बचाई जा सकती है जिन्दगियां पर्यावरण की सुरक्षा करके

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बरहज/देवरिया

महाग्रन्थों जैसे स्कंदपुराण में कहा गया है कि
अश्वत्थमेकम् पिचुमन्दमेकम्
न्यग्रोधमेकम् दश चिञ्चिणीकान्।
कपित्थबिल्वाऽऽमलकत्रयञ्च पञ्चाऽऽम्रमुप्त्वा नरकन्न पश्येत अर्थात – जो कोई इन वृक्षों के पौधो का रोपण करेगा, उनकी देखभाल करेगा उसे नरक के दर्शन नही करना पड़ेगा इस सीख का अनुसरण न करने के कारण हमें आज इस परिस्थिति के स्वरूप में नरक के दर्शन हो रहे हैं।
अभी भी कुछ बिगड़ा नही है, हम अभी भी अपनी गलती सुधार सकते हैं। पर्यावरण संरक्षण कर वचाई जा सकती है जिन्दगियां।
स्थानीय बाबा राघव दास भगवान दास स्नातकोत्तर महाविद्यालय आश्रम बरहज देवरिया में पर्यावरण संरक्षण के लिए पौधारोपण के अवसर पर उक्त उद्गार अतिथियों ने व्यक्त किया इस अवसर पर प्राचार्य प्रो. एसएन तिवारी ,पूर्व प्राचार्य प्रो. अजय कुमार मिश्र ,इंसपेक्टर जयशंकर मिश्र,नगरपालिका के अधिशासी अधिकारी के सी पाण्डेय आदि ने अपने विचार रखते हुए कहा की प्रकृति मनुष्य की आवश्यकता की पूर्ति करने में समर्थ है लेकिन उसके लालच की पूर्ति करने में समर्थ नहीं है। प्रकृति का अंधाधुंध दोहन पर्यावरण प्रदूषण को जन्म दे रहा है। जिस तरह सुरसा के मुंह की भांति प्रदूषण बढ़ रहा है आने वाले समय में मानव जिंदगी का संरक्षण अत्यंत जटिल कार्य होगा ।इसलिए जरूरत है कि हम सचेत हो जाएं और अधिक से अधिक पौधारोपण कर प्राकृति के साथ संतुलन स्थापित करें। हमारे ग्रंथों में कहा गया है एक वृक्ष 10 पुत्र समान ।इसलिए वृक्षारोपण को बढ़ावा देना समय की मांग है। इस अवसर पर मनोज गुप्त पवन कुमार गुप्त आनंद सिंह मनीष श्रीवास्तव नागेंद्र यादव तथा बड़ी संख्या में एनसीसी कैडेट उपस्थित रहे और उन्होंने भी पौधारोपण किया। वक्ताओं ने जोर देकर कहा
गुलमोहर, निलगिरी – जैसे वृक्ष अपने देश के पर्यावरण के लिए घातक हैं।

पश्चिमी देशों का अंधानुकरण कर हम ने अपना बड़ा नुकसान कर लिया है पीपल, बरगद और नीम जैसे वृक्ष रोपना बंद होने से सूखे की समस्या बढ़ रही है।

ये सारे वृक्ष वातावरण में ऑक्सीजन की मात्रा बढ़ाते है। साथ ही, धरती के तापनाम को भी कम करते है।

हमने इन वृक्षों के पूजने की परंपरा को अन्धविश्वास मानकर फटाफट संस्कृति के चक्कर में इन वृक्षो से दूरी बनाकर *यूकेलिप्टस* ( *नीलगिरी* ) के वृक्ष सड़क के दोनों ओर लगाने की शुरूआत की। यूकेलिप्टस शीघ्रता से बढ़ते है लेकिन ये वृक्ष दलदली जमीन को सुखाने के लिए लगाए जाते हैं। इन वृक्षों से धरती का जलस्तर घट जाता है। विगत ४० वर्षों में नीलगिरी के वृक्षों को बहुतायात में लगा कर पर्यावरण की वडी़ हानि की गई है।

शास्त्रों में पीपल को वृक्षों का राजा कहा गया है।

मूले ब्रह्मा त्वचा विष्णु शाखा शंकरमेवच।
पत्रे पत्रे सर्वदेवायाम् वृक्ष राज्ञो नमोस्तुते।।
भावार्थ -जिस वृक्ष की जड़ में ब्रह्मा जी तने पर श्री हरि विष्णु जी एवं शाखाओं पर देव आदि देव महादेव भगवान शंकर जी का निवास है और उस वृक्ष के पत्ते पत्ते पर सभी देवताओं का वास है ऐसे वृक्षों के राजा पीपल को नमस्कार है।आगामी वर्षों में प्रत्येक ५०० मीटर के अंतर पर यदि एक एक पीपल, बड़ , नीम आदि का वृक्षारोपण किया जाएगा, तभी अपना भारत देश प्रदूषणमुक्त होगा। *घरों* में *तुलसी* के पौधे लगाना होंगे। हम अपने संगठित प्रयासों से ही अपने “भारत” को नैसर्गिक आपदा से बचा सकते हैं ।भविष्य में भरपूर मात्रा में नैसर्गिक ऑक्सीजन मिले इसके लिए आज से ही अभियान आरंभ करने की आवश्यकता है।

आइए हम पीपल , बड़ , बेल, नीम, आंवला एवं आम आदि वृक्षों को लगाकर आने वाली पीढ़ी को निरोगी एवं ” सुजलां *सुफलां* पर्यावरण ” देने का प्रयत्न करना समय की माग है।

पवन पाण्डेय बरहज

 

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