कानूनी दांव-पेंच के बावजूद भारत नहीं आ पाते आर्थिक भगोड़े, प्रत्यर्पण के विरुद्ध लड़ाई हार चुके है माल्या-नीरव

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नई दिल्ली : देश को 13 हजार करोड़ रुपये का चुना लगा कर एंटीगुआ में छिपे आर्थिक भगोड़े मेहुल चोकसी के मामले ने प्रत्यर्पण को लेकर भारतीय एजेंसियों की सीमाओं को फिर से सामने ला दिया है। मेहुल चोकसी के विरुद्ध सीबीआइ एक बार फिर अपनी कोशिश नए सिरे से शुरू करने जा रही है।
हालांकि, ललित मोदी, नीरव मोदी और विजय माल्या जैसे आर्थिक अपराधियों को स्वदेश लाने की कोशिशें फिलहाल सफल होती नहीं दिख रहीं। नीरव मोदी का मामला सबसे अनोखा है जो लंदन में अपने प्रत्यर्पण को रोकने की सारी कानूनी लड़ाइयां हार चुका है फिर भी उसे भारत लाने की वहां से हरी झंडी नहीं मिल पा रही है।

विदेश मंत्रालय के सूत्रों ने बताया है कि भारत में आर्थिक अपराध करके दूसरे देशों में रहने वाले हर अपराधी को स्वदेश लाने की प्रक्रिया जारी है। खास तौर पर लंदन में शरण लिए आर्थिक अपराधियों के प्रत्यर्पण का मुद्दा दोनों देशों के बीच होने वाली तकरीबन हर उच्चस्तरीय बैठक में उठाया जाता है। ब्रिटेन के विदेश मंत्रालय और गृह मंत्रालय की तरफ से इस बारे में भारत की मांग पर सकारात्मक तरीके से आगे बढ़ने का आश्वासन भी मिला है। एक हद तक वहां भारतीय एजेंसियों को कई बार सहयोग भी मिला है।

भारत व ब्रिटेन में अपराधियों के प्रत्यर्पण को लेकर वर्ष 1992 में समझौता हुआ था। इसके बावजूद ब्रिटेन की प्रत्यर्पण की पूरी व्यवस्था बहुत ही उलझी हुई है। आने वाले समय में भी कूटनीतिक स्तर पर इस मुद्दे पर ब्रिटेन से बात होगी। इस क्रम में दिवालिया विमानन कंपनी किंगफिशर एयरलाइन के पूर्व चेयरमैन व प्रसिद्ध उद्योगपति विजय माल्या का मामला सबसे प्रमुख है।

माल्या की कंपनी पर देश के बैंकों का नौ हजार करोड़ रुपये का बकाया है। भारी वित्तीय अनियमितताओं के आरोपित माल्या वर्ष 2016 से ही ब्रिटेन में छिपा हुआ है। उसे स्वदेश लाने की लड़ाई में भारतीय एजेंसियों ने ब्रिटेन की हर अदालत में जीत हासिल की है। ब्रिटिश सुप्रीम कोर्ट ने वर्ष 2019 में उसके उस आवेदन को रद कर दिया था, जिसे उसने भारत प्रत्यर्पण करने के विरुद्ध दायर किया था।

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