राहुल की भारत जोड़ो यात्रा से कांग्रेस को कितना फायदा?

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नई दिल्ली: 7 सितंबर, 2022 को तमिलनाडु के कन्याकुमारी से शुरू हुई राहुल गांधी की भारत जोड़ो यात्रा ने अब तक 10 राज्यों का सफर तय कर लिया है। एक सप्ताह के विराम के बाद यात्रा 3 जनवरी से दोबारा शुरू होगी और अगले चरण में उत्तर प्रदेश, पंजाब और जम्मू-कश्मीर पहुंचेगी। इस दौरान राहुल गांधी ने अपनी जिजीविषा, संघर्ष करने की क्षमता और पब्लिक से खुद को कनेक्ट करनी की क्षमता का पुरजोर प्रदर्शन किया। कथित नफरती माहौल के बीच प्यार के एक सूत्र में भारत को जोड़ने की कांग्रेस की इस कवायद के बीच कई ऐसे नारे लगे जो इसकी प्रासंगिकता को साबित करते रहे हैं। मसलन ‘महंगाई से नाता तोड़ो, मिलकर भारत जोड़ो’, ‘बेरोजगारी का जाल तोड़ो, मिलकर भारत जोड़ो’ और “संविधान बचाओ, भारत जोड़ो।’

दरअसल, ये वैसे नारे हैं, जो बीजेपी के खिलाफ गढ़े गए हैं और 2024 के आम चुनावों से पहले कांग्रेस के पक्ष में देशव्यापी माहौल बनाने की दिशा में सार्थक साबित हो सकते हैं लेकिन यह डेढ़ साल के अंतराल की राजनीतिक सक्रियता और एक्शन के बदले विरोधी पक्ष के रिएक्शन पर निर्भर करेगा। वस्तुत:इस बात से भी इनकार नहीं किया जा सकता है कि राहुल गांधी की इस यात्रा का कोई फायदा हुआ ही नहीं। कांग्रेस की यात्रा से जो सियासी फायदे हुए हो सकते हैं, वह निम्नानुसार है-

राहुल की ब्रांडिंग:
वैसे तो राहुल गांधी किसी परिचय के मोहताज नहीं रहे हैं लेकिन इस 110 दिनों की यात्रा के दौरान राहुल ने विपक्ष द्वारा गढ़ी उस इमेज को ध्वस्त कर दिया है, जिसमें उन्हें पप्पू और राजकुमार कहा जाता रहा है। हालांकि, राहुल गांधी कहते रहे हैं कि यात्रा किसी राजनीतिक या व्यक्तिगत स्वार्थ के लिए नहीं है,बल्कि नफरत,भय और हिंसा की राजनीति के खिलाफ है।

किसी छोटी बच्ची को गोद में लेकर चलने की बात हो या किसी बूढ़ी महिला को गले लगाने या यात्रा के दौरान बीच सड़क पर अपनी मां के जूते का लैस बांधने का दृश्य हो, हर मौके पर राहुल गांधी ने जनमानस के बीच अपनी एक अलग तस्वीर बनाई है। उन्होंने दो धुर विरोधियों को भी उसी तन्मयता से गले लगाया, जैसा किसी समर्थक और प्रशंसक के साथ उन्होंने किया। अपनी राजनीतिक यात्रा में मोहब्बत का पैगाम देने वाले राहुल ने राजनीतिक विरोधियों को भी तरजीह दी और अटल जी के समाधि स्थल पर पहुंचकर देश में प्यार का पैगाम देने की कोशिश की।

दक्षिणी राज्यों में पार्टी की मजबूती:
राहुल गांधी ने अपनी यात्रा का आगाज ही दक्षिणी राज्यों से किया। इसका मकसद भी साफ था। वह दक्षिणी किले को मजबूत करना चाहते हैं, जहां बीजेपी कमजोर पड़ चुकी है। दक्षिण के सात राज्यों (तमिलनाडु, कर्नाटक, केरल,गोवा, आंध्र प्रदेश तेलंगाना और महाराष्ट्र) में सिर्फ तीन (गोवा, कर्नाटक और महाराष्ट्र) में ही बीजेपी की सरकार है। तीनों राज्यों में जोड़-तोड़ या सियासी चालबाजी या तत्परता की सरकारे हैं। ऐसे में कांग्रेस और राहुल गांधी ने इन राज्यों में भारत जोड़ो यात्रा के तहत पदयात्रा कर पार्टी कार्यकर्ताओं और आम लोगों से न सिर्फ खुद को कनेक्ट करने की कोशिश की है बल्कि अपनी जनसभाओं में बेरोजगारी, महंगाई जैसे मुद्दों को उछालकर उनकी भावनाओं को पार्टी की मजबूती के लिए भुनाने की कोशिश की है।

चुनावी राज्यों में एकजुटता:
दक्षिणी राज्यों में सबसे लंबी यात्रा कर्नाटक में रही। वहां राहुल गांधी ने 21 दिन बिताए जो किसी भी राज्य में सर्वाधिक है। इस दौरान उनका फोकस चुनावी मुद्दों और कांग्रेस को जमीनी स्तर पर मजबूत करने पर रहा। साथ ही कांग्रेस के दोनों धड़ों डी के शिवकुमार और पूर्व मुख्यमंत्री सिद्धारमैया को साथ लेकर वह सड़कों पर दौड़ते दिखे। कर्नाटक में अगले साल मध्य तक चुनाव होने हैं।

साफ है कि राहुल गांधी ने उस राज्य में 21 दिनों का वक्त देकर कन्नड़ भाषी लोगों की भावनाओं से खुद को कनेक्ट करने और बीजेपी के नफरतभरे कदम के खिलाफ समाज को एकजुट करने की कोशिश की। हाल के दिनों में कर्नाटक ने हिजाब बैन से लेकर हलाल मीट पर बैन तक कई ऐसे फैसले लिए हैं, जिससे सामाजिक सद्भाव बिगड़ा है।

राहुल की यात्रा महाराष्ट्र में 14 दिन और मध्य प्रदेश में 16 दिन तक रही। महाराष्ट्र में जहां बीएमसी चुनाव होने हैं, वहीं मध्य प्रदेश में अगले साल विधानसभा चुनाव होने हैं। राजस्थान में भी राहुल की यात्रा 18 दिन रही। वहां भी अगले साल चुनाव होने हैं। वह कई मौकों पर सचिन पायलट और अशोक गहलोत के गले लगाते दिखे। संदेश साफ था- आपसी भाईचारे और मोहब्बत का और मिलजुलकर फिर से राज्य में नई सरकार बनाने का।

खोई जमीन की वापसी:
ऐसा भी नहीं है कि राहुल की यात्रा ने सिर्फ चुनावी राज्यों पर ही फोकस किया है। उन्होंने अपने संसदीय क्षेत्र वाले राज्य केरल में 18 दिन गुजारे। पिछले चुनावों में केरल में कांग्रेस की अगुवाई वाली यूडीएफ 41 सीटों पर ही जीत सकी थी, जबकि सत्ताधारी एलडीएफ को 99 सीटें मिली थीं। हालांकि, कांग्रेस सीपीआईएम के बाद दूसरी सबसे बड़ी पार्टी बनकर उभरी थी। राहुल ने इसी तरह तेलंगाना में भी अपनी खोई हुई जमीन की तलाश में 12 दिनों तक सड़कों पर पदयात्रा की है। वहां भी अगले साल के अंत तक चुनाव होने हैं।

बीजेपी के खिलाफ हवा को बल:
कांग्रेस को जमीनी आधार देने और चुनावी राज्यों में पार्टी की संभावनाओं को फिर से उड़ान देने के अलावा राहुल की पदयात्रा को दैरान समग्र रूप से बीजेपी के खिलाफ देशव्यापी हवा बनाने की भी कोशिश की है। खासकर उन्होंने उन राज्यों में कांग्रेस के आंदोलन की धार को तेज करने की कोशिश की है, जहां पार्टी कम मार्जिन से सत्ता प्राप्ति से दूर रह गई थी। इसको ध्यान में रखते हुए पार्टी ने हरियाणा में 11 दिनों तक पदयात्रा की।

कांग्रेस ने राहुल के सह पदयात्रियों में रिजर्व बैंक के पूर्व गवर्नर रघुराम राजन, गांधी जी के पौत्र तुषार गांधी, वरिष्ठ वकील प्रशांत भूषण,समाजसेवी मेधा पाटेकर, स्वरा भास्कर, कमल हासन समेत कई दिग्गजों को शामिल कर जहां एक तरफ यात्रा की प्रासंगिकता को उचित ठहराने की सफल कवायद की है, वहीं दूसरी तरफ बीजेपी के खिलाफ देशव्यापी हवा को बल देने की भी कोशिश की है।

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