चंडीगढ़ : आपको बता दें कि चंडीगढ़ स्थित व्यवसायी चैतन्य अग्रवाल ने वरिष्ठ अधिवक्ता अनमोल रतन सिद्धू के माध्यम से अदालत में कहा था कि उन्हें, उनकी पत्नी और उनकी दो नाबालिग बेटियों को किरण खेर और सलारिया से उनकी जान और स्वतंत्रता का खतरा है। उनकी याचिका के अनुसार, अग्रवाल एक भाजपा कार्यकर्ता के माध्यम से सलारिया के संपर्क में आये। सलारिया ने खुद को एक फाइनेंसर के रूप में पेश किया जो किरण खेर सहित प्रभावशाली लोगों के लिए पैसे का प्रबंधन करता था। बाद में अग्रवाल ने आरोप लगाया कि सांसद ने उन्हें निवेश के लिए 8 करोड़ रुपये दिए। मुनाफे के बाद रकम लौटानी थी।
अग्रवाल की याचिका के मुताबिक, उन्होंने पैसे निवेश किए और अगस्त में खेर को 2 करोड़ रुपये लौटाए। उन्होंने कहा कि नवंबर में बाजार में उतार-चढ़ाव के कारण उन्होंने बाकी राशि वापस करने के लिए और समय मांगा, लेकिन सांसद और उनके सहयोगी ने कथित तौर पर उन्हें धमकी देना शुरू कर दिया। उन्होंने आरोप लगाया कि सांसद ने उन्हें ब्याज सहित पैसे तुरंत लौटाने के लिए कहा।
पंजाब और हरियाणा हाईकोर्ट ने चंडीगढ़ पुलिस को उस व्यवसायी और उसके परिवार को एक सप्ताह के लिए सुरक्षा प्रदान करने का निर्देश दिया है, जिसने दावा किया है कि उसे भाजपा सांसद किरण खेर और उनके राजनीतिक सहयोगी सहदेव सलारिया से धमकी मिली है। न्यायमूर्ति अनूप चितकारा की पीठ ने सोमवार को अपने आदेश में कहा, “यह उचित होगा कि संबंधित पुलिस अधीक्षक और संबंधित एसएचओ याचिकाकर्ता को आज से एक सप्ताह के लिए उचित सुरक्षा प्रदान करें।” भाजपा सांसद और उनके कार्यालय ने कोर्ट के आदेश पर टिप्पणी करने से इनकार कर दिया है। अग्रवाल ने आरोप लगाया कि उन्हें किरण खेर और सलारिया द्वारा लगातार परेशान किया जा रहा है। साथ ही यह भी कहा कि उनकी जान को खतरा है।
अदालत में लोक अभियोजक मनीष बंसल ने कहा कि अग्रवाल और उनके परिवार ने चंडीगढ़ में कोई पुलिस शिकायत दर्ज नहीं की और न ही उन्होंने पुलिस सहायता के लिए हेल्पलाइन नंबर 112 पर कॉल किया। याचिकाकर्ता के वकील सिद्धू ने तर्क दिया कि संविधान का अनुच्छेद 21 सर्वोच्च है। याचिकाकर्ता को पहले हेल्पलाइन नंबर 112 पर कॉल करने की कोई आवश्यकता नहीं है।
दलीलें सुनने पर न्यायमूर्ति चितकारा ने कहा, “अगर यह अदालत उन्हें फिलहाल सुरक्षा नहीं देती है तो यह संवैधानिक क्षेत्राधिकार का प्रयोग न करने के समान हो सकता है।” अदालत ने कहा कि यदि याचिकाकर्ता अनुरोध करता है तो एक सप्ताह की समाप्ति से पहले भी पुलिस सुरक्षा बंद की जा सकती है। पीठ ने यह भी कहा कि सुरक्षा का दिखावा या दुरुपयोग न हो।
पीठ ने अपने फैसले में कहा, “जब तक ऐसी सुरक्षा दी जाती है याचिकाकर्ता और उसकी पत्नी चिकित्सा, घरेलू जरूरतों की खरीदारी, परिजनों के लिए शोक व्यक्त करने के अलावा किसी भी कार्य के लिए बाहर नहीं निकलेंगे। हालाँकि यह प्रतिबंध याचिकाकर्ता की नाबालिग बेटियों पर नहीं लगाया गया है।” कोर्ट ने यह प्रतिबंध याचिकाकर्ता और उसकी पत्नी को मिले सुरक्षा का दिखावा करने से रोकने के लिए लगाया है।
अदालत ने अपने आदेश में यह भी कहा है कि यदि याचिकाकर्ता या उसकी पत्नी ने एक बार भी शर्तों का उल्लंघन किया तो सुरक्षा का यह आदेश वापस ले लिया जाएगा।