नई दिल्ली : राष्ट्रीय बाल अधिकार संरक्षण आयोग (एनसीपीसीआर) ने सभी राज्यों के मुख्य सचिवों को उन मदरसों की पहचान करने के लिए नोटिस जारी किया है, जिनमें गैर-मुस्लिम छात्र शामिल हो रहे हैं। एनसीपीसीआर प्रमुख प्रियांक कानूनगो ने शुक्रवार को मीडिया से बात करते हुए कहा कि सरकार द्वारा फंडेड या मान्यता प्राप्त मदरसों में गैर-मुस्लिम छात्रों के भाग लेने के बारे में विभिन्न जगहों से शिकायतें मिली हैं। इस संबंध में सभी राज्यों के मुख्य सचिवों को ऐसे मदरसों की पहचान करने को कहा गया है। साथ ही गैर-मुस्लिम छात्रों को इन मदरसों से स्कूलों में भेजने को लेकर नोटिस जारी किया गया है।
प्रियांक ने कहा कि उत्तर प्रदेश मदरसा बोर्ड ने एक आपत्तिजनक बयान दिया था कि वह मदरसों में गैर-मुस्लिम छात्रों को शामिल करना जारी रखेगा। इसलिए, विशेष सचिव अल्पसंख्यक को इसके बारे में पत्र लिखा गया है। जिसमें उन्हें बताया गया है कि गैर-मुस्लिम छात्रों को इस्लामी शिक्षा देना अनुच्छेद 28 (3) का उल्लंघन है और उनसे तीन दिनों के भीतर जवाब मांगा गया है।
मदरसे, मुख्य रूप से देश में बच्चों को धार्मिक शिक्षा देने के लिए जिम्मेदार हैं। वे तीन प्रकार के होते हैं, जिनमें “मान्यता प्राप्त मदरसे”, “गैर मान्यता प्राप्त मदरसे” और “अनमैप्ड मदरसे” शामिल हैं। उत्तर प्रदेश मदरसा शिक्षा परिषद के अध्यक्ष इफ्तिखार अहमद जावेद ने 7 जनवरी को एनसीपीसीआर से उनके पत्र पर पुनर्विचार करने का आग्रह किया। इसके साथ ही उन्होंने राज्यों व केंद्र शासित प्रदेशों में गैर-मुस्लिम बच्चों को स्वीकार करने वाले मान्यता प्राप्त मदरसों का निरीक्षण करने का भी अनुरोध किया। उन्होंने कहा कि गैर-हिंदू भी संस्कृत स्कूलों में जाते हैं।
इफ्तिखार ने कहा, “बाल संरक्षण आयोग का पत्र संज्ञान में आया है। मैं कहना चाहता हूं कि एनसीईआरटी (NCERT) पाठ्यक्रम के तहत बच्चों को आधुनिक शिक्षा मिल रही है और मदरसों में केवल धार्मिक शिक्षा नहीं दी जा रही है। मिशनरी स्कूलों में भी हर धर्म के बच्चे पढ़ रहे हैं। मैं खुद बनारस हिंदू विश्वविद्यालय (बीएचयू) में पढ़ा हूं, एनसीपीसीआर को उनके पत्र पर पुनर्विचार करना चाहिए।”
इससे पहले दिसंबर में, राष्ट्रीय बाल अधिकार संरक्षण आयोग ने इस संबंध में सभी राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों के मुख्य सचिवों को पत्र लिखा था। उन्हें गैर-मुस्लिम बच्चों को शामिल करने वाले सभी मान्यता प्राप्त मदरसों की विस्तृत जांच करने का निर्देश दिया था। आयोग ने अपने पत्र में कहा था कि यह भारत के संविधान के अनुच्छेद 28 (3) का स्पष्ट उल्लंघन है, जो माता-पिता की सहमति के बिना बच्चों को किसी भी धार्मिक निर्देश में भाग लेने के लिए बाध्य करने से रोकता है। वहीं, राज्यों और केंद्रशासित प्रदेशों द्वारा की गई कार्रवाई रिपोर्ट को 8 दिसंबर, 2022 से 30 दिनों के भीतर आयोग के साथ साझा किया जाना था।