दिल्ली के प्राइवेट स्कूलों को 25 फीसदी सीटों पर EWS बच्चों को देना होगा दाखिला, हाईकोर्ट के निर्देश

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उच्च न्यायालय ने शुक्रवार को महत्वपूर्ण फैसले में कहा है कि निजी स्कूलों को 25 फीसदी सीटों पर कम आय वर्ग (ईडब्ल्यूएस) और वंचित समूह के बच्चों को दाखिला देना होगा। इन सीटों की गणना सामान्य श्रेणी में कितने छात्रों का दाखिला हुआ है, इस पर निर्भर नहीं करेगा, बल्कि इस बात पर तय होगा कि शैक्षणिक सत्र में कक्षा की कुल घोषित क्षमता कितने सीटों की है। उच्च न्यायालय के इस फैसले का प्रभाव न सिर्फ दिल्ली, बल्कि देश के अन्य राज्यों के निजी स्कूलों पर भी होगा। जस्टिस चंद्रधारी सिंह ने 85 पन्नों के फैसले में दिल्ली सरकार को गैर सहायता प्राप्त निजी स्कूलों में समाज के कमजोर वर्गों के बच्चों का प्रवेश सुनिश्चित करने का निर्देश दिया है।

कार्रवाई करने में संकोच नहीं करे
अदालत ने कहा कि यदि कोई स्कूल शिक्षा के अधिकार अधिनियम का पालन नहीं करता है तो सरकार व शिक्षा निदेशालय कार्रवाई करने में संकोच नहीं करे। बच्चों को अपने मौलिक अधिकारों के लिए कोर्ट आने की जरूरत नहीं होनी चाहिए। सबसे पहले यह तय करना जरूरी है कि ईडब्ल्यूएस श्रेणी के छात्रों को कितनी फीसदी सीटों पर दाखिला दिया जाए। कक्षा में दाखिल बच्चों की वास्तविक क्षमता के आधार पर या फिर शैक्षिक वर्ष में कक्षा के लिए मंजूर की गई सीटों के आधार पर।

कानून में कम से कम 25 फीसदी की बात
न्यायालय ने कहा है कि आरटीई अधिनियम के प्रावधानों से साफ है कि कक्षा में घोषित कुल सीटों के 25 फीसदी सीटों पर ईडब्ल्यूएस व वंचित समूह के बच्चों को दाखिला मिलना चाहिए। जस्टिस सिंह ने कहा है कि कानून में कम से कम 25 फीसदी की बात की गई है। इससे कम सीटों पर दाखिला नहीं दिया जाना चाहिए, क्योंकि यह देश की संसद ने तय किए हैं। स्पष्ट कर दिया है कि ईडब्ल्यूएस कोटे में 25 फीसदी से अधिक सीटों पर दाखिला हो जाए तो कोई परेशानी की बात नहीं, बल्कि कानून के हिसाब से इससे कम सीटों पर दाखिला नहीं हो सकता है।

सभी छात्रों का दाखिला हो
उच्च न्यायालय ने सरकार के शिक्षा निदेशालय को यह सुनिश्चित करने का आदेश दिया है कि ईडब्ल्यूएस श्रेणी के छात्रों के चयनित छात्रों को उसके घर के पास के स्कूल में दाखिला हो। दाखिला सक्षम प्राधिकार द्वारा तय समय एक माह के भीतर होने चाहिए।

मान्यता समाप्त करने की कार्रवाई करें
उच्च न्यायालय ने सरकार और शिक्षा निदेशालय को आदेश दिया है कि यदि कोई स्कूल आरटीई अधिनियम के प्रावधानों का पालन नहीं करता है तो उसकी मान्यता समाप्त करने की कार्रवाई करने में संकोच नहीं करें। साथ ही, अन्य तरह की कार्रवाई भी समय सीमा के भीतर करने के कहा है।

यह है मामला
कुछ बच्चों की ओर से अधिवक्ता खगेश झा और शिखा बग्गा ने बताया कि शिक्षा निदेशालय की सिफारिश के बाद भी स्कूल किसी न किसी बहाने दाखिला देने से इनकार कर रहे थे। कुछ स्कूल इस आधार पर दाखिला देने से इनकार कर रहे थे कि उनके यहां समान्य श्रेणी में कम दाखिला हुए हैं। स्कूल बच्चों को कभी दस्तावेज के नाम पर तो कभी सत्यापन के नाम पर दाखिला देने से इनकार कर देते थे।

स्थिति भयावह और‌ पीड़ादायक
न्यायालय ने निजी स्कूलों में कम आय वर्ग व वंचित समूह के बच्चों को निशुल्क कोटे में दाखिला नहीं मिलाने पर चिंता जताते हुए कहा कि स्थिति भयावह और‌ पीड़ादायक है। इन बच्चों ने गरीबी में पैदा होने के अलावा कोई अपराध नहीं किया है। जस्टिस चंद्रधारी सिंह ने अपने फैसले में कहा, ‘इस अदालत की अंतरात्मा गरीब बच्चों और उनके माता-पिता के दुखों से भरी हुई है। यह सरकार का अपने कर्तव्यों में का पालन करने में विफलता है।’ न्यायालय ने निजी स्कूलों में दाखिले की मांग को लेकर बच्चे और उनके अभिभावकों की ओर से दाखिल 39 याचिकाओं का निपटारा करते हुए यह फैसला किया है।

स्कूल दाखिला देने से इनकार नहीं करेगा
उच्च न्यायाललय ने आदेश दिया है कि कोई भी स्कूल किसी भी ईडब्ल्यूएस छात्र-छात्रा को दाखिला देने से इनकार नहीं करेगा। शिक्षा निदेशालय द्वारा सिफारिश व लिस्ट भेजे जाने के बाद कोई भी स्कूल दाखिला देने से किसी भी आधार पर इनकार नहीं करेगा। यदि स्कूल को विद्यार्थी की वास्तविकता पर कोई संदेह है तो भी वह दाखिला देने से मना नहीं करेगा और अपनी बात शिक्षा निदेशालय के समक्ष रखेगा।

फैसले में गांधी के विचारों को भी रखा
उच्च न्यायालय ने फैसले में शिक्षा के महत्व को रेखांकित करते हुए नई तालीम (नई शिक्षा) पर राष्ट्रपिता महात्मा गांधी के विचारों का जिक्र किया। कहा कि बुनियादी शिक्षा 6 से 14 साल तक के सभी बच्चों के उनकी आर्थिक पृष्ठभूमि के बावजूद मुफ्त और अनिवार्य होनी चाहिए। फैसले में साप्ताहिक प्रकाशन ‘हरिजन’ में महात्मा गांधी की लिखी बात का भी उल्लेख किया है, ‘मैं भारत के लिए मुफ्त और अनिवार्य प्राथमिक शिक्षा के सिद्धांत में दृढ़ विश्वास रखता हूं। मैं यह भी मानता हूं कि हम इसे केवल बच्चों को एक उपयोगी व्यवसाय सिखाने से ही महसूस करेंगे।’

सच्चा अर्थशास्त्र कभी भी मुफ्त शिक्षा के खिलाफ नहीं जाता
न्यायालय ने कहा है कि सच्चा अर्थशास्त्र कभी भी मुफ्त शिक्षा के खिलाफ नहीं जाता है। न्यायमूर्ति सिंह ने फैसले में ‌संस्कृत श्लोक का ‘अन्नदानम परम दानम विद्यादानम अतः परम। अन्नेन क्षविका तृप्तह यिज्जिचम विद्या। अर्थात किसी व्यक्ति को भोजन देकर दान देना एक महान कर्म है, लेकिन विद्या (शिक्षा) देना और भी बेहतर है क्योंकि खाने से संतुष्टि (प्राप्त) होती है। भोजन क्षणिक होता है, लेकिन विद्या ‌जीवन भर रहता है।’

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