छत्तीसगढ़ में गारंटियों को पूरा करने के लिए चतुर वित्तीय प्रबंधन की दरकार

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रायपुर : छत्तीसगढ़ में वर्तमान सरकार के लिए गारंटियों को पूरा करने के लिए चतुर वित्तीय प्रबंधन के महारथियों की दरकार होगी। ऐसा इसलिए क्योंकि पिछली सरकार कई ऐसी योजनाएं छोड़कर गई है जिसे जारी रखना किसी चुनौती से कम नहीं होगा।

राज्य की वर्तमान वित्तीय स्थिति पर गौर करें तो एक बात साफ हो जाती है कि राज्य का बजट लगभग एक लाख 21 हजार करोड़ का था तो राज्य पर कर्ज भी लगभग 89 हजार करोड़ का है। इस तरह गौर करें तो एक बात साफ हो जाती है कि आने वाले समय में सरकार को कर्ज की जरूरत पड़ती है तो बजट और कर्ज का आंकड़ा लगभग बराबरी पर भी आ जाए तो अचरज नहीं होगा।

भाजपा ने सत्ता में आने से पहले जनता से कई वादे किये है। इनमें से कुछ वादों को पूरा करने की शुरुआत भी हो चुकी है मगर अभी भी कई वादे ऐसे हैं जिनको पूरा करने पर सरकार पर बड़ा बोझ पड़ना तय है।

राज्य में भाजपा की विष्णु देव साय के नेतृत्व में सरकार बनते ही विधानसभा के पहले सत्र में 12,900 करोड़ से ज्यादा का अनुपूरक बजट पेश किया गय। इसमें प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी द्वारा दी गई गारंटी को पूरा करने का प्रावधान रहा। सरकार ने किसानों को धान खरीदी पर 3,100 रुपए प्रति क्विंटल की भुगतान के साथ दो साल के बकाया बोनस का भी भुगतान कर दिया है। तेंदूपत्ता संग्रहण की राशि में भी इजाफा किया जा चुका है। अभी भी सरकार के सामने जो सबसे बड़ी चुनौतियां हैं वह गैस सिलेंडर पर सब्सिडी और महतारी वंदन योजना है। वैसे महतारी योजना के लिए अनुपूरक बजट में 1,200 करोड़ का प्रावधान किया गया है।

मुख्यमंत्री साय का कहना है कि पिछली सरकार ने पांच साल में 50 हजार करोड़ का कर्ज लिया है। यही कारण है कि राज्य पर कर्ज बढ़ा है। इसके बावजूद राज्य सरकार अपनी घोषणाओं को पूरा करने के लिए प्रतिबद्ध है।

वहीं कांग्रेस के प्रदेश प्रवक्ता सुरेंद्र वर्मा का कहना है कि भूपेश बघेल सरकार ने मार्च तक के लिए बजट में प्रावधान किया था मगर भाजपा की सरकार सिर्फ लफ्फाजी में भरोसा कर रही है। उसने जो अनुपूरक बजट पारित किया है वह योजनाओं के लिए न काफी है। इतना ही नहीं अब तक गैस सिलेंडर सब्सिडी का तो जिक्र तक नहीं किया जा रहा है। धान खरीदी के एक मुश्त भुगतान के वादे पर भी अमल नहीं हो रहा। कुल मिलाकर यह सरकार सिर्फ झूठे वादों की सरकार है। जहां तक कांग्रेस सरकार के कर्ज की बात है तो केंद्र की मोदी सरकार ने राज्य के साथ छल किया, उसका हिस्सा नहीं दिया जो एक लाख करोड़ से ज्यादा बनता है। अगर राज्य को अपना हिस्सा मिल जाता तो कर्ज लेने की जरूरत नहीं होती।

जानकारों की माने तो वर्तमान की भाजपा सरकार के लिए भूपेश बघेल के सरकार के कार्यकाल की किसान कर्ज माफी, राजीव गांधी न्याय किसान योजना, बिजली बिल में रियायत, गोबर और गोमूत्र की खरीदी, बेरोजगारी भत्ता जैसी योजनाओं को आगे जारी कर पाना बहुत आसान नहीं होगा। हो सकता है भाजपा को अपनी गारंटिया पूरी करने के लिए इन योजनाओं पर ताला भी लगाना पड़ जाए। इन स्थितियों में अगर कुशल वित्तीय प्रबंधन होगा तो शायद पिछली सरकार की अच्छी योजनाओं के साथ भाजपा की गारंटी भी पूरी होती रहे, मगर यह काम बहुत आसान नहीं होगा।

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