कलाकार—अजय देवगन, तब्बू, दीपक डोबरियाल, विनीत कुमार, किरन कुमार, गजराज राव, अमला पॉल, संजय मिश्रा और अभिषेक बच्चन
लेखक—आमिल कीयान खान, अंकुश सिंह , संदीप केवलानी और श्रीधर दुबे (लोकश कनगराज की लिखी ‘कैथी’ पर आधारित)
निर्देशक—अजय देवगन
निर्माता—अजय देवगन , भूषण कुमार , कृष्ण कुमार , एस आर प्रकाशबाबू और एस आर प्रभु आदि
अजय देवगन की फिल्म भोला आज रिलीज हो चुकी है। 100 करोड़ के बजट में बनी इस फिल्म के निर्देशक और सहायक निर्माता भी अजय ही हैं। फिल्म में तब्बू और संजय मिश्रा जैसे उम्दा कलाकार भी हैं। ये 2019 में आई तमिल फिल्म कैथी की आधिकारिक हिंदी रीमेक है।
दृश्यम-2 के जरिये सफलता का जश्न मना चुके अजय देवगन अपने निर्देशन में भोला, जो तमिल फिल्म कैथी पर आधारित है, लेकर आए हैं। लोकेश कनगराज की कैथी को जिन हिन्दी भाषी दर्शकों ने देखा है, उन्हें भोला देखते हुए इस बात का अफसोस होता है कि वो क्योंकर इस फिल्म को देखने के लिए सिनेमाघरों में आए हैं।
इसका सबसे बड़ा कारण फिल्म के कथानक में किया गया बदलाव है। मूल फिल्म में नायक की कोई प्रेम कहानी नहीं दिखाई गई थी। वहाँ सिर्फ नायक अपनी बेटी से मिलने को आतुर दिखाया गया था, लेकिन यहाँ पर नायक की लम्बी प्रेम कहानी दिखाई गई है, प्रेम गीत दिखाए गए हैं। कहने का तात्पर्य यह है कि फिल्म ‘कैथी’ की मूल आत्मा फिल्म ‘भोला’ से गायब है। एक देहाती किस्म का इंसान यहां स्टाइलिश बदमाश बन जाता है। मूल फिल्म में न तो इस इंसान की पृष्ठभूमि का खुलासा किया गया है और न ही उसकी प्रेम कहानी के बारे में ही बात होती है। एक रहस्यमयी इंसान के पुलिस की मदद करने की कहानी फिल्म ‘भोला’ में रहस्यमयी नहीं रहती। शुरूआत के कुछ मिनटों के बाद ही फिल्म पटरी से उतर जाती है। फिल्म शुरू होते ही राय लक्ष्मी के आइटम नंबर के चक्कर में पटरी से उतर जाती है।
फिल्म का नायक दस साल सजा काट चुका भोला (अजय देवगन) है। वह जेल से रिहा होकर अपनी बेटी से मिलने के लिए निकलता है, तभी पुलिस ऑफिसर डायना जोसेफ (तब्बू) उससे मिलती है। डायना, भोला से ट्रक चलाकर हॉस्पिटल पहुंचाने के लिए कहती है, पर भोला मना कर देता है। आखिर डायना के कहने पर भोला ट्रक लेकर निकलता है, तब डायना की जान के दुश्मन बने कई आपराधिक गुट के लोग उस पर हमला कर देते हैं। इन हालातों से बचते-बचाते भोला कैसे आगे बढ़ता है, यही कहानी है।
निर्देशक के तौर पर अजय देवगन एक बार फिर मात खा गए हैं। वे फिल्म के सम्रह प्रभाव के बारे नहीं सोच पाए हैं। उन्होंने फिल्म को टुकड़ों में सोचा है जिसके चलते निर्देशन कमजोर नजर आता है। कहीं-कहीं पर वे प्रभावी देखते हैं। फिल्म में एक्शन बेहद दमदार है। कहीं-कहीं बहुत ऊंचे दर्जे का बन पड़ा है, जिसे बड़े सस्पेंस के साथ रोमांचक अंदाज में फिल्माया गया है। एक्शन पर निर्देशक, सिनेमैटोग्राफर और स्टंट टीम की पकड़ जबरदस्त है। फिल्म का बैकग्राउंड म्यूजिक एक्शन दृश्यों को प्रभावी बनाने में मदद करता है। बैकग्राउंड म्यूजिक केजीएफ फेम रवि बसरूर ने दिया है।
अजय देवगन की फिल्म में एक्शन पूरी तरह से हावी है, जिसके चलते इसके भावनात्मक दृश्यों का असर दर्शकों पर नहीं पड़ता है। अजय और तब्बू के मध्य बच्चों को लेकर की गई बातचीत भी कोई भावनात्मक रिश्ता नहीं जोड़ पाती है। भोला की कहानी एक्शन से शुरू होकर पारिवारिक रिश्तों की तरफ बढ़ती है। फिल्म का कथानक ‘भोला’ को बार बार आम आदमी बताता है लेकिन उसके अतीत की कहानी उसे शहर का छिछोरा साबित करती है। फिल्म यह भी जताने की कोशिश करती है कि भोला का अपने इलाके में ही नहीं बल्कि समंदर की लहरों तक आतंक रहा है।
अभिनय के मामले में अजय देवगन और तब्बू के अलावा संजय मिश्रा ने सबसे ज्यादा प्रभावित किया है। गजराज राव और दीपक डोबरियाल ने पूरी फिल्म में सिर्फ ओवर एक्टिंग की है। विनीत कुमार का निठारी का किरदार जरूर आतंक का पर्याय बन सकता था लेकिन उसे ठीक से विकसित ही नहीं किया गया।
फिल्म भोला की अधिकतर शूटिंग रात की है और इन दृश्यों का असर पैदा करने के लिए सिनेमैटोग्राफर असीम बजाज ने जो मेहनत की है, वह फिल्म के थ्रीडी कनवर्जन के बाद अपना प्रभाव खो देती है। आर पी यादव ने फिल्म के एक्शन दृश्य रचने में खासी मेहनत की है और ये फिल्म को आगे बढ़ान में थोड़ी बहुत मदद भी करते हैं। लेकिन, फिल्म में एक्शन के अलावा कुछ और है भी नहीं। संगीत विभाग में फिल्म फिर फेल हो जाती है। फिल्म का कोई भी गाना गुनगुनाने भर को भी याद नहीं रहता।
फिल्म एक रहस्मयी नोट पर छूटती है, जहां अभिषेक बच्चन का किरदार दिखता है। उम्मीद की जाती है कि फिल्म के अगले पार्ट में हमें अभिषेक एक बार फिर बतौर खूंखार विलेन भोला की जिंदगी तबाह करते दिखेंगे। पूरी फिल्म में जिस विनीत कुमार के किरदार के लिए आशु महाभारत मचाता रहता है, उसका विस्तार भी अगले पार्ट में दिखना मुमकिन है।