नई दिल्ली: प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी आगामी 21-22 अगस्त को पोलैंड का दौरे पर रहेंगें । बीते 45 साल में किसी भारतीय प्रधानमंत्री की यब पहली पोलैंड यात्रा होगी। इसके बाद वह युद्धग्रस्त युक्रेन भी जाने वाले हैं। साल 1992 में दोनों देशों के बीच राजनयिक संबंध स्थापित होने के बाद कोई भारतीय प्रधानमंत्री पहली बार युद्धग्रस्त यूक्रेन पहुंच रहे हैं।
आगामी बुधवार यानी 21अगस्त को पोलैंड के वारसॉ में पीएम मोदी का औपचारिक स्वागत किया जाएगा। वह यहां राष्ट्रपति आंद्रेज सेबेस्टियन डूडा से मुलाकात करेंगे और प्रधानमंत्री डोनाल्ड टस्क के साथ भी द्विपक्षीय वार्ता करेंगे। इतना ही नही PM मोदी पोलैंड में रह रहे भारतीय समुदाय के लोगों से भी एक मुलाकात करेंगे। पोलैंड के बाद प्रधानमंत्री मोदी यूक्रेन भी जाएंगे, जहां वह कीव में राजनीतिक, व्यापार, आर्थिक, निवेश, शिक्षा, सांस्कृतिक, जन-संपर्क, मानवीय सहायता और अन्य क्षेत्रों में द्विपक्षीय संबंधों पर चर्चा करेंगे। वे यूक्रेन में वह भारतीय समुदाय के छात्रों तथा अन्य लोगों से भी मुलाकात करेंगे।
इस बाबत विदेश मंत्रालय ने मोदी की 23 अगस्त की यात्रा की घोषणा करते हुए कहा थी कि यह एक “महत्वपूर्ण और ऐतिहासिक” यात्रा होगी, जो 30 साल पहले दोनों देशों के बीच राजनयिक संबंध स्थापित होने के बाद से किसी भारतीय प्रधानमंत्री की यूक्रेन की पहली यात्रा होगी। सूत्रों की मानें तो प्रधानमंत्री पोलैंड से कीव तक ट्रेन से यात्रा करेंगे, जिसमें करीब 10 घंटे लगेंगे। वापसी की यात्रा भी लगभग इतनी ही अवधि की होगी। अमेरिका के राष्ट्रपति जो बाइडन समेत विश्व के कई नेताओं ने भी यूक्रेनी सीमा के पास स्थित पोलिश रेलवे स्टेशन से ट्रेन द्वारा कीव की यात्रा की है।
प्रधानमंत्री की यूक्रेन यात्रा कीव द्वारा रूसी क्षेत्र में ताजा सैन्य आक्रमण के बीच हो रही है। PM मोदी की कीव यात्रा मॉस्को की उनकी हाई-प्रोफाइल यात्रा के कुछ सप्ताह बाद हो रही है, जिसकी अमेरिका और उसके कुछ पश्चिमी सहयोगियों ने आलोचना की थी। विदेश मंत्रालय ने कहा कि मोदी-जेलेंस्की वार्ता में भारत-यूक्रेन संबंधों के संपूर्ण आयाम पर ध्यान केंद्रित किए जाने की उम्मीद है, जिसमें कृषि, बुनियादी ढांचा, फार्मास्युटिकल्स, स्वास्थ्य और शिक्षा, रक्षा और लोगों के बीच आपसी संबंध शामिल हैं। यह पूछे जाने पर कि क्या भारत यूक्रेन के पुनर्निर्माण में रुचि रखता है, विदेश मंत्रालय ने कहा कि भारत न केवल संघर्ष का शांतिपूर्ण समाधान खोजने के लिए, बल्कि सभी आवश्यक सहायता और योगदान देने के लिए भी तैयार है।