नईदिल्ली: कट्टरता फैलाना, खासकर मुस्लिम युवाओं को कट्टर बनाया जाना राष्ट्रीय सुरक्षा के लिए प्रमुख चुनौतियों में से एक है और कट्टरपंथी संगठनों का मुकाबला करने के लिए उदारवादी मुस्लिम नेताओं तथा धर्मगुरुओं को भरोसे में लेना जरूरी है। सुरक्षा सम्मेलन में प्रस्तुत एक दस्तावेज में यह कहा गया है, जिसमें प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने भी शिरकत की थी।
भारतीय पुलिस सेवा के कुछ अधिकारियों द्वारा लिखे गए और डीजीपी व आईजीपी के हाल में संपन्न सम्मेलन में प्रस्तुत दस्तावेज में उल्लेख किया गया है कि भारत में धार्मिक कट्टरवाद का उभार, मुख्य रूप से धार्मिक प्रचार, संचार के आधुनिक साधनों की आसान उपलब्धता, सीमा पार आतंकवाद और पाकिस्तान द्वारा इन कट्टरपंथी समूहों को प्रोत्साहित करने के कारण हुआ है।
दस्तावेज में कहा गया, ‘‘भारत में कई कट्टरपंथी मुस्लिम संगठन सक्रिय हैं, जो मुस्लिम युवाओं को कट्टरता के रास्ते पर धकेलने में संयुक्त रूप से लिप्त हैं। उनमें मुस्लिम समुदाय के लोगों की सोच को दूषित करने, उन्हें ¨हसा के रास्ते पर धकेलने तथा साझा संस्कृति के खिलाफ काम करने की स्वाभाविक प्रवृत्ति होती है।’’
दस्तावेज में यह भी कहा गया है कि ये संगठन इस्लामिक धर्मग्रंथों और अवधारणाओं की कट्टरपंथी व्याख्या करते हैं। दस्तावेज के मुताबिक वे मुस्लिम लोगों में पीड़ित होने की भावना भी पैदा करते हैं। उनका उपदेश लोकतंत्र और धर्मनिरपेक्षता जैसे आधुनिक मूल्यों के खिलाफ जाता है।
दस्तावेज में कहा गया कि भारत में हाल में प्रतिबंधित पीएफआई, एक और प्रतिबंधित समूह सिमी, वहदत-ए-इस्लामी, इस्लामिक यूथ फेडरेशन, हिज्ब-उत तहरीर और अल-उम्मा कुछ मुस्लिम संगठन हैं, जो इस श्रेणी में फिट बैठते हैं।