नई दिल्ली : संन्यास के करीब 9 साल बाद भी वीरेंद्र सहवाग का कोई विकल्प टीम इंडिया को नहीं मिल पाया है। आज भी उनकी बेखौफ बल्लेबाजी की तारीफों के पुल बांधे जाते हैं, हालांकि अब तो वे खुद ही अपनी ही तारीफ करने लगे हैं।
बता दें कि टीम इंडिया के धुरंधर बल्लेबाज वीरेंद्र सहवाग अपने दौर के सबसे धाकड़ बल्लेबाजों में से रहे हैं। वह अपनी विस्फोटक बल्लेबाजी से किसी भी खतरनाक गेंदबाजी आक्रमण को ध्वस्त कर देते थे। वह सीमित ओवर फॉर्मेट के अलावा टेस्ट में भी आक्रामक बैटिंग करते थे। उन्होंने टेस्ट में दो तिहरे शतक जड़ने के अलावा 6 डबल सेंचुरी ठोकीं। मौजूदा दौर के कई भारतीय बल्लेबाजों की अक्सर सहवाग से तुलना की जाती है। हालांकि, सहवाग का मानना है कि टीम इंडिया में कोई भी उनकी तरह बैटिंग नहीं करता।
विदित हो कि सहवाग ने एक न्यूज चौपाल पर बातचीत के दौरान कहा कि मुझे नहीं लगता कि टीम इंडिया में मेरी तरह बैटिंग करने वाला कोई प्लेयर है। मेरे दिमाग में दो खिलाड़ी हैं, जो थोड़ा इसके नजदीक हैं, वो पृथ्वी शॉ और ऋषभ पंत हैं। मैं टेस्ट क्रिकेट में जिस तरह की बैटिंग करता था, उसके हिसाब से मुझे लगता है कि ऋषभ पंत थोड़ा ज्यादा नजदीक हैं। हालांकि, पंत 90-100 से संतुष्ट है लेकिन मैं 200, 250 और 300 बनाता था और तब जाकर संतुष्ट होता था। अगर वह अपने खेल को उस स्तर तक ले जाता है तो मुझे लगता है कि वह फैंस को और भी एंटरटेन कर सकता है।
बता दें कि सहवाग ने पहली ट्रिपल सेंचुरी साल 2004 में पाकिस्तान के खिलाफ टेस्ट में बनाई थी। वह तिहरा शतक बनाने वाले पहले भारतीय क्रिकेटर हैं। उन्होंने दूसरी ट्रिपल सेंचुरी 2008 में दक्षिण अफ्रीका के विरुद्ध लगाई। वह 2009 में तीसरा तिहरा शतक जड़ने के करीब थे लेकिन 7 रन से चूक गए। उन्होंने श्रीलंका के सामने 293 रन की पारी खेली थी। सहवाग हमेशा जोखिम उठाकर बल्लेबाजी करते थे। वह चाह जीरो पर हों या फिर 99 के निजी स्कोर पर, उनका माइंडसेट एक जैसा रहता था।
सहवाग ने कहा कि मैं शुरुआत में टेनिस बॉल क्रिकेट खेलता था, जिसमें मेरा माइंडसेट बाउंड्री के जरिए ज्यादा रन बटोरना होता था। मैं अंतरराष्ट्रीय क्रिकेट में भी इसी टेम्पलेट के साथ खेला। मैं गिनता था कि मुझे शतक बनाने के लिए कितनी बाउंड्री की जरूरत है। अगर मैं 90 पर हूं और 100 तक पहुंचने के लिए 10 गेंद खेलता हूं तो विपक्षी टीम के पास मुझे आउट करने के लिए 10 गेंदें होंगी। यही वजह थी कि मैं बाउंड्री मारने की फिराक में रहता था ताकि मुझे सैकड़ा कंप्लीट करने से रोकने के लिए विपक्षी टीम को केवल दो गेंद मिलें।”