अफगानिस्तान : अफगानिस्तान (Afghanistan) की एक पूर्व सांसद ने सोमवार को दुनिया से अपील की कि तालिबान को मानवाधिकारों पर उसकी कार्रवाई के कारण ‘लिंग के आधार पर भेदभाव’ (Gender Based Discrimination) करने वाला शासन करार दिया जाए। वर्ष 2010 में अफगानिस्तान की सबसे युवा सांसद बनने वाली महिला मानवाधिकार कार्यकर्ता नहीद फाहिद (Naheed Fahid) ने कहा कि भेदभाव करने वाला शासन होने के ठप्पे ने दक्षिण अफ्रीका में बदलाव लाने में बड़ी भूमिका निभाई थी और यह अफगानिस्तान में बदलाव लाने के लिए भी अहम हो सकता है।
फाहिद ने संयुक्त राष्ट्र के एक संवाददाता सम्मेलन में कहा कि महिलाओं की गतिविधियों पर रोक, लड़कियों को माध्यमिक स्तर पर स्कूली शिक्षा की अनुमति नहीं देने और उनके नौकरी करने पर प्रतिबंध के परिणामस्वरूप ‘मुझे अफगान महिलाओं की ऐसी और कहानियां सुनाई दे रही हैं, जब वे असहाय और निराश होने के कारण आत्महत्या कर रही हैं।’ उन्होंने कहा, ‘महिलाओं और लड़कियों का मौत का रास्ता चुनना इस बात का संकेत है कि अफगानिस्तान में उनके लिए जीवन कितना कठिन है। वे तालिबान के शासन में रहने के बजाय मौत को गले लगाना बेहतर विकल्प मान रही हैं।’
फाहिद ने कहा कि वह तालिबान को ‘लैंगिक आधार पर भेदभाव’ करने वाला शासन करार देने वाली पहली व्यक्ति नहीं हैं और ‘अंतरराष्ट्रीय समुदाय व निर्णय लेने वालों की काफी हद तक निष्क्रियता के कारण हमारे लिए इस बात को बार-बार दोहराना महत्वपूर्ण हो गया है’, ताकि अफगानिस्तान में उन महिलाओं की आवाज को भुला न दिया जाए, जो अपनी बात नहीं रख सकतीं। उन्होंने आशा व्यक्त की कि संयुक्त राष्ट्र महासभा की वार्षिक सभा के लिए अगले सप्ताह होने वाली बैठक में विश्व के नेता अफगानिस्तान से बाहर रह रही अफगान महिलाओं की बात सुनने और उनसे मिलने का समय निकालेंगे।
फाहिद ने कहा कि उम्मीद है कि विश्व के नेता इस बात को समझेंगे कि अफगानिस्तान में ‘लिंग के आधार पर भेदभाव’ हो रहा है, क्योंकि तालिबान महिलाओं का ‘इस्तेमाल और दुरुपयोग कर रहा है’, उन्हें समाज में दोयम दर्जा दे रहा है और उनके मानवाधिकारों को छीन रहा है।