नई दिल्ली: केरल हाईकोर्ट ने साफ कर दिया है कि अदालत में जजों के सामने हाथ जोड़कर केस पेश करने की कोई जरूरत नहीं है। उच्च न्यायालय का कहना है कि वादियों और वकीलों का कोर्ट के सामने केस पेश करने का अधिकार है। साथ ही कोर्ट ने यह भी कहा कि जज अपना संवैधानिक कर्तव्य निभा रहे हैं और वे भगवान नहीं हैं। वादी कोर्ट में हाथ जोड़कर और आंखों में आंसू लेकर अपनी बात रख रही थी। इसके बाद कोर्ट ने यह टिप्पणी की।
मामले की सुनवाई कर रहे जस्टिस पीवी कुन्हीकृष्णन ने कहा कि भले ही अदालत को न्याय का मंदिर कहा जाता है, लेकिन बेंच पर कोई भगवान नहीं है। उन्होंने कहा कि न्यायाधीशों को मर्यादा बनाए रखने के अलावा वादी या वकीलों से कोई अलग तरह के सम्मान की जरूरत नहीं है।
कोर्ट ने कहा, ‘पहली बात, किसी वादी या वकील को कोर्ट के सामने हाथ जोड़कर केस पेश करने की जरूरत नहीं है, क्योंकि अदालत में मामली की सुनवाई उनका संवैधानिक अधिकार है। आमतौर पर कोर्ट को न्याय का मंदिर कहा जाता है, लेकिन बेंच पर कोई भगवान नहीं बैठे हैं। जज अपना संवैधानिक कर्तव्य निभा रहे हैं। वादियों और वकीलों को मामले की बहस के दौरान अदालत की मर्यादा को बनाए रखना चाहिए।’
क्या था मामला
रमला कबीर अपने खिलाफ कई धाराओं में दर्ज FIR को रद्द कराने के लिए कोर्ट पहुंचीं थीं। उनपर आरोप थे कि कबीर ने अलप्पुझा में नॉर्थ पुलिस स्टेशन में सर्किल इंस्पेक्टर को बार-बार फोन पर अभद्रता की और धमकियां दीं। कबीर ने अदालत को बताया कि मामला झूठा है और पुलिस की तरफ से आरोप लगाए गए हैं।
कबीर ने बताया कि उन्हें एक प्रेयर हॉल के खिलाफ पुलिस में शिकायत की थी, जिसका इस्तेमाल इस तरह से हो रहा था कि ध्वनि प्रदूषण बढ़ने लगा था। उन्होंने आरोप लगाए कि सर्किल ऑफिसर को जांच के लिए कहा गया था और जब इसे लेकर पुलिस अधिकारी से सवाल पूछा गया तो उन्होंने फोन पर अभद्रता की।
इसके बाद कबीर ने सर्किल इंस्पेक्टर के बर्ताव को लेकर भी शिकायत की। उनका कहना कि सर्किल इंस्पेक्टर ने उनके खिलाफ काउंटर केस दर्ज किया है। पक्षों की सुनवाई के बाद कोर्ट ने प्रथम दृष्टया पाया कि कथित अपराध नहीं किए गए हैं। ऐसे में कबीर के खिलाफ दर्ज केस रद्द कर दिया गया। साथ ही सर्किल इंस्पेक्टर के खिलाफ जांच के आदेश दिए गए हैं।