Purple Day History : देश में चाइल्डहुड एब्सेंस एपिलेप्सी एक आम बीमारी, पर्पल डे ऑफ एपिलेप्सी आज…
Purple Day History : पर्पल डे ऑफ एपिलेप्सी हर साल 26 मार्च को मनाया जाता हैं। इसका लक्ष्य लोगो को एपिलेप्सी यानी मिर्गी के बारे में जागरूक करना है। विश्व स्वास्थ्य संगठन (WHO) के अनुसार , दुनिया में 5 करोड़ लोगो को मिर्गी के दौरे आते हैं जिसमे बच्चे भी शामिल हैं। इस बीमारी के सबसे 80% मामले लॉ और मिडिल इनकम देशों में पाये जाते है।
अगर बात करे भारत की तो यहां एपिलेप्सी टॉप 3 न्यूरोलॉजिकल डिसऑर्डरस में से एक हैं। छोटे बच्चो में चाइल्डहुड एब्सेंस एपिलेप्सी होना नॉर्मल है। ये बचपन में होने वाला एपिलेप्सी सिंड्रोम है।
आखिर चाइल्डहुड एब्सेंस एपिलेप्सी क्या है?
चाइल्डहुड एब्सेंस एपिलेप्सी एक ऐसी कंडीशन है। जिसमे स्कूल जाने वाले छोटे बच्चो को बार-बार मिर्गी के दौरे आते है। ये बचपन में होने वाला एक कॉमन डिसऑर्डर हैं।
बच्चो को ये दौरा किस उम्र में आता हैं?
एबसेंस दौरा (सीजर) आमतौर पर 4 से 7 साल के बच्चो को आता हैं। इस बीमारी की ज्यादातर शिकार बच्चियां होती हैं। टीनेज में दौरा आने पर बच्चो को जुविनाइल सीजर के लिए जांचा जा सकता हैं।
पैरेंट्स बच्चो में दौरे को कैसे पहचान सकते हैं?
एक दौरा 5 से 15 सेकंड तक चल सकता हैं। ये दिन मे 30 से 40 बार भी आ सकता है। दौरा एक दम से शुरू होकर अचानक खत्म भी हो जाता है। इसके बाद बच्चा नॉर्मल हो जाता हैं जैसे कुछ हुआ ही ना हो। बच्चा कुछ देर के लिए कन्फ्यूज भी हो सकता हैं। ये दौरे बच्चो के दिमाग को कमजोर नहीं करते हैं।
चाइल्डहुड एब्सेंस एपिलेप्सी का क्या इलाज है?
एंटी सीजर दवाओं से एपिलेप्सी को कंट्रोल किया जा सकता हैं। हर 10 से 7 बच्चो में दौरे इसी तरह से कंट्रोल किए जाते है। दौरे से पूरी तरह मुक्ति पाने के लिए 2 से 2.6 सालों तक इलाज करना जरूरी है।
रिर्पोट – तान्या अग्रवाल