नई दिल्ली : सत्तारूढ़ भारतीय जनता पार्टी (BJP) के खिलाफ तैयार विपक्षी दलों के इंडिया गठबंधन (india alliance) के सामने सबसे बड़ी चुनौती सीट बंटवारे को लेकर है। हालांकि, सूत्रों ने बताया है कि इस दिशा में पहल की जा रही है। जल्द ही एक समझौते पर पहुंचने की संभावना है। यह भी कहा जा रहा है कि इस महीने के अंत तक अंतिम निर्णय लिए जाने की संभावना है। इंडिया गठबंधन के घटक दल इस बात को लेकर सतर्क हैं कि अगला चुनाव (Election) उनके लिए कितना महत्वपूर्ण साबित होने वाला है।
उन राज्यों में शुरू होगी जहां क्षेत्रीय दल प्रमुख भागीदार हैं। बिहार, पश्चिम बंगाल, महाराष्ट्र और तमिलनाडु इसके सबसे बड़े उदाहरण हैं। बिहार और पश्चिम बंगाल में क्षेत्रीय पार्टियों की ताकत को देखते हुए सीट शेयरिंग को अंतिम रूप देना चुनौतीपूर्ण साबित हो सकता है। महाराष्ट्र और तमिलनाडु में राह आसान दिख रही है। हालांकि, महाराष्ट्र में भी यह तय करना मुश्किल हो सकता है कि कांग्रेस, शिवसेना यूबीटी और एनसीपी कौन सी सीटों पर चुनाव लड़ेंगी।
बिहार की 40 सीटों का बंटवारा कांग्रेस, जनता दल (यूनाइटेड) और राष्ट्रीय जनता दल के बीच होना है। 2019 में जब जेडीयू भारतीय जनता पार्टी के साथ थी तो उसने 17 सीटों पर चुनाव लड़ा था। उनमें से 16 पर जीत हासिल की थी। यह फैक्टर मुख्यमंत्री नीतीश कुमार को मजबूत स्थिति में रखता है। पिछले लोकसभा चुनाव में आरजेडी का खाता तक नहीं खुला था। हालांकि, आरजेडी विधानसभा में सबसे बड़ी पार्टी है। जदयू आरजेडी के समर्थन के बिना शासन नहीं कर सकता है।
एक रिपोर्ट के मुताबिक, सूत्रों का कहना है कि जदयू और राजद बराबर की संख्या में सीटों पर चुनाव लड़ना चाहते हैं। बाकी को कांग्रेस और छोटे दलों के बीच बांटना चाहते हैं। जाहिर है कि यहां कोई समझौता ढूंढने में समय लगेगा। दरअसल, कांग्रेस के बिहार प्रमुख अखिलेश प्रसाद सिंह ने कहा है कि सीट शेयरिंग पर बातचीत आधिकारिक तौर पर शुरू नहीं हुई है।
महाराष्ट्र से लोकसभा में 48 सांसद आते हैं। यहां सीटों के बंटवारे पर समझौता करना आसान हो सकता है। यहां इंडिया गठबंधन के तीन सहयोगी दल हैं। कांग्रेस, राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी और पूर्व मुख्यमंत्री उद्धव ठाकरे का शिवसेना गुट। सूत्रों ने कहा है कि महा विकास अघाड़ी के सहयोगियों के बीच 16-16 सीटें बराबर-बराबर बांटने पर सैद्धांतिक सहमति बन गई है। इस बात पर भी सहमति है कि तीनों अपने-अपने कोटे से छोटे सहयोगियों को सीटें देंगे।
हालांकि, महाराष्ट्र में सबसे अधिक कठिनाई सहयोगियों को सीटें आवंटित करने में है। उदाहरण के लिए मुंबई (दक्षिण मध्य) सीट पर शिवसेना नेता राहुल शेवाले का कब्जा है जो अब एकनाथ शिंदे के खेमे में हैं। ठाकरे गुट इस सीट पर फिर से चुनाव लड़ना चाहता है, लेकिन कांग्रेस भी ऐसा ही दावा कर रही है। कांग्रेस की नजर अरविंद सावंत की मुंबई (दक्षिण) सीट पर भी है, जो अभी भी ठाकरे खेमे के पास है।
तमिलनाडु में सीट शेयरिंग पर कोई समस्या होने की संभावना नहीं है। यहां द्रविड़ मुनेत्र कड़गम और कांग्रेस के बीच लगभग समझौता हो गया है। दोनों ने 2019 का चुनाव भी एक साथ लड़ा था। इस चुनाव में DMK को 20 सीटें मिलने की संभावना है। कांग्रेस नौ, बाकी सीटों पर गठबंधन के सहयोगी चुनाव लड़ सकते हैं।
अब बात पश्चिम बंगाल की। सत्तारूढ़ तृणमूल कांग्रेस, कांग्रेस और सीपीआईएम के नेतृत्व वाले वाम मोर्चे के बीच रिश्ते अभी भी असहज हैं। मुख्यमंत्री ममता बनर्जी फिलहाल स्पेन में हैं। उनके लौटने पर ही राज्य की 42 सीटों पर चर्चा शुरू होगी। सूत्रों ने कहा कि ममता को कांग्रेस के साथ गठबंधन करने में कोई दिक्कत नहीं है, लेकिन सीपीआईएम के साथ समझौता करना कठिन होगा। आपको बता दें कि इंडिया गठबंधन के द्वारा जाति जनगणना पर जोर देने की योजना की घोषणा के बाद सीट शेयरिंग कठिन साबित हो सकता है। ममता बनर्जी ने इसका विरोध किया है।
सूत्रों के मुताबिक, जम्मू-कश्मीर की पांच सीटों के लिए कांग्रेस, नेशनल कॉन्फ्रेंस और पीपुल्स डेमोक्रेटिक पार्टी के बीच समझौते वाले हैं। कांग्रेस और आम आदमी पार्टी को दिल्ली की सात और पंजाब की 13 सीटों के लिए समझौते पर काम करना होगा। दोनों के बीच गुजरात की 26 सीटों में भी बंटवारे की संभावना है। सूत्र ने यह भी बताया है कि देश भर में 100 ऐसी सीटें हैं जहां कांग्रेस का सीधे भाजपा से मुकाबला होने की उम्मीद है। इसलिए इन सीटों पर कांग्रेस कोई समझौता नहीं करेगी।