नए संसद भवन में स्थापित किया जाएगा ऐतिहासिक ‘सेंगोल’, किसने बनाया इसे? जानें इसका महत्व और इतिहास

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नई दिल्ली. नए संसद भवन में ब्रिटिश हुकूमत द्वारा भारत को सत्ता हस्तांतरित करने के प्रतीक स्वरूप प्रथम प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू को सौंपे गए पवित्र ‘राजदंड’ (सेंगोल) को स्थापित किया जाएगा। 28 मई को नए संसद भवन के उद्घाटन समारोह के दौरान प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी द्वारा ‘सेंगोल’ को स्थापित किया जाएगा।

कब हुआ था ‘सेंगोल’ का इस्तेमाल
देश के पहले प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू ने अंग्रेजों से सत्ता के हस्तांतरण के प्रतीक के तौर पर ‘सेंगोल’ प्राप्त किया था। ‘सेंगोल’ का इस्तेमाल 14 अगस्त, 1947 को अंग्रेजों से भारतीय हाथों में सत्ता हस्तांतरित करने के लिए किया गया था और इसे तत्कालीन प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू ने राजेंद्र प्रसाद और कई अन्य लोगों की उपस्थिति में स्वीकार किया था। राजेंद्र प्रसाद बाद में देश के पहले राष्ट्रपति बने थे।

‘सेंगोल’ का अर्थ?
‘सेंगोल’ शब्द तमिल शब्द “सेम्मई” से लिया गया है, जिसका अर्थ है “नीतिपरायणता”। ‘न्याय’ के प्रेक्षक के रूप में, अपनी अटल दृष्टि के साथ देखते हुए हाथ से उत्कीर्ण नंदी ‘सेंगोल’ के शीर्ष पर विराजमान हैं। ‘सेंगोल’ को ग्रहण करने वाले व्यक्ति को न्यायपूर्ण और निष्पक्ष रूप से शासन करने का ‘आदेश’ (तमिल में ‘आणई’) होता है। उन्होंने कहा, “सेंगोल आज भी उसी भावना का प्रतिनिधित्व करता है जो जवाहरलाल नेहरू ने 14 अगस्त 1947 में महसूस की थी।”

‘सेंगोल’ को किसने बनाया?
ट्विटर पर एक वीडियो पोस्ट करते हुए एएनआई ने बताया कि चेन्नई के वुम्मिदी बंगारू ज्वेलर्स के पास अभी भी ऐतिहासिक राजदंड ‘सेंगोल’ की प्रतिकृति रखी गई है। ‘सेंगोल’ 1947 में तमिलनाडु के एक मठ, थिरुवदुथुराई अथीनम के द्रष्टा की देखरेख में मद्रास में 1947 में एक जौहरी, वुम्मिदी बंगारू चेट्टी द्वारा बनाया गया था।

जौहरी, वुम्मिदी बंगारू चेट्टी के परपोते जितेंद्र वुम्मिदी ने बताया, ‘सेंगोल’ चोल वंश के दौरान नए राजाओं को सत्ता हस्तांतरण की परंपरा का प्रतीक था। राजदंड के शीर्ष पर एक ‘नंदी’ है और उस पर देवी लक्ष्मी की एक छवि भी है जो धन और समृद्धि का प्रतीक है। उस समय, ‘सेंगोल’ लॉर्ड माउंटबेटन को दिया गया था। इसे प्रार्थनाओं के साथ आशीर्वाद दिया गया था और फिर पंडित नेहरू को सौंप दिया गया था।

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