नई दिल्ली: अमेरिका से अफ्रीका और एशिया से यूरोप तक, पिछले 10 साल में दुनिया तेजी से बदली है। लोगों में तनाव, गुस्सा और चिंता का स्तर बढ़ा है। अब लोग पहले से ज्यादा उदास और दुखी हैं। महिलाएं तो और भी ज्यादा। जहां तक भारतीय महिलाओं का सवाल है तो वे दोगुनी गुस्सैल हो गई हैं।
पिछले एक दशक में लोगों के बदलते मानसिक हालात जानने और उनकी भावनाएं समझने के लिए गैलप वर्ल्ड पोल ने 2012 से 2021 तक 150 देशों के 12 लाख लोगों पर सर्वे किया। इसमें उन्होंने बताया कि 10 साल पहले महिला-पुरुष में गुस्सा और तनाव का स्तर समान था, लेकिन 10 साल से महिलाओं में तनाव ज्यादा बढ़ गया है। वे अब ज्यादा आक्रोशित होने लगी हैं।
आंकड़ों में कहें तो दुनियाभर में महिलाओं में आक्रोश का स्तर पुरुषों से 6% ज्यादा है। भारत और पाकिस्तान की महिलाओं में तनाव और गुस्से का स्तर दुनिया से दोगुना, यानी 12% है। भारत में जहां पुरुषों में गुस्से का स्तर 27.8% है, वहीं महिलाओं में यह 40.6% है। कोरोना महामारी के दो सालों में यह और भी ज्यादा बढ़ा। मनोवैज्ञानिक डॉ. लक्ष्मी विजय कुमार दुनियाभर की महिलाओं में बढ़ते तनाव और गुस्से की वजह बताती हैं। वे कहती हैं कि तमाम देशों में महिलाएं पहले से ज्यादा शिक्षित हुईं और नौकरी करने लगीं।
इससे उनमें आत्मनिर्भरता को लेकर कॉन्फिडेंस आया, लेकिन घरों में पितृसत्तात्मक व्यवस्था अभी बरकरार है, जबकि बाहर बराबरी की बात की जाती है। इस असंतुलन के बीच पिस रही महिलाएं अब आवाज उठाने लगी हैं। वे अपना गुस्सा जाहिर करने लगी हैं। पहले महिलाओं का गुस्सा करना गुस्से की वजह से भी ज्यादा बुरा माना जाता था। हालांकि समाज की सोच बदली है। अब यह नैतिक दबाव कम हुआ है। एक दशक में महिलाएं अपनी भावनाएं जाहिर करने में मुखर हुई हैं।
कम वेतन, ज्यादा अपेक्षाओं से गुस्सा बढ़ रहा
महिलाओं के गुस्से पर किताब ‘रेज बिकम्स हर’ लिखने वाली अमेरिकी लेखक सोराया शेमली कहती हैं कि स्वास्थ्य जैसी सेवाओं में महिलाओं की भागीदारी ज्यादा है, लेकिन काम की अपेक्षा वेतन कम मिलता है। उनसे अपेक्षाएं ज्यादा होती हैं, यही अपेक्षा महिलाओं से घरों में भी होती है। इस वजह से उनमें गुस्सा बढ़ रहा है।