नई दिल्ली (New Delhi) । 10 साल बाद लोकसभा (Lok Sabha) को विपक्ष का नेता (Leader of Opposition) मिलने जा रहा है. राहुल गांधी (Rahul Gandhi) लोकसभा में विपक्ष के नेता का पद संभालेंगे. मंगलवार को कांग्रेस अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खड़गे (Congress President Mallikarjun Kharge) के आवास पर INDIA ब्लॉक के फ्लोर नेताओं की बैठक में ये फैसला लिया गया. हालांकि इससे पहले भी लोकसभा में नेता प्रतिपक्ष का पद खाली रह चुका है. 1980, 1989 और 2014 से लेकर 2024 तक ये पद खाली रहा.
नियमों के मुताबिक नेता प्रतिपक्ष बनने के लिए किसी भी विपक्षी पार्टी के पास लोकसभा की कुल संख्या का 10 फीसदी यानी 54 सांसद होना जरूरी है. लेकिन 2014 और 2019 के लोकसभा चुनावों में किसी भी विपक्षी पार्टी के पास 54 सांसद नहीं थे. आखिरी बार दिवंगत बीजेपी नेता सुषमा स्वराज 2009 से 2014 तक लोकसभा में नेता प्रतिपक्ष थीं. लेकिन इस बार कांग्रेस ने INDIA गठबंधन के तहत चुनाव लड़कर 99 सीटें जीती हैं.
इधर विपक्ष का नेता बनने के साथ ही राहुल गांधी को कैबिनेट मंत्री का दर्जा प्राप्त होगा. इससे प्रोटोकॉल लिस्ट में उनकी स्थिति तो बढ़ेगी ही, साथ ही वे भविष्य में विपक्ष के प्रधानमंत्री पद के स्वाभाविक दावेदार भी हो सकते हैं. यह पहली बार है जब राहुल गांधी अपने ढाई दशक से अधिक लंबे राजनीतिक करियर में कोई संवैधानिक पद संभालेंगे.लोकसभा के विपक्ष के नेता के रूप में अब राहुल गांधी लोकपाल, सीबीआई प्रमुख, मुख्य चुनाव आयुक्त और अन्य चुनाव आयुक्तों की महत्वपूर्ण नियुक्तियों के अलावा केंद्रीय सतर्कता आयोग, केंद्रीय सूचना आयोग और एनएचआरसी प्रमुख के चयन पर महत्वपूर्ण पैनल के सदस्य भी होंगे. प्रधानमंत्री ऐसे सभी पैनल के प्रमुख हैं.
राजीव गांधी, सोनिया के बाद अब राहुल होंगे विपक्ष के नेता
इसी के साथ यह तीसरा मौका होगा जब गांधी परिवार का कोई सदस्य लोकसभा में विपक्ष के नेता की भूमिका में होगा. इससे पहले सोनिया गांधी और राजीव गांधी भी लोकसभा में नेता प्रतिपक्ष की जिम्मेदारी संभाल चुके हैं. सोनिया गांधी ने 13 अक्टूबर 1999 से 06 फरवरी 2004 तक नेता प्रतिपक्ष को जिम्मेदारी संभाली है. इसके अलावा राजीव गांधी भी 18 दिसंबर 1989 से 24 दिसंबर 1990 तक नेता विपक्ष रहे.
पांच बार के सांसद हैं राहुल गांधी
पिछले हफ्ते 54 साल के हुए राहुल गांधी नेहरू-गांधी परिवार के वंशज हैं. वह पांच बार के सांसद हैं और वर्तमान में लोकसभा में रायबरेली निर्वाचन क्षेत्र का प्रतिनिधित्व करते हैं, जो पहले उनकी मां सोनिया गांधी के पास था. इस बार वे दो निर्वाचन क्षेत्रों – केरल के वायनाड और उत्तर प्रदेश के रायबरेली से जीते, लेकिन उन्होंने वायनाड से इस्तीफा दे दिया, जहां से अब उनकी बहन प्रियंका गांधी वाड्रा चुनाव लड़ेंगी. राहुल गांधी ने 2004 में राजनीति में प्रवेश किया जब उन्होंने उत्तर प्रदेश के अमेठी से पहली बार जीत हासिल की.
अब तक ये संभाल चुके नेता प्रतिपक्ष का पद
-सुषमा स्वराज (21 दिसंबर 2009 से 18 मई 2014 तक)
-लाल कृष्ण आडवाणी (22 मई 2009 से 21 दिसंबर 2009 तक, 22 मई 2004 से 18 मई 2009 तक, 21 जून 1991 से 25 जुलाई 1993 तक और 24 दिसंबर 1990 से 13 मार्च 1991 तक)
-सोनिया गांधी (13 अक्टूबर 1999 से 06 फरवरी 2004 तक)
-शरद चंद्र गोविंदराव पवार (19 मार्च 1998 से 26 अप्रैल 1999 तक)
-अटल बिहारी वाजपेयी (01 जून 1997 से 04 दिसंबर 1997 तक और 26 जुलाई 1993 से 10 मई 1996 तक)
-गंगा देवी (16 मई 1996 से 01 जून 1996 तक)
-राजीव गांधी (18 दिसंबर 1989 से 24 दिसंबर 1990 तक)
-जगजीवनराव गणपतराव कदम (28 जुलाई 1979 से 22 अगस्त 1979 तक)
-यशवंतराव बलवंतराव चव्हाण (10 जुलाई 1979 से 28 जुलाई 1979 तक और 23 मार्च 1977 से 12 अप्रैल 1978 तक)
-सी.एम. स्टीफन (12 अप्रैल 1978 से 10 जुलाई 1979 तक)
-डॉ. राम सुभग सिंह (17 दिसंबर 1969 से 27 दिसंबर 1970 तक)
नेता प्रतिपक्ष को मिलती हैं ये सुविधाएं
नेता प्रतिपक्ष होने के बाद Leaders Of Opposition In Parliament Act 1977 के अनुसार नेता प्रतिपक्ष के अधिकार और सुविधाएं ठीक वैसे ही होते हैं, जो एक कैबिनेट मंत्री के होते हैं. अब राहुल गांधी को नेता प्रतिपक्ष होने के नाते कैबिनेट मंत्री की तरह सरकारी सचिवालय में एक दफ्तर मिलेगा. कैबिनेट मंत्री की रैंक के अनुसार उच्च स्तर की सुरक्षा मिलेगी. और उन्हें मासिक वेतन और दूसरे भत्तों के लिए 3 लाख 30 हज़ार रुपये मिलेंगे, जो एक सांसद के वेतन से कहीं ज्यादा होंगे. एक सांसद को वेतन और दूसरे भत्ते मिलाकर हर महीने लगभग सवा दो लाख रुपये मिलते हैं.
कब अस्तित्व में आया नेता प्रतिपक्ष का पद?
जानकारी के लिए बता दें कि 1969 में कांग्रेस विभाजन के बाद नेता प्रतिपक्ष पद अस्तित्व में आया. तब कांग्रेस (ओ) के राम सुभग सिंह ने इस पद के लिए दावा किया था. इसके बाद संसद के 1977 के एक अधिनियम द्वारा नेता प्रतिपक्ष पद को वैधानिक दर्जा दिया गया. इसमें कहा गया था कि एक विपक्षी दल को नेता प्रतिपक्ष पद के लिए विशेषाधिकार और वेतन का दावा करने के लिए सदन के कम से कम दसवें हिस्से पर अधिकार होना चाहिए. यानी कुल सांसद संख्या के 10 प्रतिशत सांसद होने चाहिए.