नई दिल्ली : भगोड़े नीरव मोदी (Nirav Modi) को भारत प्रत्यर्पित किये जाने की स्थिति में उसके आत्महत्या (Suicide) करने के जोखिम के स्तर का पता लगाने के लिए मंगलवार (11 अक्टूबर) को लंदन हाई कोर्ट (London High Court) में सुनवाई हुई. इस दौरान मनोविज्ञान के दो एक्सपर्ट्स ने अपने तर्क पेश किए.
लॉर्ड जस्टिस जेरेमी स्टुअर्ट-स्मिथ और जस्टिस रॉबर्ट जे ने प्रत्यर्पण के खिलाफ 51 वर्षीय हीरा कारोबारी नीरव की अपीलों पर अंतिम चरण की सुनवाई में एक्सपर्टों की दलीलों को सुना. कार्डिफ विश्वविद्यालय में फोरेंसिक मनोविज्ञान के प्रोफेसर एंड्रयू फॉरेस्टर और ऑक्सफोर्ड विश्वविद्यालय में फोरेंसिक मनोविज्ञान की प्रोफेसर सीना फजेल ने दलीलें रखी.
दोनों मनोविज्ञानियों ने नीरव के डिप्रेशन के स्तर को आंका जिसमें उनके आत्महत्या कर लेने का अधिक जोखिम है. दोनों ने दक्षिण पश्चिम लंदन की वैंड्सवर्थ जेल में नीरव मोदी के मन में चल रही उठापटक के अपने आकलन का खुलासा किया और कहा कि वह प्रत्यर्पित किये जाने की स्थिति में केवल खुद को जानलेवा नुकसान पहुंचाने या फांसी पर लटकने की सोचता है.
फॉरेस्टर ने अदालत में कहा कि उनके आकलन के मुताबिक नीरव मोदी के खुदकुशी करने का अत्यधिक जोखिम है. हालांकि, फजेल का विश्लेषण था कि वह मामूली तनावग्रस्त लगता है. फजेल ने कहा, ‘‘वह अच्छी तरह काम करता है, सवालों का सोच-समझकर जवाब देता है और अनिद्रा, खाने-पीने की इच्छा नहीं होना या भ्रम होने जैसे गंभीर अवसाद वाले लक्षण उसमें नहीं हैं.’’
दोनों एक्सपर्ट नीरव के मानसिक स्वास्थ्य में कुछ स्थायी भावों को लेकर भी असहमत दिखे. फजेल का कहना था कि अवसाद साध्य बीमारी है जिसका आशय हुआ कि अगर मुंबई की आर्थर रोड जेल के हालात उसे उतने डरावने नहीं लगे जैसा वह सोच रहा है तो उसकी हालत में सुधार हो सकता है.
गौरतलब है कि भारत प्रत्यर्पित किये जाने पर नीरव मोदी को आर्थर रोड जेल में रखा जा सकता है. उनपर पंजाब नेशनल बैंक (पीएनबी) कर्ज घोटाले के मामले में करीब दो अरब डॉलर की धोखाधड़ी और मनी लॉन्ड्रिंग का आरोप है.