बेंगलुरू: कर्नाटक उच्च न्यायालय ने फैसला सुनाया है कि 18 साल की उम्र से पहले की युवती की शादी को रद्द नहीं किया जा सकता है। पीठ ने इस संबंध में फैमिली कोर्ट के पहले के आदेश को भी रद्द कर दिया। मुख्य न्यायाधीश पी.बी. वराले और न्यायमूर्ति एस विश्वजीत शेट्टी ने यह आदेश हाल ही में एक महिला द्वारा इस संबंध में दायर याचिका पर सुनवाई करते हुए दिया।
पीठ ने कहा, हिन्दू विवाह अधिनियम की धारा 5(3) के अनुसार वर की आयु 21 तथा वधू की आयु 18 वर्ष होनी चाहिए। पीठ ने कहा कि विवाह के लिए 18 वर्ष की आयु निर्दिष्ट करने वाले नियम को अधिनियम की धारा 11 से बाहर रखा जा रहा है। विवाह रद्द करने के अलावा, तथ्यों को धारा 5 और नियम 1, 4 और 5 के विपरीत होना चाहिए। इसलिए इस मामले में विवाह को रद्द करना लागू नहीं होगा।
मांड्या जिले की याचिकाकर्ता सुशीला ने 15 जून 2012 को मंजूनाथ से शादी की थी। शादी के वक्त सुशीला नाबालिग थी। पति को इस बात का पता बाद में चला और उसने फैमिली कोर्ट में याचिका दायर कर शादी रद्द करने की मांग की। फैमिली कोर्ट ने याचिका को स्वीकार करते हुए कहा था कि हिंदू मैरिज एक्ट के मुताबिक दुल्हन की उम्र 18 साल होनी चाहिए और इस मामले में दुल्हन की उम्र 16 साल, 11 महीने और 8 दिन थी। अदालत ने कहा था कि यह विवाह हिंदू विवाह अधिनियम की धारा 11 के तहत मान्य नहीं होगा।
फैमिली कोर्ट ने 8 जनवरी 2015 को शादी रद्द करने के संबंध में आदेश दिया था। इस आदेश के खिलाफ पत्नी सुशीला ने हाईकोर्ट में अपील की थी।