खेतों में पराली नहीं जलाने पर अब किसानों मिलेंगे 1000 रुपये!

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नईदिल्ली : देश में इस साल पराली जलाने के मामले काफी कम रहे. बिना प्रदूषण के पराली निपटाने में पूसा डीकम्पोजर ने भी अहम भूमिका निभाई. इसके छिड़काव से फसल अवशेषों को गलाकर खाद बनाई जा रही है. इससे खाद का खर्च तो बच ही रहा है, साथ ही मिट्टी की उपजाऊ शक्ति भी बढ़ जाती है. आज ये इको फ्रेंडली सोल्यूशन खेती-किसानी और पर्यावरण के लिये वरदान बन चुका है.

कई राज्य सरकारों ने पूसा डीकम्पोजर को इस्तेमाल को बढ़ावा दिया है. अभी तक दिल्ली सरकार तो खेतों में डीकम्पोजर का मुफ्त स्प्रे करवा ही रही है. अब इस कड़ी में हरियाणा भी शामिल हो गया है. रिपोर्ट्स के अनुसार, हरियाणा में पराली प्रबंधन करने के लिये पूसा डीकम्पोजर का छिड़काव मुफ्त में किया जायेगा.

हरियाणा के यमुनानगर जिले में करीब 85 हजार हेक्टेयर जमीन पर धान की फसल खड़ी थी. धान की कटाई के बाद पराली जलाने की घटनाओं को रोकने के लिये कृषि एवं किसान कल्याण विभाग ने मुफ्त में डीकम्पोजर का छिड़काव करवाने का फैसला किया है. इससे पर्यावरण भी प्रदूषित नहीं होगा और मिट्टी के लिए भी खाद का इंतजाम हो जायेगा. इतना ही नहीं, पराली निपटाने के लिये राज्यभर के किसानों को ये सुविधा मुहैया करवाई जायेगी. वहीं जो भी किसान पराली की छिड़काव अपने खेतों में करवायेगा, सरकार उसे 1,000 रुपये का अनुदान के तौर पर देगी.

पूसा डीकम्पोजर को फसल अवशेषों को गलाने के लिये विकसित किया गया है. ये पराली को निपटाने का सबसे सस्ता और टिकाऊ तरीका बन चुका है. किसान खुद तो पूसा डीकम्पोजर खरीद ही रहे हैं. साथ ही अब राज्य सरकारें भी किसानों को डीकम्पोजर छिड़काव की सुविधा मुफ्त में उपलब्ध करवा रही है. जानकारी के लिये बता दें कि पूसा डीकम्पोजर एक जैव सॉल्यूश है, जो पाउडर के तौर पर कैप्सूल में और तरल पदार्थ के तौर पर बोतलों में भरा होता है. कृषि विशेषज्ञों के मुताबिक, डीकम्पोजर का स्प्रे करने वाली मशीन भी एक दिन में 20 एकड़ से ज्यादा जमीन कवर कर लेती है.

एक एकड़ खेत में पराली को निपटाने के लिए 300 ग्राम डीकम्पोजर काफी रहता है. इस दवा को 500 लीटर पानी में मिलाकर पराली पर छिड़क सकते हैं.
ये बेहद कम दामों में उपलब्ध करवाया जाता है, इसलिये किसान चाहें तो खुद भी पूसा डीकम्पोजर खरीदकर फसल अवशेषों पर छिड़काव कर सकते हैं.
डीकम्पोजर स्प्रे के बाद खेतों में हल्की सिंचाई लगा दी जाती है, जिससे फसल अवशेषों को गलने में आसानी रहते हैं. इस प्रोसेस में 2 सप्ताह लग जाते हैं.
फिर किसान चाहें तो पराली गलने के बाद खेत की जुताई किये बिना ही सीड़ ड्रिल मशीन (Seed Drill Machine) से भी गेहूं की बुवाई का काम भी कर सकते हैं.

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