अयोध्या : रामलला की मूर्ति तैयार करने वाले मैसूर के मूर्तिकार अरुण योगीराज अयोध्या के मंदिर उद्घाटन में भगवान राम की सुंदर और श्यामल मूर्ति के अनावरण के बाद से सुर्खियों में हैं। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने 22 जनवरी को अयोध्या में 500 साल के लंबे इंतजार के बाद भगवान राम की ‘प्राण प्रतिष्ठा’ का नेतृत्व किया था। जैसे ही लोगों ने रामलला के दर्शन किए, भगवान के चेहरे की कोमल मुस्कान और सजीव आंखों को देखकर आश्चर्यचकित रह गए। मूर्तिकार अरुण योगीराज ने रामलला की सजीव सी दिखने वाली मूर्ति के पीछे के राज का खुलासा किया है। उन्होंने अपने साथ हुए चमत्कारिक घटनाओं का भी उल्लेख किया। उन्होंने बताया भगवान राम ने जैसा आदेश दिया, मैंने उन्ही का पालन करते हुए मूर्ति बनाई। योगीराज ने बताया कि मूर्ति को तैयार करने में सात महीने लगे, इस दौरान वह दुनिया से कट गए और बच्चों के साथ समय बिताया। योगीराज ने एक दिलचस्प किस्सा भी शेयर किया कि कैसे रोज एक बंदर उनके घर आकर मूर्ति के दर्शन कर लौट जाता था।
मूर्तिकार अरुण योगीराज ने पिछले सात महीनों में रामलला की मूर्ति बनाने के दौरान की अवधि को चुनौतीपूर्ण बताया। उन्होंने कहा, “मुझे मूर्ति बेहद सावधानी से बनानी थी वो भी शिल्प शास्त्र का पालन करते हुए। क्योंकि मूर्ति भगवान राम के 5 साल के रूप में दिखनी चाहिए थी, मूर्ति में बच्चे की मासूमियत भी होनी चाहिए थी। इंडिया टुडे से बातचीत में योगीराज ने कहा कि मंदिर ट्रस्ट ने मूर्ति को पूरा करने के लिए विशिष्ट मानदंड तय किए थे- जैसे मुस्कराता चेहरा, दिव्य दृष्टि, 5 वर्षीय स्वरूप और राजकुमार या युवराज लुक
योगीराज का कहना है कि उनका परिवार पिछले 300 वर्षों से मूर्ति बनाने का काम कर रहा है और मैं खुद को धरती का सबसे भाग्यशाली व्यक्ति मानता हूं कि मुझे भगवान राम ने यह काम सौंपा। “पिछले दो दिनों से मुझे बहुत खुशी है कि लोग भगवान राम की मूर्ति को पसंद कर रहे हैं। लोगों को खुश देखना यह सोचने से ज्यादा महत्वपूर्ण है कि मेरी मूर्ति चुनी गई है। उन्होंने कहा, ‘राम लला की मूर्ति सभी की है, यह सिर्फ मेरी नहीं है।’ वो कहते हैं कि “पिछले सात महीने, मैंने मूर्ति के साथ बहुत भावनात्मक रूप से बिताए। मेरा एक बेटा और एक बेटी भी है। मैं अपनी 7 साल की बेटी को मूर्ति की तस्वीर दिखाता था और पूछता था कि रामलला कैसे दिखते हैं; वह जवाब देती थी: ‘बच्चे जैसा ही है अप्पा”
उन्होंने इस बात पर जोर दिया कि केवल मूर्ति को पूरा करना ही पर्याप्त नहीं था। उसमें बच्चे की कोमलता और मासूमियत दिखानी जरूरी थी। मेरा ऐसा विश्वास है कि मुझे भगवान राम ने जैसा आदेश दिया मैं वैसे ही मूर्ति बनाने लगा। योगीराज का दावा है कि”निर्माण होते समय रामलला अलग थे, स्थिर होने के बाद अलग। मुझे लगा कि ये मेरा काम नहीं है। ये तो बहुत अलग दिखते हैं। भगवान ने अलग रूप ले लिया है। उन्होंने कहा कि मूर्ति अलग-अलग चरणों में अलग दिखती है। प्राण प्रतिष्ठा में राम लला बिल्कुल अलग दिखे।”
योगीराज ने रामलला की मंत्रमुग्ध कर देने वाली मुस्कान की भी चर्चा की। योगीराज ने कहा, “उस दौरान मुझे बच्चों के साथ काफी समय बिताना पड़ा और मैं बाहरी दुनिया से अलग हो गया। मैंने एक अनुशासन बनाया और शिला के साथ भी काफी समय बिताया।” योगीराज की पत्नी विजिता ने भी इंडिया टुडे टीवी को बताया कि योगीराज ने चेहरे और शरीर की विशेषताओं का अध्ययन करने के लिए मानव शरीर रचना विज्ञान की किताबें पढ़ीं, जिसने उनकी काफी मदद की। उन्होंने कहा, “वह बच्चों के बारे में अधिक जानने के लिए स्कूलों भी गए और गहराई से शोध किया और देखा कि वे कैसे मुस्कुराते हैं।”
योगीराज ने एक दिलचस्प घटना का भी जिक्र किया। बताया कि हर दिन शाम 4-5 बजे के आसपास एक बंदर उनके घर के दरवाजे पर आ जाता था। वो बताते हैं, “जब ठंड के दौरान हम गेट पर पर्दा डालते थे, तो वह आकर दरवाजे पर दस्तक देता था। मैं कन्फर्म नहीं कि यह वही बंदर है, लेकिन वह रोजाना उसी समय पर आता था। मैंने इस बारे में श्री राम जन्मभूमि तीर्थ क्षेत्र ट्रस्ट के महासचिव चंपत राय जी से कहा। उन्होंने कहा कि शायद वह भी भगवान राम की मूर्ति देखना चाहते हों।”