Shab-e-Barat 2022: जानिए इस्लाम में क्यों कहा जाता है शब-ए-बारात को इबादत की रात

0 564

New Delhi: Shab-e-Barat 2022: मुस्लिम समुदाय के लिए एक महत्वपूर्ण दिन, शब-ए-बारात भारत, पाकिस्तान, बांग्लादेश, श्रीलंका और तुर्की और मध्य एशिया सहित पूरे दक्षिण एशिया में बड़े उत्साह के साथ मनाया जाता है। शब-ए-बारात का अनुवाद ‘द नाइट ऑफ फॉर्च्यून एंड फॉरगिवनेस’ है, जिसका अर्थ है क्षमा या प्रायश्चित की रात। इस दिन को शब-ए-रात, बारा रात, मध्य-शाबान, बारात रात, चेराघ ए ब्रत, बेरात कंडिली या निस्फू सियाबान के नाम से भी जाना जाता है।

शब-ए-बरात (Shab-e-Barat 2022) इस्लामिक कैलेंडर के आठवें महीने शाबान महीने की 14वीं और 15वीं रात के बीच मनाया जाता है। मुसलमानों का मानना ​​​​है कि इस रात अल्लाह लोगों के भाग्य, उनकी आजीविका और क्या उन्हें हज करने का अवसर मिलेगा, यह तय करते है। बहुत से लोग अल्लाह से उनके और उनके मृत पूर्वजों के सभी पापों को क्षमा करने की प्रार्थना भी करते हैं। इसके अतिरिक्त, भारतीय उपमहाद्वीप और मध्य एशिया में सूफी, साथ ही तुर्की, शब-ए-बारात का पालन करते हैं। हालांकि, यह सलाफी, वहाबियों और अधिक रूढ़िवादी अरब और इस्लामी अनुयायियों द्वारा चिह्नित नहीं है। इस साल, मध्य-शाबान 2022 शुक्रवार, 18 मार्च की शाम को शुरू होगा और शनिवार, मार्च 19 की शाम को समाप्त होगा।

Also Read: Holi Alert: दिल्ली सरकार ने अस्पतालों को जारी किया अलर्ट, शनिवार को भी चलेगी ओपीडी

शब-ए-बारात का अर्थ

शब यानी रात और बारात का मतलब होता है बरी होना. शब-ए-बारात के दिन इस दुनिया को छोड़कर जा चुके लोगों की कब्रों पर उनके प्रियजनों द्वारा रोशनी की जाती है और दुआ मांगी जाती है. इस दिन अल्लाह से सच्चे मन से अपने गुनाहों की माफी मांगने से जन्नत में में जगह मिलती है.

मुस्लिम समुदाय के लोग शब-ए-बारात के अगले दिन रोजा रखते हैं. यह रोजा फर्ज नहीं है बल्कि नफिल रोजा कहा जाता है. यानी रमजान के रोजों की तरह ये रोजा जरूरी नहीं होता है, कोई ए रोजा रखे तो इसका पुण्य तो मिलता है, लेकिन न रखे तो इसका गुनाह नहीं होता.

 

रिपोर्ट – रुपाली सिंह

नोट: अगर आपको यह खबर पसंद आई तो इसे शेयर करना न भूलें, देश-विदेश से जुड़ी ताजा अपडेट पाने के लिए कृपया Vnation के Facebook पेज को LikeTwitter पर Follow करना न भूलें...
Leave A Reply

Your email address will not be published.