नई दिल्ली: मणिपुर हिंसा के मामले में सुप्रीम कोर्ट ने कड़ी टिप्पणी की है. चीफ जस्टसि डीवाई चंद्रचूड़ ने मंगलवार को इस मामले में सुनवाई करते हुए कहा कि हालात देखकर साफ नजर आ रहा है कि राज्य में स्थिति पुलिस नियंत्रण से बाहर है. मई से ही कानून व्यवस्था ठप है. सीजेआई ने मणिपुर के डीजीपी को समन भेजा है और जातीय हिंसा से जुड़ी कई याचिकाओं पर अगली सुनवाई 7 अगस्त को पेश होने का आदेश दिया है. न्यायालय ने साथ ही मणिपुर में महिलाओं को निर्वस्त्र घुमाए जाने की घटना और इससे जुड़ी जीरो FIR, नियमित प्राथमिकी दर्ज किए जाने की तारीखों का विवरण मांगा है.
सीजेआई ने इस दौरान हाईकोर्ट के पूर्व जजों की कमेटी बनाने की भी बात कही, जो मणिपुर में हिंसा के दौरान हुए नुकसान, मुआवजे और पीड़ितों के 162 और 164 के तहत बयान दर्ज करने की तारीखों का ब्योरा लेगी. चीफ जस्टिस ने कहा कि हम इस कमेटी का दायरा तय करेंगे. हम ये भी देखेंगे कि कौन सी एफआईआर की जांच सीबीआई के लिए सौंपी जाए. हम ये भी जानते हैं कि 6500 से एफआईआर की जांच सीबीआई को सौपना असंभव है.
महिलाओं के वीडियो मामले में सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि ये बिलकुल स्पष्ट है कि प्राथमिकी दर्ज करने में काफी देरी की गई. ऐसा लगता है कि पुलिस ने महिलाओं को निर्वस्त्र घुमाने जाने के बाद सिर्फ उनका बयान दर्ज किया, तुरंत प्राथमिकी दर्ज करने की कोशिश नहीं की. वहीं सुनवाई के दौरान सरकार की तरफ से सॉलिसीटर जनरल तुषार मेहता ने अपना पक्ष रखा.
उन्होंने कोर्ट में दलील दी कि हमने एक स्टेटस रिपोर्ट तैयार की है. जो तथ्यों पर है, भावनात्मक दलीलों पर नहीं. उन्होंने कहा कि सरकार ने सभी थानों को निर्देश दिया कि महिलाओं के प्रति अपराध के मामलों में तुरंत FIR दर्ज कर तेज कार्रवाई करें. राज्य में अब तक 250 गिरफ्तारियां हुई हैं और 1200 लोगों को हिरासत में लिया गया है. वहीं दो महिलाओं के यौन उत्पीड़न से जुड़े वीडियो के मामले में एक नाबालिग समेत 7 लोगों को गिरफ्तार किया.