इसरो ने लहराया भारत का परचम, स्पैडेक्स मिशन सफलतापूर्वक लॉन्च

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नई दिल्ली: भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (इसरो) ने सोमवार को स्पैडेक्स मिशन को सफलतापूर्वक लॉन्च किया, जिसका लक्ष्य अंतरिक्ष में डॉकिंग तकनीक में महारत हासिल करना है। स्पेस डॉकिंग एक्सपेरीमेंट (स्पैडेक्स) मिशन के तहत दो उपग्रहों को 30 दिसंबर को श्रीहरिकोटा से पीएसएलवी-सी60 रॉकेट के जरिए प्रक्षेपित किया गया। रॉकेट ने दोनों उपग्रहों को कुछ दूरी पर एक ही कक्षा में सफलतापूर्वक स्थापित किया। इसरो ने सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म एक्स पर एक पोस्ट में कहा, “स्पैडेक्स तैनात! स्पैडेक्स उपग्रहों का सफल पृथक्करण भारत की अंतरिक्ष यात्रा में एक और मील का पत्थर है।” इससे पहले रॉकेट की लॉन्चिंग पर उसने लिखा था, “लिफ्टऑफ! पीएसएलवी-सी60 ने स्पैडेक्स और 24 पेलोड को सफलतापूर्वक प्रक्षेपित किया।”

अमेरिका, रूस और चीन के बाद भारत अब डॉकिंग तकनीक में महारत हासिल करने वाला चौथा देश बनेगा। अंतरिक्ष मामलों के राज्य मंत्री जितेंद्र सिंह ने इस सफलता पर एक्स पर लिखा, “भारत अपने स्वदेशी रूप से विकसित ‘भारतीय डॉकिंग सिस्टम’ के माध्यम से अंतरिक्ष डॉकिंग की क्षमता की दिशा में कदम बढ़ाने वाले चुनिंदा देशों की सूची में शामिल होने वाला चौथा देश बन गया है।” सिंह ने कहा कि यह तकनीक “गगनयान” और “भारतीय अंतरिक्ष स्टेशन” के लिए आकाश से आगे की यात्रा का मार्ग प्रशस्त करेगी। इसरो ने कहा कि स्पैडेक्स (स्पेस डॉकिंग एक्सपेरीमेंट) ऑर्बिटल डॉकिंग में भारत की क्षमता स्थापित करने के लिए एक अग्रणी मिशन है, जो भविष्य के मानव अंतरिक्ष उड़ान और उपग्रह सर्विसिंग मिशनों के लिए एक महत्वपूर्ण तकनीक है।

पीएसएलवी ने दो छोटे अंतरिक्ष यान – एसडीएक्स01 (जो डॉकिंग प्रयोग के दौरान चेजर की भूमिका निभाएगा) और एसडीएक्स02 (जो टारगेट की भूमिका निभाएगा) को लेकर उड़ान भरी। प्रत्येक का वजन लगभग 220 किलोग्राम था। उपग्रहों को पृथ्वी की निचली कक्षा में डॉकिंग के लिए एक साथ जोड़ा गया। इसरो करीब चार दिन में दोनों उपग्रहों के बीच पर्याप्त दूरी बनाने के बाद ‘भारतीय डॉकिंग सिस्टम’ के सॉफ्टवेयर को सक्रिय करेगा। इसमें चार डॉकिंग सेंसर, पावर ट्रांसफर प्रौद्योगिकी, स्वदेशी नवीन स्वायत्त डॉकिंग रणनीति, तथा उपग्रहों के बीच स्वायत्त संचार के लिए एक अंतर-उपग्रह संचार लिंक (आईएसएल) शामिल है। इसमें एक अंतर्निहित इंटेलिजेंस भी शामिल है जिससे दोनों उपग्रह एक-दूसरे की स्थिति का पता लगा सकते हैं। अंतरिक्ष डॉकिंग तकनीक में महारत हासिल करने से भारत न केवल अंतरिक्ष यात्रा करने वाले देशों के विशिष्ट क्लब में शामिल हो सकता है। यह भारत के आगामी अंतरिक्ष अभियानों के लिए भी महत्वपूर्ण है, जिसमें चंद्रमा मिशन, भारतीय अंतरिक्ष स्टेशन की स्थापना और पृथ्वी से जीएनएसएस के समर्थन के बिना चंद्रयान-4 जैसे चंद्र मिशन शामिल हैं।

इसरो के अनुसार, डॉकिंग के बाद दोनों उपग्रहों के बीच बिजली का हस्तांतरण भी होगा, जो समग्र अंतरिक्ष यान नियंत्रण, और अनडॉकिंग के बाद पेलोड संचालन जैसे अंतरिक्ष रोबोटिक्स एप्लिकेशन के लिए आवश्यक है। स्पैडेक्स प्रयोगों के लिए पीएसएलवी के चौथे चरण, पीओईएम-4 का भी उपयोग करेगा। इस चरण में शैक्षणिक संस्थानों और स्टार्टअप्स के 24 पेलोड भी अंतरिक्ष में स्थापित किए जाएंगे।

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