नई दिल्ली : दुनियाभर में 1.20 करोड़ लोग कॉर्निया में खराबी के कारण अंधेपन का शिकार हो चुके हैं. इस बीमारी में आंखों की परत पर नुकसान होता है. कॉर्निया ट्रांसप्लांट से ही आंखों की इस बीमारी का इलाज किया जाता है. हालांकि ट्रांसप्लांट के लिए कॉर्निया का दान करने वालों की संख्या काफी कम है. इस वजह से अंधेपन का शिकार लोगों को समय पर कॉर्निया नहीं मिल पाता है. हालांकि अब एक नई तकनीक का विकास किया गया है.
इसके लिए बायो-इंजीनियर्ड कॉर्निया को तैयार किया जा रहा है. इसको लेकर नेचर बायोटेक्नोलॉजी में रिसर्च भी पब्लिश की गई है. इन कॉर्निया को कोलेजन प्रोटीन से तैयार किया गया है. इसको लेकर ईरान और भारत में मेडिकल प्रोफेशनल्स ने ट्रायल भी किया है. इस ट्रायल में केरेटोकोनस की समस्या (कमजोर और खराब कॉर्निया) से जूझ रहे 20 लोगों के समूह ने भाग लिया था. इस ट्रायल में पता चला कि नई तकनीक से कॉर्निया इम्पलांट करने से 20 में से 14 लोगों की आंखों की रोशनी वापिस आ गई.
डॉ. बताती हैं कि अगर आंखों में इंफेक्शन रहता है और हर्पीस की बीमारी हो जाती है तो इससे कॉर्निया डैमेज होने का रिस्क रहता है. किसी चोट या आंखों की अन्य गंभीर बीमारी के कारण भी कॉर्निया खराब हो सकता है. अगर एक बार कॉर्निया पूरी तरह डैमेज हो जाए तो व्यक्ति अंधेपन का शिकार हो जाता है. ऐसे मामलों में केवल कॉर्निया ट्रांसप्लांट से ही रोशनी वापिस लाई जा सकती है.
लेकिन कई मामलों में मरीज को कॉर्निया समय पर नहीं मिल पाता है. इसका बड़ा कारण यह है कि लोगों में नेत्रदान को लेकर जागरूकता की कमी है. लोगों को लगता है कि आंखों के ट्रांसप्लांट में पूरी आंख ही निकाल दी जाती है, लेकिन ऐसा नहीं होता. इसमें केवल डोनर की आंख से कॉर्निया ही निकाला जाता है और मरीज में ट्रांसप्लांट किया जाता है. ऐसे में जरूरी है कि लोगों को इस बारे में जानकारी होनी चाहिए.
डॉ. कहती हैं कि आंखों की देखभाल के लिए सबसे जरूरी है कि आंखों की किसी परेशानी को हल्के में न लें. अगर आंखों से पानी आना, आंखों में दर्द, खुजली, आंखों का लाल होना जैसी परेशानी हो रही है तो तुरंत डॉक्टर से सलाह लेनी चाहिए. इस मामले में लापरवाही न करें.