों देशों के परमाणु हथियारों के शस्त्रागार को कम कर दिया गया।
कहां स्थित है संगठन?
बुलेटिन ऑफ द एटॉमिक साइंटिस्ट्स (बीएएस) शिकागो में स्थित एक गैर लाभकारी संगठन है और ग्रह और मानवता के लिए भयावह जोखिमों के बारे में जानकारी के आधार पर घड़ी के समय को सालाना निर्धारित करता है। संगठन के बोर्ड में वैज्ञानिक, परमाणु तकनीक व जलवायु विशेषज्ञों के साथ 13 नोबेल पुरस्कार विजेता शामिल हैं। यह बोर्ड विश्व की घटनाओं पर चर्चा कर निर्धारित करता है कि हर साल घड़ी की सुई कहां रखी जाए। घड़ी से पता चलने वाले विनाशकारी खतरों में राजनीति, हथियार, प्रौद्योगिकी, जलवायु परिवर्तन और महामारी शामिल है। बोर्ड ने कहा कि यूक्रेन में युद्ध ने इस जोखिम को बढ़ा दिया और अगर संघर्ष जारी रहा तो जैविक हथियारों को तैनात किया जा सकता है। ब्रोंसन ने कहा कि यूक्रेन में जैव-हथियारों की प्रयोगशालाओं के बारे में गलत सूचनाओं का लगातार मिलना चिंता में डालता है कि रूस खुद ऐसे हथियारों को तैनात करने के बारे में सोच सकता है।
कई अन्य खतरे भी मंडरा रहे
बुलेटिन बोर्ड के सदस्य और स्टॉकहोम पर्यावरण संस्थान के वैज्ञानिक सिवन कर्था ने कहा कि युद्ध के कारण प्राकृतिक गैस की कीमतें नई ऊंचाइयों पर पहुंच गईं। इसने कंपनियों को रूस के बाहर प्राकृतिक गैस के स्रोत विकसित करने के लिए प्रेरित किया और बिजली संयंत्रों में वैकल्पिक ऊर्जा स्रोत के रूप में कोयले का इस्तेमाल होने लगा। कार्था ने 2022 में पाकिस्तान में विनाशकारी बाढ़ की ओर इशारा करते हुए कहा कि जीवाश्म ईंधन को जलाने से वैश्विक कार्बन डाइऑक्साइड उत्सर्जन 2021 में कोरोना के कारण आर्थिक गिरावट से सर्वकालिक उच्च स्तर पर लौटने के बाद 2022 में बढ़ना जारी रहा और रिकॉर्ड ऊंचाई पर पहुंच गया। उन्होंने कहा कि उत्सर्जन अब भी बढ़ रहा है, मौसम की चरम सीमा जारी है और स्पष्ट रूप से जलवायु परिवर्तन के लिए जिम्मेदार है।