NASA की चंद्रमा के लिए रिहर्सल पूरी, ओरियन यान का धरती पर लौटना ऐतिहासिक कामयाबी कैसे है?

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नई दिल्ली: 50 साल पहले अपोलो मिशन को कामयाबी के साथ अंजाम देने वाला एक बार फिर से चंद्रमा पर इंसानों को भेजने के लिए अपने मिशन पर तेजी से आगे बढ़ रहा है और इस मिशन में नासा को बहुत बड़ी कामयाबी मिल गई है। अमेरिकी अंतरिक्ष एजेंसी नासा का ओरियन कैप्सूल (यान) रविवार को 40 हजार किलोमीटर प्रति घंटे की रफ्तार से सुरक्षित धरती पर लौट आया है। मैक्सिको के पास प्रशांत महासागर में नासा का ओरियन यान उतर गया है और नासा के मुताबिक, ये लैंडिंग पूरी तरह से कामयाब रही है।

धरती पर लौटा नासा का ओरियन कैप्सूल
नासा का ये ओरियन कैप्सूल मिशन मून में लगा एक तरह का ट्रायल रन था, यानि नासा ओरियन कैप्सूल के जरिए यह देखना चाहता था, कि उसका मिशन मून प्रोग्राम पूरी तरह से सुरक्षित है या नहीं। नासा अपने ओरियन कैप्सूल में ही वैज्ञानिकों को फिर से चंद्रमा पर भेजने वाला है और इस बार ओरियन कैप्सूल को बिना किसी अंतरिक्ष यात्री के भेजा गया था, जिसमें चंद्रमा पर बनने वाली परिस्थितियों का आकलन किया गया है। ओरियन कैप्सूल ने चंद्रमा की सतह पर स्थितियों का आकलन करने के अलावा वहां की तस्वीरें ली हैं। नासा का ओरियन कैप्सूल उसके आर्टिमिस ल्यूनर प्रोग्राम का हिस्सा है, जिसका मकसद चंद्रमा पर फिर से इंसानों को भेजना है। नासा ने अपने ट्रायल रन के दौरान ओरियन कैप्सूल में तीन इंसानों की आकृति वाले पुतलों को भेजा था, जो हूबहू तीनों अंतरिक्ष यात्रियों की ही तरह थे। इन तीनों पुतलों में सेंसर लगाया गया था, ताकि गतिविधियों को रिकॉर्ड किया जा सके।

मिशन मून का एक भाग कंप्लीट
नासा की रिपोर्ट के मुताबिक, ओरियन कैप्सूल के धरती पर उतरने की रफ्तार 39 हजार 400 किलोमीटर प्रति घंटे की थी और इसने प्रशांत महासागर में उतरने के बाद पानी के अंदर करीब 20 मिनट तक डूबकी लगाई। इस दौरान ओरियन कैप्सूल ने अपने सर्विस मॉड्यूल को खुद से अलग किया, जो धरती के वायुमंडल में आने के बाद करीब 2760 डिग्री सेल्सियस कर गर्म हो गया था। नासा के मुताबिक, ये सारा प्रोग्राम पूरी तरह से तय शेड्यूल के मुताबिक हो रहा था। नासा के कमेंटेटर रॉब नेवियास ने लाइव स्ट्रीम पर बात करते हुए कहा कि, ‘ओरियन कैप्सूल धरती पर लौट आया है और ट्रैंक्विलिटी बेस से टॉरस-लिट्रो तक और फिर वापस प्रशांत महासागर के शांत जल पर लैंडिंग… ये नासा के नये चैप्टर को खोल रहा है।’

25 दिनों तक चला नासा का मिशन
नासा का मिशन मून अभियान साल 2024 में अंजाम पर पहुंचने वाला है, यानि 2024 में नासा अपने अंतरिक्ष यात्रियों को चंद्रमा की सतह पर उतारने के लिए काम कर रहा है। इस मिशन के दौरान चार अंतरिक्ष यात्री चंद्रमा की सतह पर उतरेंगे और नासा अपने अपोलो मिशन के 50 सालों के बाद इस मिशन पर आगे बढ़ रहा है। ओरियन कैप्सूल ने 16 नवंबर को चंद्रमा के लिए उड़ान भरी थी और धरती पर वापस उतरने से पहले उसने करीब एक हफ्ते कर चंद्रमा पर वक्त बिताया। ओरियन कैप्सूल चंद्रमा की सतह से सिर्फ 127 किलोमीटर ही दूर था और ये दो हफ्ते पहले चंद्रमा से 434,500 किलोमीटर अंतरिक्ष में अपने सबसे दूर के प्वाइंट तक पहुंच गया था।

कितना अहम है ओरियन की कामयाबी
नासा का ये मिशन काफी महत्वपूर्ण है, क्योंकि इसके लिए वैज्ञानिक कई तरह की प्लानिंग कर रहे हैं, जिसमें चंद्रमा पर कॉलोनी बसाने के अलावा चंद्रमा को बेस कैंप बनाने की भी है, ताकि भविष्य में अन्य ग्रहों के लिए जो मिशन हो, उसका बेस कैंप चंद्रमा बने। वहीं, आर्टिमिस मिशन के तहत जो अंतरिक्ष यात्री चंद्रमा पर भेजे जाएंगे, उनका मिशन चंद्रमा पर कई तरह का खोज करना होगा, ताकि इंसानी जीवन बसाने की किसी योजना की दिशा में आगे बढ़ा जाएगा। जो खाली कैप्सूल चंद्रमा का जायजा लने के बाद धरती पर उतरा है, वो एक तरह से रिहर्सल है और जांच की जा रही थी, कि क्या मिशन में कोई दिक्कत तो नहीं है? ओरियन कैप्सूल के साथ रेडिएशन के प्रभाव की जांच के लिए कुछ स्पेस शूट और गुरुत्वाकर्षण के प्रभाव को जानने के लिए कुछ खिलौने भी भेजे गये थे, जिनकी अब जांच की जाएगी, ताकि चंद्रमा पर रेडिएशन की जांच की जा सके।

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