अस्पतालों में मरीजों के स्वास्थ्य से खिलवाड़, ICMR का दावा- 45% डॉक्टर लिख रहे अधूरा परचा

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नई दिल्ली (New Delhi)। भारतीय आयुर्विज्ञान अनुसंधान परिषद (आईसीएमआर) (Indian Council of Medical Research (ICMR) ने खुलासा किया है कि करीब 45 फीसदी डॉक्टर (45 percent doctors) आधा-अधूरा परचा लिख रहे हैं, जो सीधे तौर पर मरीजों के स्वास्थ्य से खिलवाड़ (Playing health of patients) है। संस्थान का कहना है कि ओपीडी में मरीजों को शुरुआती चिकित्सा सलाह देने वाले डॉक्टर जल्दबाजी में बड़ी लापरवाही कर रहे हैं। 13 नामचीन सरकारी अस्पतालों (13 renowned government hospitals) का सर्वे कराने के बाद तैयार आईसीएमआर की इस रिपोर्ट के बाद अब केंद्र सरकार इस लापरवाही को रोकने के लिए जल्द ही सख्त कदम उठा सकती है।

साल 2019 में आईसीएमआर ने दवाओं के तर्कसंगत उपयोग को लेकर एक टास्क फोर्स बनाई, जिसकी निगरानी में अगस्त, 2019 से अगस्त, 2020 के बीच 13 अस्पतालों की ओपीडी में सर्वे किया गया। इनमें दिल्ली एम्स, सफदरजंग अस्पताल, भोपाल एम्स, बड़ौदा मेडिकल कॉलेज, मुंबई जीएसएमसी, ग्रेटर नोएडा स्थित सरकारी मेडिकल कॉलेज, सीएमसी वेल्लोर, पीजीआई चंडीगढ़ और इंदिरा गांधी मेडिकल कॉलेज पटना मुख्य तौर पर शामिल हैं।

इन अस्पतालों से कुल 7,800 मरीजों के परचे (प्रिस्क्रिप्शन) लिए गए। इनमें से 4,838 की जांच की गई, जिनमें से 2,171 परचों में खामियां मिलीं। हैरानी तब हुई जब 475, यानी करीब 9.8% परचे पूरी तरह गलत पाए गए। यह ऐसी स्थिति है, जिसे स्वीकार नहीं किया जा सकता। यह भी गौर किया गया कि पैंटोप्राजोल, रेबेप्राजोल-डोमपेरिडोन व एंजाइम दवाएं सर्वाधिक मरीजों को लेने की सलाह दी गई, जबकि ऊपरी श्वास नली संक्रमण व उच्च रक्तचाप के परचे सबसे ज्यादा गलत मिले।

दुनिया में 50% दवाएं अनुचित तरीके से लिखी जा रहीं
विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्ल्यूएचओ) ने 1985 में तर्कसंगत परचों को लेकर अंतरराष्ट्रीय स्तर के दिशा-निर्देशों को लागू किया। फिर भी दुनियाभर में 50 फीसदी दवाएं अनुचित तरीके से मरीजों को दिए जाने का अनुमान है। अधिकांश मरीजों को नहीं पता होता कि उन्हें कौन सी दवा किस परेशानी के लिए दी जा रही है और इसका सेवन कब तक करना है? इसलिए नैदानिक अभ्यास में रोगियों का उपचार सिद्धांतों पर आधारित होना चाहिए। रिपोर्ट के अनुसार, पूरी तरह से गलत 475 परचों के विश्लेषण में से कोई अमेरिका तो कोई ब्रिटेन के दिशा-निर्देशों पर आधारित पाया गया।

सभी डॉक्टर विशेषज्ञ, 18 साल से कर रहे प्रैक्टिस
प्रिस्क्रिप्शन का परीक्षण किया गया, उन्हें लिखने वाले लगभग सभी डॉक्टर स्नातकोत्तर हैं और प्रैक्टिस करते चार से 18 साल तक हो चुके हैं। परचे में दवा की खुराक, लेने की अवधि, कितनी बार सेवन करना है, दवा का फॉर्मूलेशन क्या है आदि जानकारियां मरीज को नहीं दी गई।

भारत को छोड़, दुनियाभर के नियम मिले
पूरी तरह से गलत परचों में से कोई भी भारतीय नियमों अनुरूप नहीं था। 475 में 64 परचे अमेरिकन एसोसिएशन ऑफ फैमिली फिजिशियन के दिशा निर्देशों पर आधारित थे। 54 अमेरिकन कॉलेज ऑफ रुमेटोलॉजी, 24 अमेरिकन हार्ट एसोसिएशन, 18 अमेरिकन डायबिटीज एसोसिएशन के दिशा निर्देशों का पालन कर रहे थे। 198 अन्य विदेशी चिकित्सा संगठनों के निर्देशों पर आधारित थे।

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