नई दिल्ली: केंद्र सरकार ने पहली बार ‘मूनलाइटिंग’ पर अपना रुख साफ किया है. सरकार ने मौजूदा इंडस्ट्रियल कानूनों का हवाला देते हुए कहा कि वर्कर्स को किसी भी एडिशनल काम को नहीं करना चाहिए, जिससे उनके इंप्लॉयर्स या कंपनी के हितों पर प्रतिकूल प्रभाव पड़े. दरअसल, Moonlighting का मतलब है कि कोई कर्मचारी किसी कंपनी में फुल टाइम काम करने के साथ-साथ बिना जानकारी के दूसरी कंपनी में भी काम कर रहा है. हाल के दिनों में मूनलाइटिंग की वजह से कई सारी आईटी कंपनियों ने अपने यहां काम करने वाले कर्मचारियों को नौकरी से निकाला है.
दरअसल, बीजेपी सांसद सुमलता अंबरीश का ने संसद में सवाल किया कि क्या सरकार मूनलाइटिंग को किसी कंपनी द्वारा अपने कर्मचारियों को निकालने की सही वजह मानती है. और क्या इसने मूनलाइटिंग की वजह से होने वाली छंटनी में इजाफा देखा है. सांसद के इस सवाल पर ही सरकार की तरफ से मूनलाइटिंग को लेकर जवाब दिया गया.
जूनियर श्रम और रोजगार मंत्री रामेश्वर तेली ने कहा, ‘औद्योगिक रोजगार (स्थायी आदेश) अधिनियम 1946 के मुताबिक, एक कर्मचारी किसी भी समय उस कंपनी के हित के खिलाफ काम नहीं करेगा जिसमें वह काम कर रहा है. वह कंपनी में अपनी नौकरी के अलावा किसी दूरी जगह काम नहीं करेगा, जिसकी वजह से कंपनी के हितों पर प्रतिकूल प्रभाव पड़े.’ हालांकि, उन्होंने स्पष्ट तौर पर ये नहीं बताया कि क्या सरकार मूनलाइटिंग की वजह से होने वाली छंटनी का समर्थन करती है या नहीं.
मंत्री ने कहा, छंटनी सहित रोजगार और नौकरी से निकाला जाना दोनों ही कंपनियों में होने वाली एक नियमित घटना है. उन्होंने कहा कि सरकार के पास कोई विशेष जानकारी नहीं है कि मूनलाइटिंग की वजह से छंटनी हो रही है. सरकार ने भारत में मूनलाइटिंग की घटना पर कोई स्टडी नहीं की है. मूनलाइटिंग के ज्यादातर मामले बड़े पैमाने पर इंफोर्मेशन टेक्नोलॉजी सेक्टर की कंपनियों में रिपोर्ट किए गए हैं. ये सेक्टर सर्विस सेक्टर के तहत आता है. यहां गौर करने वाली बात ये है कि भारत में मौजूदा श्रम कानून फैक्ट्री वर्कर्स के दो जगह काम करने पर रोक लगाता है. लेकिन आईटी कंपनियों में काम करने वाले कर्मचारियों के लिए मूनलाइटिंग को लेकर कोई भी कानूनी ढांचा नहीं है.