लालू प्रसाद यादव की जमानत रद्द करने की मांग वाली सीबीआई की याचिका पर सुप्रीम कोर्ट ने सुनवाई स्थगित की
नई दिल्ली : सुप्रीम कोर्ट ने शुक्रवार को चारा घोटाले के मामले में राजद अध्यक्ष लालू प्रसाद यादव को दी गई जमानत रद्द करने की मांग करने वाली सीबीआई की याचिका पर सुनवाई स्थगित कर दी । न्यायमूर्ति एएस. बोप्पना और एमएम. सुंदरेश की पीठ ने कहा कि इसकी सुनवाई किसी गैर-विविध दिन पर की जाएगी। उन्होंने सवाल करते हुए कहा कि याचिकाओं के बैच को आज (25 अगस्त) क्यों सूचीबद्ध किया गया था?
सीबीआई की ओर से पेश अतिरिक्त सॉलिसिटर जनरल एसवी. राजू ने कहा कि केंद्रीय जांच एजेंसी ने सीजेआई डीवाई. चंद्रचूड़ के समक्ष इस मामले का उल्लेख किया था। सीजेआई ने उनकी जमानत रद्द करने की मांग करने वाली याचिकाओं को तत्काल सूचीबद्ध करने को कहा था। उन्होंने तर्क दिया कि झारखंड उच्च न्यायालय ने कानून की गलत धारणाओं पर राष्ट्रीय जनता दल प्रमुख को जमानत दी थी।
लालू प्रसाद यादव का बचाव करते हुए वरिष्ठ वकील कपिल सिब्बल ने कहा कि उनके मुवक्किल को किडनी की बीमारी है। अब सीबीआई उन्हें फिर जेल में डालना चाहती है। अदालत ने मामले की सुनवाई अक्टूबर के लिए स्थगित कर दी। इसमें कहा गया है कि हम इस पर सुनवाई करेंगे… मामले को अक्टूबर में सूचीबद्ध करेंगे।
दरअसल, सोमवार और शुक्रवार को छोड़कर अन्य दिनों को सुप्रीम कोर्ट में गैर-विविध दिनों के रूप में वर्गीकृत किया जाता है, जब विभिन्न पीठ नियमित सुनवाई करती है। पिछले साल अप्रैल में झारखंड उच्च न्यायालय ने डोरंडा कोषागार से 139.5 करोड़ रुपये की धोखाधड़ी से निकासी से संबंधित पांचवें चारा घोटाले के मामले में लालू प्रसाद को जमानत दी थी।
सुप्रीम कोर्ट ने 17 अप्रैल, 2021 और 9 अक्टूबर, 2020 को जारी जमानत आदेशों को चुनौती देने वाली सीबीआई की याचिका पर पहले ही नोटिस जारी कर दिया था, जहां झारखंड उच्च न्यायालय ने दुमका कोषागार और चाईबासा कोषागार से धन की धोखाधड़ी से निकासी से संबंधित मामले में बिहार के पूर्व सीएम को जमानत दे दी थी।
अविभाजित बिहार में लालू प्रसाद के मुख्यमंत्री रहते हुए पशुपालन विभाग में करोड़ों रुपये का चारा घोटाला हुआ था। चारा घोटाला 1996 में सामने आया और पटना उच्च न्यायालय के निर्देश पर मामला सीबीआई को सौंप दिया गया। लालू प्रसाद को झारखंड के देवघर, दुमका और चाईबासा कोषागार से धोखाधड़ी से पैसे निकालने के चार चारा घोटाले के मामलों में दोषी ठहराया गया था। डोरंडा मामले में सीबीआई की विशेष अदालत ने उन्हें पांच साल की सजा सुनाई थी और 60 लाख रुपये का जुर्माना लगाया था।