नई दिल्ली: वास्तु शास्त्र के अनुसार दक्षिण दिशा का विस्तार 157.5 अंश से 202.5 अंश तक होता है। दक्षिण दिशा के स्वामी मंगल हैं। इस दिशा पर मृत्यु के देवता यम का आधिपत्य माना जाता है वास्तु नियमों के अनुसार इस नियम में जितना भारी और ऊंचा निर्माण होगा उतना ही श्रेष्ठ रहता है। ज्योतिषाचार्य पं.शिवकुमार के अनुसार यह दिशा स्थायित्व देने वाली है। दक्षिण दिशा में गृह स्वामी का शयन कक्ष, स्टोर, जीना, शौचालय, भारी वस्तुएं जिसमें अलमारी, फैक्ट्री में भारी मशीनरी, ऑफिस में पुराना रिकॉर्ड रखना वास्तु के अनुरूप होता है। इस दिशा में जो अधिक रहेगा परिवार पर उसका दबदबा रहेगा। इसलिए माता-पिता के रहते हुए पुत्र का कक्ष इस दिशा में नहीं होना चाहिए।
मकान के ऊपर भी अधिक एवं ऊंचा निर्माण इस दिशाा में अच्छा रहता है। यदि आपका पुराना मकान है और ऊपर दक्षिण दिशा खाली है तो इस दिशा में कपि ध्वज लगा देना चाहिए। कुछ लोग इस दिशा में दरवाजा बनाना अशुभ मानते हैं, लेकिन यह ठीक नहीं है। दक्षिण-पश्चिम यानी नैऋत्य दिशा में दरवाजा बनाना उन गृह स्वामी के लिए अशुभ होता है जिनका मूलांक या भाग्यांक नौ हो। यानी जिनका जन्म किसी भी मास की नौ, 18, 27 तारीख को हुआ हो। जन्म कुंडली में यदि मंगल उत्तम अवस्था में है तो दक्षिण दिशा में दरवाजा बनाना बहुत ही शुभ होता है।