राष्ट्रपति भवन के ‘दरबार हॉल’ और ‘अशोक हॉल’ के बदले गए नाम, जानें क्या मिला नया नाम

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नई दिल्ली: राष्ट्रपति भवन के ‘दरबार हॉल’, ‘अशोक हॉल’ का नाम बदल दिया गया है। अशोक हॉल का नाम बदलकर अशोक मंडप किया गया है। वहीं अब राष्ट्रपति भवन के दरबार हॉल को गणतंत्र मंडप के नाम से जाना जाएगा। आज राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मु के दो वर्ष पूरे हुए हैं। इस मौके पर राष्ट्रपति भवन के हॉल के नाम बदल दिए गए हैं। नतीजतन अब राष्ट्रपति भवन के ‘दरबार हॉल’, ‘अशोक हॉल’ का नाम बदलकर क्रमशः ‘गणतंत्र मंडप’, और ‘अशोक मंडप’ कर दिया गया। राष्ट्रपति भवन हॉल के नाम बदले जाने पर कांग्रेस नेता राहुल गांधी ने भी प्रतिक्रिया दी है। राहुल गांधी ने कहा कि अशोक अच्छा नाम है।

अशोक हॉल की खासियत
अशोक हॉल जिसे अब अशोक मंडप के नाम से जाना जाएगा। राष्ट्रपति भवन की ऑफिशियली बेवसाइट के मुताबिक उसकी रोचक बात यह है कि कलात्मक रूप से निर्मित विशाल यह स्थान अब महत्त्वपूर्ण समारोहिक आयोजनों, विदेशों के मिशनों के प्रमुखों के पहचान-पत्र प्रस्तुत करने के लिए प्रयोग किया जाता है जिसे पहले स्टेट बॉल रूम के लिए उपयोग में लाया जाता था। इस कमरे की छत और फर्श दोनों का ही अपना आकर्षण है जबकि फर्श पूर्ण रूप से लकड़ी का बना हुआ है और इसकी सतह के नीचे स्प्रिंग लगे हुए हैं, अशोक हॉल की छतें तैल पेंटिंगों से सुसज्जित हैं।

छत के केंद्र में एक चमड़े की पेंटिंग है जिसमें पारसी सात कज़ार शासकों में से दूसरा शासक फतह अली शाह का अश्वारोही चित्र दिखाया गया है जो कि अपने 22 पुत्रों की मौजूदगी में एक बाघ का शिकार कर रहा है। 5।20 मीटर लंबी और 3।56 मीटर चौड़ी यह पेंटिंग फतह शाह ने स्वयं इंग्लैंड के जार्ज चतुर्थ को भेंट स्वरूप प्रदान की थी। लॉर्ड इरविन के कार्यकाल में भेंट की गई कलाकृति को लंदन के भारत ऑफिस लाइब्रेरी से मंगाया गया था। हॉल की दीवारें शाही जुलूस का प्रदर्शन करती हैं जबकि छतों को सीधे पेंट किया गया था, दीवारों को विशाल लटके हुए कैनवस से पूरा किया गया था।

इसमें बेल्जियम के कांच के झूमर लगे हैं। ऑर्केस्ट्रा के लिए स्थान के रूप में स्टेट बॉल रूम में एक मचान भी डिजायन किया गया था, जिसे खास समारोहों के दौरान राष्ट्रगान बजाने के लिए प्रयोग किया जाता है। दूसरी ओर, तीन गलियारे वातायन का एक साधन है जो हॉल में ताजी हवा देते हैं। जबकि अशोक हॉल के फ्रेंच विंडो से मुगल गॉर्डन का शानदार दृश्य दिखता है। दीवारें और स्तंभ पीले ग्रे मार्बल से बनाए गए हैं, फर्श और छत पर किए गए बेहतर कार्य इसका विरोधाभास है। इस जुएल बॉक्स के अन्य प्रमुख बिंदु हैं, पारसी कवि निजामी और एक फारसी महिला की पेंटिंग। ये अशोक हॉल के क्रमश: दक्षिणी और उत्तरी मेहराब के पीछे रखे गए हैं।

दरबार हॉल में क्या खास
राष्ट्रपति भवन का सर्वाधिक भव्य कक्ष दरबार हॉल ही है, जिसका नाम अब गणतंत्र मंडप कर दिया गया है। दरबार हॉल को पहले थ्रोन रूम के नाम से जाना जाता था और जहां पंडित जवाहरलाल नेहरू के नेतृत्व में स्वतंत्र भारत की प्रथम सरकार ने 15 अगस्त, 1947 को शपथ ली थी। साल 1948 में सी। राजगोपालाचारी ने भी भारत के गवर्नर जनरल के रूप में दरबार हॉल में शपथ ली थी। साल 1977 में राष्ट्रपति फखरूद्दीन अली अहमद के निधन के गंभीर अवसर पर दरबार हॉल को भारत के पांचवे राष्ट्रपति को श्रद्धांजलि देने के लिए इस्तेमाल किया गया था। इस जगह पर राष्ट्र के माननीय राष्ट्रपति द्वारा असैन्य और सैन्य सम्मान दिए जाते हैं और नई सरकार के शपथ समारोह दरबार हॉल में ही आयोजित किए जाते हैं।

इसकी 42 फुट ऊंची दीवारें सफेद मार्बल से सजी हुई हैं। गुंबद परिधि में 22 मीटर और भूमि से 25 मीटर ऊपर बताया जाता है। दुगुने गुंबदीय आकार के डोम के केंद्र में छिद्र सहित डबल डोम आकृति है जिससे दरबार हॉल में सूर्य की रोशनी प्रवेश करती है जो इसकी कला को स्पष्ट करती है। दरबार हॉल में इसकी छत से लटका हुआ 33 मीटर की ऊंचाई वाला एक अति सुंदर बेल्जियम कांच का झूमर दरबार हॉल को सुसज्जित करता है। इसमें चार अर्द्धगोलाकार झरोखे हैं जिसमें से दो दक्षिण की ओर और दो पूरब की ओर है जिसमें आलंकारिक मेहराब और चापालंकरण गुंबद में उत्कीर्णित हैं। दरबार हॉल सफेद शीर्ष और सतह युक्त पीले जैसलमेर मार्बल से बने हुए स्तंभों से घिरा हुआ है।

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