नई दिल्ली. ऑटिज्म से पीड़ित बच्चे सामाजिक गतिविधियों के प्रति उदासीन होते हैं। वह लोगों की ओर न देखते हैं, न मुस्कुराते हैं। कई बार अपना नाम पुकारे जाने पर भी प्रतिक्रिया नहीं करते हैं। किसी से नजर मिलाने से कतराते हैं। अपनी बात कहने के लिए वह अक्सर दूसरे व्यक्ति का हाथ छूते और हिलाते हैं। विशेषज्ञों के मुताबिक ऑटिज्म के लक्षण समय से पहचान लिए जाएं तो दवाओं व काउंसिलिंग से इलाज संभव है।
मानसिक स्वास्थ्य संस्थान व चिकित्सालय के चिकित्सा अधीक्षक प्रो. दिनेश राठौर ने बताया कि ऑटिज्म पीड़ित लोगों में विभिन्न प्रकार के विशेष प्रतिभाओं (गणितीय गणना, अंक याद रखने, पेंटिंग करने आदि में कुशलता) को भी स्वीकारा जा रहा है। इस समस्या से पीड़ित लोगों का मानसिक विकास शुरू में करीब एक से तीन वर्ष तक सामान्य रहता है। बाद में संवाद करने की क्षमता में गिरावट आती है और संवाद की क्षमता विकसित ही नहीं हो पाती है।
इंडियन पीडियाट्रिक एकेडमी (आईएपी) की ओर से आवास विकास स्थित चाइल्ड डेवलपमेंट सेंटर में जागरुकता कार्यक्रम हुआ। इसमें आईएपी आगरा अध्यक्ष डॉ. अरुण जैन ने कहा कि मकसद लोगों को ऑटिज्म के बारे में जागरूक करना और ऑटिज्म से पीड़ित लोगों का सहयोग करना है। पूर्व अध्यक्ष डॉ. आरएन. द्विवेदी ने कहा कि ऑटिज्म या ऑटिज्म स्पेक्ट्रम डिसऑर्डर एक डेवलपमेंटल डिसेबिलिटी है। डॉ. संजय सक्सेना, डॉ. प्रीती सिंघई जैन, डॉ. अतुल बंसल ने भी विचार व्यक्त किए। कार्यक्रम में डॉ. स्वाति द्विवेदी, डॉ. योगेश दीक्षित, डॉ. मनोज जैन, डॉ. मनीष कुमार सिंह, डॉ. अमित मित्तल आदि मौजूद रहे।
मानसिक संस्थान व चिकित्सालय में आयोजित कार्यशाला में वक्ताओं ने कहा कि यदि किसी बच्चे को ऑटिज्म नहीं है तो मोबाइल के अधिक इस्तेमाल से यह नहीं हो सकता। अध्यक्षता संस्थान के निदेशक डाॅ. ज्ञानेंद्र कुमार ने की। संस्थान के चिकित्सा अधीक्षक प्रो. दिनेश राठौर, एसएन मेडिकल कॉलेज के बाल रोग विभागाध्यक्ष डाॅ. नीरज यादव, डॉ. विशाल सिन्हा ने भी विचार रखे।