अगर पूजा घर में हों ये गड़बड़ी तो झेलना पड़ता है भारी तनाव!, तुरंत कर लें सुधार

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घर में पूजा घर अगर बिल्कुल सही हो तो उस घर में रहने वालों को तनाव नहीं होता है. उनका मन प्रसन्न रहता है और वे जो भी निर्णय लेते हैं वह ठीक होता है. पूजा, एक आत्मविश्वास के साथ प्रारंभ होनी चाहिए. खुद को हानिकारक संवेदनाओं से दूर रखते हुए, मन में एकाग्रता और इच्छा शक्ति प्रबल रखना बहुत जरूरी है. इसलिए पूजा घर ईशान कोण यानी नॉर्थ ईस्ट के बीच में होना अति आवश्यक है.

भूखंड से भी जान सकते हैं भविष्‍य
मकान की भौगोलिक परिस्थितयां अलग-अलग होती हैं, उनकी दिशाएं और कोण भी भिन्न-भिन्न होते हैं, सबके इष्ट भी एक नहीं होते, किन्तु वास्तु शास्त्र के अनुसार सबका पूजा का स्थान एक जगह ही होना चाहिए और वह स्थान हैं पूर्व और उत्तर के कोण में, जिसे ईशान कोण कहते हैं. इस कोण के अधिपति देवता बृहस्पति हैं. यह वास्तु पुरुष के मस्तक का क्षेत्र हैं किसी भी भूखंड का सबसे अधिक संवेदनशील क्षेत्र है.

वास्तु पद विन्यास के अनुसार ईशान कोण में ब्रह्मा का वास होता है और ब्रह्मा ही भाग्यविधाता है. किसी भूखंड का मस्तक यानी ईशान कोण देखकर अनुभवी वास्तु शास्त्री उस भूखंड या भवन का भविष्य जान लेते हैं. मनुष्य के ललाट की तरह भूखंड का ललाट भी अपने भविष्य की सूचना देता है. भूखंड की स्थिति से वहां रहने वालों की आचार विचार, व्यवहार, सुख, समृद्धि, संतति, संपन्नता इत्यादि प्रभावित होती है. पहली बात तो यह है कि घर में पूजा घर का अर्थ है देवताओं की उपासना करने का स्थान, इसे मंदिर कह सकते हैं, किन्तु मंदिर मूर्ति स्थापना वाला ना हो तो ही अच्छा होता है.

पूजा घर में बड़ी मूर्ति वर्जित
आजकल घरों में पूजा स्थान की जगह लोग मंदिर बनवाकर वहीं देवताओं की स्थापना करवाने लग गए हैं. दरअसल वैदिक रीति से देव स्थापित मंदिर अत्यंत महत्वपूर्ण जिम्मेदारी का कार्य है. कुछ अपवादों को छोड़कर घर का वातावरण और पवित्रता ऐसी नहीं होती कि वहां स्थापित देवताओं की सेवा और अपेक्षित उत्तरदायित्व निभाया जा सके. और जब ऐसा नहीं हो पाता तो देव अपराध लगता हैं, देवता कुपित होते हैं. इसलिए घर में पूजा स्थान हो तो आप इसे मंदिर का आकृति रूप दे दें तो भी ठीक है किन्तु घर में बड़ी देव मूर्तियों की स्थापना नहीं करवानी चाहिए. यदि करवा चुके हैं तो यह आप पर भारी जिम्मेदारी है जिसका बोध आपको करना चाहिए. मसलन, वह जिस देवता का मंदिर है उस संप्रदाय के उपासना का पूरा उपक्रम होना चाहिए. आने वाली पीढ़ी को भी इन नियमों का पालन करते रहना चाहिए, अन्यथा परिणाम अच्छे नहीं होंगे.

 

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