नई दिल्ली : बिहार में नीतीश सरकार अब जाति आधारित जनगणना करवा सकेगी। जनगणना को रोकने के लिए दाखिल याचिका को पटना हाई कोर्ट ने खारिज कर दिया है। कोर्ट के इस फैसले के साथ ही नीतीश सरकार को अब प्रदेश में जातिगत जनगणना करवाने के लिए हरी झंडी मिल गई है। इससे पहले इस मामले को लेकर लगातार चर्चा जारी थी और हाईकोर्ट के फैसले का इंतज़ार किया जा रहा था।
याचिकाकर्ताओं का कहना है कि अब वह इस मामले को फिर से सुप्रीम कोर्ट के सामने रखेंगे। मुख्य न्यायाधीश के विनोद चंद्रन और न्यायमूर्ति पार्थ सारथी की पीठ ने जाति-आधारित जनगणना को चुनौती देने वाली विभिन्न याचिकाओं पर यह फैसला सुनाया है।
बिहार सरकार यह सर्वे जनवरी के महीने में शुरू कर चुकी थी लेकिन हाईकोर्ट ने इसपर रोक लगा दी थी। सर्वे दो चरणों में किया जाना था। पहला चरण जनवरी में किया गया था जिसके तहत घरेलू गिनती का अभ्यास किया गया था। सर्वे का दूसरा चरण 15 अप्रैल को शुरू हुआ, जिसमें लोगों की जाति और सामाजिक-आर्थिक स्थितियों से संबंधित डेटा इकट्ठा करने पर ध्यान केंद्रित किया गया था। पूरी प्रक्रिया इस साल मई तक पूरी करने की योजना थी, लेकिन 4 मई को हाई कोर्ट के फैसले के बाद इसे रोक दिया गया था।
मुख्य न्यायाधीश के विनोद चंद्रन और न्यायमूर्ति मधुरेश प्रसाद की पीठ ने रोक लगाने की मांग वाली तीन याचिकाओं पर आदेश पारित किया था। इसमें पाया गया कि सर्वे एक जनगणना थी, जिसे केवल केंद्र सरकार ही कर सकती है।
कोर्ट ने कहा था, “हमने पाया है कि जाति-आधारित सर्वे एक सर्वे की आड़ में जनगणना है, इसे पूरा करने की पावर विशेष रूप से केंद्रीय संसद के पास है, जिसने जनगणना अधिनियम, 1948 भी बनाया है।” इसके बाद, बिहार सरकार ने जाति-आधारित सर्वेक्षण पर रोक लगाने वाले उच्च न्यायालय के आदेश के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट का रुख किया था।
हालांकि सुप्रीम कोर्ट ने रोक हटाने से इनकार कर दिया था। इसके बाद मामले की सुनवाई हाईकोर्ट ने की, जिसके बाद आज का फैसला आया है। अधिवक्ता अपराजिता और राहुल प्रताप याचिकाकर्ता यूथ फॉर इक्वेलिटी की ओर से पेश हुए थे।