Raymond: अंग्रेज़ों के विरोध में शुरू हुई- तय किया हज़ारों करोड़ रुपये का सफर

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नई दिल्ली: कपड़ों के बड़े और फेमस ब्रांड में रेमंड नाम काफी पुराना है। यह ब्रांड जितना ज्यादा फैशन को लेकर मशहूर है उतना ही ज्यादा उनका विवाद भी चर्चा में है। रेमंड ने दशकों से भारत के फैशन ब्रांड के रूप में अपने पैर जमाए हुए है। यह 100 साल से भी ज्यादा पुराना ब्रांड है। इससे जुड़ा पिता और बेटे का विवाद भी चर्चा में आया मगर बाद में उनमें सुलह हो गई।

कैसे हुई थी रेमंड की शुरुआत

महाराष्ट्र के ठाणे में वर्ष 1900 में रेमंड की शुरुआत वुलन मिल के रूप में हुई थी। तब उसका नाम वाडिया मिल रखा गया। उसका काम सेना के लिए यूनिफार्म तैयार करना था। जिसे मुंबई के व्यवसायियों ने 1925 में इस मील को ख़रीदा। कैलाशपत सिंधानिया ने साल 1940 में इस मिल को खरीद लिया। उन्होंने वाडिया मिल का नाम बदलकर रेमंड मिल रखा गया। उन्होंने इस मिल में वुलन के कपड़े बेचने शुरू कर दिए। जो सस्ते वुलन कपड़े बेचा करते थे।

1952 में गोपालकृष्ण सिंघानिया अपने चाचा कैलाशपत सिंघानिया की कारोबार में मदद करने के लिए पहुंचे। 1958 में रेमंड पहली कंपनी बन गई जिसने पोलिएस्टर के साथ ऊन को ब्लेंड करना शुरू किया और टीरूल को लेकर आई है। इसके चलते कंपनी ने एक से बढ़कर एक ब्लेंडेड फैब्रिक को लॉन्च करना शुरू कर दिया। कंपनी ने इसी वर्ष अपना पहला रिटेल स्टोर भी मुंबई में खोला। 1960 में कंपनी ने सभी पुरानी मशीनों को हटाकर लेटेस्ट मशीनें लेकर आई। रेमंड आधुनिक मशीनें इस्तेमाल करनी वाली तब देश की पहली कंपनी बनी थी। 1967 में गर्मी के लिए रेमंड ने ट्रोवाइन नाम से फैब्रिक को लॉन्च किया। 1968 में थाणे में ही कंपनी ने रेडीमेड गार्मेट्स प्लांट की स्थापना की। 1979 में जलगांव में भी नया प्लांट लगाया।

धीरे-धीरे कंपनी फेमस होने लगी। इसका श्रेय कंपनी की टैग लाइन को भी जाता है। जिसमें ‘द कंप्लीट मैन’ और ‘फील्स लाइक हैवन’ लोगों की जुबान तक पहुँच गई और आज भी उनकी जुबान पर टिकी हुई है। इस बात से भी आपको हैरानी होगी भारत में शादियों के दौरान वर पक्ष के लोगों की ख्वाईस होती है कि दूल्हे और उसके रिश्तेदारों के लिए सूट-बूट का ब्रांड रेमंड ही हो। ठंड के लिए वूलेन फैब्रिक का सूट-बूट सिलाना हो तो रेमंड सबकी पहली पसंद होती है। रेमंड अपने रेंज के जरिए समाज के हर बड़े-छोटे वर्ग को कैटर करता है।


1980 में कैलाशपत सिंघानिया के बेटे डॉक्टर विजयपत सिंघानिया रेमंड के चेयरमैन बन गए जिन्होंने हॉवर्ड से पढ़ाई की थी। 1984 में उनके नेतृत्व में नया प्लांट सेटअप किया गया तो 1986 में पार्क एवेन्यू ब्रांड को लॉन्च किया गया जो आज सबकी जुबान पर है।

1990 में ओमान में रेमंड ने विदेश में अपना पहला शोरूम खोला। 1991 में कंपनी ने कामसूत्र के नाम से प्रीमियम कंडोम ब्रांड को लॉन्च किया जो लॉन्च के एक साल के भीतर देश की दूसरी बड़ी कंडोम ब्रांड बन गई। 1996 में कंपनी ने कॉरपोरेट एयर ट्रैवलर्स के लिए एयर चार्टर सर्विस को लॉन्च किया। 1996 में डेनिम मैन्युफैक्चरिंग की शुरूआत हुई। 1999 में पार्क्स ब्रांड के नाम से कैजुअल वीयर ब्रांड को लॉन्च किया गया। आपको बता दें कॉलरप्लस फैशन भी रेमंड की ही ब्रांड है जिसे 2002 में कंपनी ने अधिग्रहण किया था।

साल 2000 में विजयपत सिंघानिया ने अपने बेटे गौतम सिंघानिया को चेयरमैन बनाकर कंपनी की कमान सौंप दी जिनके नेतृत्व में रेमंड नई उंचाईयों को छू रही है। 2019 में कंपनी ने रियल एस्टेट सेक्टर में भी कदम रख दिया।

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