बीजिंग: भारत बंगाल की खाड़ी में एक पनडुब्बी बेस बना रहा है। यह पूरा होने पर पाकिस्तान और चीन के खिलाफ भारत के समुद्र-आधारित परमाणु (Atom) निवारक के लिए एक सुरक्षित पनाहगाह बनेगा। भारत की यह महत्वाकांक्षी परियोजना आईएनएस वर्षा एक विशाल 1,680 एकड़ का नौसैनिक बेस, रामबिली में पूर्वी तट पर तेजी से आकार ले रहा है। हाल ही में उपग्रह चित्रों से पता चलता है कि इसके निर्माण में काफी तेजी आई है। ऐसे में संभावना है कि यह परियोजना अपने निर्धारित समय सीमा के भीतर पूरी होने की राह पर है। इस बेस के निर्माण के साथ ही भारत एक साथ चीन और पाकिस्तान के खतरों से निपटने में सक्षम हो जाएगा।
आईएनएस वर्षा परियोजना भारत का एक रणनीतिक नौसैनिक बेस है जिसे 12 से अधिक परमाणु-संचालित बैलिस्टिक मिसाइल पनडुब्बियों (SSBN) के बेड़े को रखने के लिए डिजाइन किया गया है। इसकी सबसे खास विशेषता एक व्यापक भूमिगत परिसर है, जिसमें सुरंगें शामिल हैं जो पनडुब्बियों को छिपाने के लिए बनाई गई हैं। बेस की अंडरग्राउंड सुरंगे भारत की परमाणु पनडुब्बियों को हवाई खतरों और खोजी उपग्रहों से बचाने के काम में आएंगी। इसके अलावा यह परमाणु इंजीनियरिंग के लिए आवश्यक सहायता सुविधाएं भी प्रदान करता है। जमीन के ऊपर बनें घाटों के निर्माण से पता चलता है कि इसमें विभिन्न सतही युद्धपोतों को समायोजित करने की क्षमता है।
प्रोजेक्ट वर्षा का स्थान भारतीय नौसेना को इंडो-पैसिफिक के महत्वपूर्ण शिपिंग लेन के करीब स्थित करके रणनीतिक लाभ प्रदान करता है। यह निकटता क्षेत्रीय खतरों के खिलाफ त्वरित प्रतिक्रिया में सहायता प्रदान करेगा और भारत के परमाणु प्रतिष्ठान भाभा परमाणु अनुसंधान केंद्र (BARC) के साथ सहयोग की सुविधा प्रदान करती है। प्रोजेक्ट वर्षा को भारत की नौसैनिक प्रतिरोधक क्षमता को महत्वपूर्ण रूप से बढ़ाने के लिए डिज़ाइन किया गया है, जिससे एक सुरक्षित, भूमिगत बेस से परमाणु-सशस्त्र पनडुब्बियों की तैनाती की अनुमति मिलती है। यह हिंद महासागर क्षेत्र में एक दुर्जेय उपस्थिति बनाए रखने, राष्ट्र की सुरक्षा सुनिश्चित करने और एक प्रमुख समुद्री शक्ति के रूप में अपनी स्थिति को मजबूत करने के लिए भारत की प्रतिबद्धता का संकेत देता है।
भारत का लक्ष्य पाकिस्तान और चीन द्वारा उत्पन्न दोहरे खतरे से निपटने के लिए चार बैलिस्टिक मिसाइलों से लैस परमाणु पनडुब्बी को ऑपरेट करना है। वर्तमान में, भारत के पास एक सक्रिय परमाणु पनडुब्बी आईएनएस अरिहंत है, जो 700 किलोमीटर की अपेक्षाकृत कम दूरी के साथ 12 K-15 पनडुब्बी-लॉन्च बैलिस्टिक मिसाइलों (SLBM) से लैस है। भारत अपने दूसरी परमाणु पनडुब्बी आईएनएस अरिघात को इस साल के अंत तक चालू करने की योजना बना रहा है।
भारत की तीसरी परमाणु पनडुब्बी, जिसका कोडनेम S4 है, निर्माणाधीन है और माना जाता है कि यह अपने पूर्ववर्तियों से बड़ा है। सैटेलाइट इमेजरी से पता चला है कि S4 पनडुब्बी आईएनएस अरिहंत और INS अरिघाट की तुलना में दुगनी पनडुब्बी से लॉन्च होने वाली बैलिस्टिक मिसाइलें ले जा सकती है। इसमें 3,500 किलोमीटर की रेंज वाली 24 K-15 SLBM या 8 K-4 SLBM हो सकती हैं। भारत संभवतः इस साल S4 को पूरा कर लेगा और फिर समुद्री परीक्षणों की योजना बनाएगा। उसके बाद, भारत की चौथी परमाणु पनडुब्बी संभवतः S4 पर आधारित होगी, जिसमें अपने पूर्ववर्ती की तुलना में अलग-अलग सुधार होंगे।
हंस क्रिस्टेंसन और मैट कोर्डा ने जुलाई 2022 के बुलेटिन ऑफ द एटॉमिक साइंटिस्ट्स लेख में लिखा है कि K-15 SLBM की रेंज कम है, जो सिर्फ पाकिस्तान को निशाना बनाने में सक्षम है। यह मिसाइल पूरे चीन को अपनी जद में नहीं ले सकती है। हालांकि, भारत पहले से ही 5,000 किलोमीटर की रेंज वाली K-5 SLBM विकसित कर रहा है। रणनीतिक और सुरक्षा कारणों से यह परियोजना अत्यधिक गोपनीय है।
भारत को पाकिस्तान और चीन से दोहरे परमाणु खतरे का सामना करना पड़ रहा है। इसमें चीन, पाकिस्तान के साथ “थ्रेसहोल्ड एलायंस” में शामिल है। यह एक ऐसा रिश्ता है जो औपचारिक गठबंधन से कम लेकिन सामान्य रक्षा सहयोग से कहीं ज़्यादा है। हाल में ही चीन ने पाकिस्तान के लिए बनाई गई हैंगोर क्लास की पहली पनडुब्बी को लॉन्त किया था, जो 039B युआन-क्लास का एक्सपोर्ट वेपिएंट है। अप्रैल 2015 में, पाकिस्तान ने चीन के साथ आठ पनडुब्बियों के लिए एक अनुबंध पर हस्ताक्षर किए, जिनमें से चार चीन में और बाकी पाकिस्तान में बनाई जानी हैं। पाकिस्तान अगर अपनी हंगोर क्लास की पनडुब्बियों को परमाणु हथियार से लैस बाबर-3 पनडुब्बी से प्रक्षेपित क्रूज मिसाइलों (एसएलसीएम) से लैस कर ले, तो उसे महत्वपूर्ण रूप से भारत के अंदर हमले की क्षमता हासिल हो जाएगी, जिनकी रेंज 450 किलोमीटर है।