इन दिनों कर्नाटक के स्कूलों में बुर्के के बैन पर महाभारत छिड़ी है ! इस पर कांग्रेस महासचिव प्रियंका गाँधी वाड्रा का एक बयान आया “लड़किया चाहे बिकिनी पहने,साडी पहने चाहे बुर्का पहने या सलवार या जीन्स पहने ये उनका फ्रीडम ऑफ़ चॉइस है !” बात भी सही है,पर किस जगह,किन परिस्थितंयो में क्या पहनना है ये इस बात पर निर्भर करता है ! उदाहरण के लिए अगर कोई सैनिक ये कहे कि मै ड्यूटी पर शॉट्स पहन कर जाऊगा ,तो क्या ये फ्रीडम ऑफ़ चॉइस है?
कोई जैन धर्म का अध्यापक या सरकारी कर्मचारी ये कहे,उनके धर्म में निर्वस्त्र रहने की भी परंपरा है तो वो अपने कार्य स्थान पर निर्वस्त्र जाये ,तो क्या ये सही है ? किसी धार्मिक स्थान बिकनी पहन कर जाना उचित है ? पर अगर किसी स्विमिंग पूल पर या बीच पर बिकिनी पहने तो ये गलत नहीं है !
शायद प्रियंका गाँधी वाड्रा का बयान सही हो पर जिस परिप्रेक्ष्य में ये बात कही गयी वो तर्कहीन लगती है ,क्योकि बात स्कूलों के ड्रेस कोड की हो रही है तो बिकनी शब्द न तो शैक्षणिक और न ही सामाजिक तौर पर तार्किक लगता है! आपका वस्त्र पहनना आपकी चाईस है लेकिन क्या इस बात का ध्यान रखना जरुरी नही की हम किस जगह क्या वस्त्र पहनते है . सोचिए और अपनी राय Twitter पर हमे TAG करके जरुर बताए . हमारा Twitter Account है , https://twitter.com/vnationnews
रिर्पोट – शिवी अग्रवाल