जयपुर: राजस्थान हाईकार्ट ने 13 मई, 2008 को राजधानी जयपुर में हुए सिलसिलेवार बम विस्फोट मामले में बुधवार को चार दोषियों को बरी कर दिया। न्यायमूर्ति पंकज भंडारी और न्यायमूर्ति समीर जैन की खंडपीठ ने उच्च न्यायालय में 28 अपीलें पेश करने वाले इन चारों दोषियों को बरी कर दिया। इस पूरे मामले पर 48 दिन से सुनवाई चल रही थी।
खंडपीठ ने अपने फैसले में कथित तौर पर कहा कि जांच अधिकारी को कानूनी ज्ञान नहीं था। इसलिए जांच अधिकारी के खिलाफ भी कार्रवाई के निर्देश डीजीपी को दिए गए हैं। कोर्ट ने मुख्य सचिव को जांच अधिकारी से जांच कराने को भी कहा है। आरोपियों का प्रतिनिधित्व कर रहे वकील सैयद सादात अली ने कहा कि हाईकोर्ट ने एटीएस की पूरी थ्योरी को गलत बताया है, इसलिए आरोपियों को बरी किया गया है।
उन्होंने कहा कि सत्र अदालत ने चार आरोपियों को मौत की सजा सुनाई थी। “हम उस फैसले के खिलाफ हाईकोर्ट आए थे। एक आरोपी नाबालिग है। कोर्ट ने स्वीकार किया है कि घटना के वक्त उसकी उम्र 16 साल थी। कोर्ट ने कोई सबूत नहीं होने की बात कहकर आरोपी को बरी कर दिया है। आरोपी के खिलाफ एटीएस और अभियोजन पक्ष आरोप साबित नहीं कर पाए हैं। न तो बम लगाना साबित हुआ है और न ही यह साबित हुआ है कि आरोपियों ने साइकिल खरीदी थी।”
अदालत ने फैसला सुनाते हुए जांच अधिकारी के बारे में कड़ी टिप्पणी की। अदालत ने राजस्थान के डीजीपी को राजेंद्र सिंह नयन, जय सिंह और सेवानिवृत्त आईपीएस अधिकारी महेंद्र चौधरी के खिलाफ कार्रवाई करने का आदेश दिया है, जो इस मामले के जांच अधिकारी थे। 10 पेज के फैसले में कोर्ट ने कहा कि पुलिस की थ्योरी पूरे मामले से मेल नहीं खाती।
13 मई 2008 को दीवार वाले शहर में 8 जगहों पर सिलसिलेवार बम धमाके हुए थे। इनमें 71 लोगों की मौत हो गई, जबकि 185 लोग घायल हो गए। अदालत ने मोहम्मद सैफ, सैफुर रहमान, सरवर आजमी और मोहम्मद सलमान को हत्या, राजद्रोह और विस्फोटक अधिनियम के तहत दोषी पाया।
इस मामले में पुलिस ने कुल 13 लोगों को आरोपी बनाया था। तीन आरोपी अब भी फरार हैं, जबकि दो हैदराबाद और दिल्ली की जेलों में बंद हैं। बाकी दो अपराधी दिल्ली के बाटला हाउस एनकाउंटर में मारे गए हैं। चारों आरोपी जयपुर जेल में बंद थे और निचली अदालत ने उन्हें मौत की सजा सुनाई थी।
भाजपा के पूर्व प्रदेश अध्यक्ष सतीश पूनिया ने कहा, “इतने बड़े अपराध में चारों दोषियों को हाईकोर्ट से बरी करना राजस्थान की अशोक गहलोत सरकार की वकालत पर संदेह पैदा करता है।”
उन्होंने कहा, “जिस तरह से एटीएस द्वारा साक्ष्य प्रस्तुत किया गया था, और बाद में इसे क्लिप और संपादित किया गया था और जिस तरीके से अदालत ने कहा कि अभियोजन ठीक से नहीं किया गया था और साक्ष्य उचित तरीके से नहीं आया था, उससे संदेह पैदा होता है।”