अयोध्या : अयोध्या के भव्य राम मंदिर में आज रामलला की प्राण प्रतिष्ठा हो रही है। आज श्रीरामलला की प्राण प्रतिष्ठा में आरती के समय सेना के हेलीकॉप्टर पुष्प वर्षा करेंगे। वहीं कलाकार भारतीय वाद्ययंत्र बजाएंगे। साथ ही मौजूद मेहमान घंटियां बजाकर परिसर के माहौल को राममय करेंगें।
यह मंदिर महज पूजा करने की जगह नहीं है, बल्कि इसमें प्राचीन आस्था और आधुनिक विज्ञान का भी मित्रण है। राम मंदिर मॉर्डन इंजीनियरिंग के चमत्कार को दर्शाता है। इसे इतनी ज्यादा मजबूती दी गई है कि यह भूकंप के जोरदार झटकों और भीषण बाढ़ का सामना भी आसानी से कर सकता है। साथ ही अयोध्या का यह दिव्य राम मंदिर 1,000 साल तक मजबूती से खड़ा रहने वाला है।
दूसरी ओर भारत में एक ऐसा समुदाय है जो न मंदिर जाता है और न ही मूर्ति पूजा करता है फिर भी राम का सबसे बड़ा भक्त समुदाय है. इस समुदाय के लोग अपने पूरे शरीर पर राम नाम गुदवाते हैं. रामनामी को ओढ़ते हैं और अपने अराध्य प्रभु भगवान श्रीराम को शरीर के रोम-रोम में बसाते हैं. चेहरे से लेकर हाथों और पैरों तक हर जगह इन्होंने प्रभु श्रीराम का नाम गुदवाया होता है. यह समुदाय काफी पुराना है और राम के नाम को अपने शरीर में स्थित मांस के हर हिस्से पर गुदवाता है. इस समुदाय के लोग सफेद कपड़ा ओढते हैं जिस पर भी श्रीराम का नाम अंकित होता है. इस समुदाय से जुड़े लोग मोरपंखी मुकुट पहनते हैं और घुंघरू बजाते हुए राम नाम का जाप करते हैं. इस समुदाय का नाम है रामनामी समुदाय.
रामनामी समुदाय की भक्ति का तरीका अलग है. ये अपने शरीर को ही मंदिर मानते हैं. यह समुदाय काफी पुराना है और छत्तीसगढ़ से इसका नाता है. इस समाज की स्थापना छत्तीसगढ़ के जांजगीर-चांपा के एक छोटे से गांव चारपारा में हुई थी. पिछले 134 सालों से यह समाज अपनी परंपराओं को निभाते हुए आ रहा है. इस समाज की स्थापना 1890 में हुई थी. रामनामी समुदाय की स्थापना 1890 में परशुराम नाम के व्यक्ति ने की थी. इस समुदाय का दोहा भी है- राम नाम की लूट है, लूट सके तो लूट। अंत समय पछतायेगा, जब प्राण जायेंगे छूट॥ दरअसल, इस समाज की स्थापना राम मंदिर में जाने दिए जाने के विरोध में हुई थी और तब से यह समुदाय अपने पूरे शरीर पर भगवान श्रीराम का नाम गुदवाता है. इस समुदाय के संस्थापक परशुराम को उस वक्त के पुजारियों ने राम मंदिर में प्रवेश से रोक दिया था जिसके बाद उन्होंने अपने पूरे शरीर पर राम नाम गुदवा दिया. यह समुदाय मध्य प्रदेश, झारखंड और छत्तीसगढ़ में फैला हुआ है.
इस समुदाय में जन्म लेने वाला हर व्यक्ति अपने शरीर में राम का नाम गुदवाता है. जिस व्यक्ति के शरीर पर भगवान श्रीराम का नाम लिखा होता है वो कभी शराब का सेवन नहीं करता और हर रोज राम नाम का जप करता है. जब परशुराम ने अपने शरीर पर राम नाम लिख दिया तो इसका विरोध भी हुआ और उन्हें ऊंची जातियों का शोषण भी सहना पड़ा. 1912 में यह मामला ब्रिटिश कोर्ट में गया और जिसमें कोर्ट ने कहा कि राम नाम सभी का है. इसके बाद अपने शरीर पर भगवान श्रीराम का नाम अंकित करवाने वालों की संख्या बढ़ती गई और यह समुदाय फैल गया. फिर ये एक परंपरा बन गई. छोटी उम्र से ही रामनामी समुदाय में पैदा हुआ व्यक्ति अपने शरीर पर राम नाम गोदना शुरू कर देता है. इस समुदाय के व्यक्तियों की पहचान दूर से ही हो जाती है.