नई दिल्ली: रूसी तेल ने जी7 के 60 डॉलर के प्राइस कैप को तोड़ दिया है. जिसके बाद भारत को मिलने वाले सस्ते तेल की संभावनाएं कम हो गई हैं. खास बात तो ये है किे मौजूदा समय में इंडियन बाकेस्ट में रूसी तेल का वॉल्यूम 40 फीसदी से ज्यादा बढ़ गया है, ऐसे में आने वाले दिनों में यह भारत के लिए सिरदर्द भी बन सकता है. इस बात की आहट पेरिस तक पहुंच गई हैं.
पेरिस बेस्ड इंटरनेशनल एनर्जी एजेंसी में ऑयल मार्केट डिविजन के चीफ टोरिल बोसोनी इस बात पर जोर देती हैं कि जहां भारत रूसी तेल पर निर्भर है, वहीं रूस भी भारतीय रिफाइनरों पर बहुत अधिक निर्भर है. यदि रूसी तेल वास्तव में भारतीय रिफाइनरों के लिए महत्वहीन हो जाता है तो खाड़ी देश एक बार फिर से तेल के खेल में उतरकर भारत के लिए सबसे बड़े सप्लायर बन सकते हैं.
एक इंटरव्यू में टोरिल बोसोनी ने कहा कि इस वर्ष अब तक, ओपेक (पेट्रोलियम निर्यातक देशों का संगठन) देशों द्वारा प्रोडक्शन में कई कटौती के बावजूद ऑयल मार्केट बैलेंस्ड रहा है. पिछले अक्टूबर से जब पहली बार कटौती की गई थी, हमने दूसरे प्रोड्यूसर्स से सप्लाई में इजाफा देखा है. यूएस, ईरान और कई दूसरे प्रोड्यूसर्स की ओर से प्रोडक्शन में तेजी देखने को मिली है. इसी वजह से ओपेक+ देशों द्वारा प्रतिदिन 2 मिलियन बैरल की कटौती की भरपाई कर दी गई है. उदाहरण के लिए, जून में, पिछले अक्टूबर की तुलना में, ऑयल प्रोडक्शन लगभग समान था.
उन्होंने कहा कि अब, हम देख रहे हैं कि इस महीने एक्स्ट्रा वॉलेंटरी प्रोडक्शन कट अप्लाई हो रहा है, जिसका नेतृत्व मुख्य रूप से सऊदी अरब कर रहा है, लेकिन रूस ने भी कहा है कि वह निर्यात कम करेगा. यह प्रोडक्शन ऐसे समय में हो रहा है जब हम आमतौर पर सीजनली डिमांड में इजाफा होता है. बोसानी ने इंटरव्यू में कहा कि हम अभी भी मांग में वृद्धि देख रहे हैं. इसका कारण चीन और ग्लोबल एविएशन के खुलने के साथ महामारी से उबर चुके हैं. उन्होंने कहा कि आईईए दूसरे सोर्स से सप्लाई बढ़ने की सीमित संभावना देखते हैं. इसलिए, हमें लगता है कि बाजार में काफी सख्ती आने वाली है, जिसका जाहिर तौर पर कीमतों पर असर पड़ेगा. अब, वॉलेंटरी प्रोडक्शन कट है और एक महत्वपूर्ण रूप से टाइट मार्केट से बचने के लिए मांग के साथ सप्लार्अ को बैलेंस करने का सवाल है.
मौजूदा समय में भारत के तेल इंपोर्ट रूसी कच्चे तेल की हिस्सेदारी अब 40 फीसदी से अधिक है. अगर रूसी तेल की ओर से भारत को सप्लाई कम की जाती है तो ऐसे में भारत के लिए कौन सा दूसरा ऑप्शन हो सकता है. इसका जवाब देते हुए बोसानी कहते हैं कि भारत के लिए दूसरा विकल्प खाड़ी देश हो सकते हैं. उन्होंने हाल ही में प्रोडक्शन में कटौती की है, इसलिए डिमांड होने पर उनके पास उत्पादन बढ़ाने की क्षमता है. इसलिए, यदि हम अपेक्षा से अधिक रूसी सप्लाई खोते हैं, तो अन्य प्रमुख उत्पादकों के पास उत्पादन में कुछ कटौती को कम करने का ऑप्शन होगा.
उन्होंने एक बात याद रखने को कि भारत और चीन संयुक्त रूप से रूसी कच्चे तेल का 80 फीसदी हिस्सा लेते हैं और इसे लेने वाले बहुत कम अन्य देश हैं. इसलिए, मैं कहूंगा कि जहां भारत कच्चे तेल के लिए रूस पर निर्भर हो सकता है, वहीं रूस अपने बैरल रखने के लिए भारत और चीन पर बहुत अधिक निर्भर है. यह देखना बाकी है कि रूस इस स्थिति में क्या करने की योजना बनाता है. अगर कोई और खरीदने को तैयार नहीं है तो रूस कहां बेच सकता है?