नई दिल्ली (New Delhi) । सुप्रीम कोर्ट (SC) की एक विशेष पीठ बुधवार को विजय मदनलाल चौधरी मामले (Vijay Madanlal Choudhary case) में 2022 के फैसले की समीक्षा की मांग करने वाली याचिकाओं (Petitions) पर सुनवाई करेगी। इस फैसले में सुप्रीम कोर्ट ने गिरफ्तारी, तलाशी, जब्ती, जमानत और अन्य संबंधित प्रक्रियाओं से जुड़े धन शोधन निवारण अधिनियम (पीएमएलए) के कई विवादास्पद प्रावधानों को बरकरार रखा था। न्यायमूर्ति सूर्यकांत, न्यायमूर्ति सीटी रविकुमार और न्यायमूर्ति उज्जल भुयान की पीठ इस मामले पर सुनवाई करेगी। मुख्य समीक्षा याचिका कांग्रेस सांसद कार्ति चिदंबरम ने दायर की है। 25 अगस्त, 2022 को नोटिस जारी होने के बाद यह पहली बार होगा जब समीक्षा याचिकाओं पर सुनवाई हो रही है।
गौरतलब है कि न्यायमूर्ति संजीव खन्ना, न्यायमूर्ति एम.एम. सुंदरेश और न्यायमूर्ति बेला एम. त्रिवेदी की एक अलग पीठ भी पीएमएलए की धारा 50 और 63 की वैधता को चुनौती देने वाली याचिकाओं पर सुनवाई कर रही है। ये धाराएं प्रवर्तन निदेशालय (ईडी) की गवाहों को बुलाने, उनसे बयान दर्ज करवाने और गलत सूचना देने के लिए मुकदमा चलाने की शक्तियों से संबंधित हैं। इन कार्यवाहियों में विजय मदनलाल चौधरी के फैसले पर पुनर्विचार की लगातार मांग की गई है।
2022 के पीएमएलए फैसले ने 2002 के अधिनियम के तहत ईडी को दी गई व्यापक शक्तियों की पुष्टि की थी। 2002 के अधिनियम के तहत ईडी को व्यक्तियों को बुलाने, गिरफ्तारियां करने, छापे मारने और संदिग्धों की संपत्ति जब्त करने का अधिकार मिला था। न्यायालय ने इन शक्तियों को यह कहते हुए उचित ठहराया कि कानून प्रवर्तन एजेंसियों के पास देश की संपत्ति को अपराधियों से बचाने के लिए प्रभावी उपकरण होने चाहिए।
2022 का यह फैसला तब आया जब न्यायालय ने पीएमएलए कार्यवाही का सामना कर रहे विभिन्न व्यक्तियों की 200 से अधिक याचिकाओं को खारिज कर दिया था, जिनमें चिदंबरम, जम्मू-कश्मीर की पूर्व मुख्यमंत्री महबूबा मुफ्ती और रैनबैक्सी के पूर्व उपाध्यक्ष शिविंदर मोहन सिंह शामिल हैं। याचिकाओं में तर्क दिया गया था कि कानून ईडी को अनियंत्रित और मनमानी शक्तियां प्रदान करता है, जो स्वतंत्रता, संपत्ति और आत्म-अपराध के खिलाफ सुरक्षा जैसे संवैधानिक अधिकारों का उल्लंघन करता है। हालांकि, सर्वोच्च न्यायालय ने कहा कि “राज्य के लिए ऐसा कठोर कानून बनाना अनिवार्य है।” कोर्ट ने पीएमएलए अपराधियों को सामान्य अपराधियों से अलग श्रेणी में रखा।
फैसले में यह भी कहा गया था कि प्रवर्तन मामले की सूचना रिपोर्ट (ईसीआईआर) को अभियुक्त को प्रदान करने की आवश्यकता नहीं है, क्योंकि यह केवल ईडी का एक आंतरिक दस्तावेज है। अदालत ने कहा कि किसी व्यक्ति को उसकी गिरफ्तारी के आधार के बारे में सूचित करना पर्याप्त है। इसके अलावा, फैसले ने पीएमएलए के उन प्रावधानों को बरकरार रखा जो सबूत के रिवर्स बर्डन के सिद्धांत को लागू करते हैं, जो “दोषी साबित होने तक निर्दोष” के सामान्य कानून सिद्धांत के विपरीत है। यानी आरोपी को तब तक दोषी माना जाएगा जब तक कि वह खुद को निर्दोष साबित नहीं कर देता। इसके अलावा, पीएमएलए के तहत, अदालतों को जमानत की कार्यवाही में भी, जब तक साबित न हो जाए, तब तक मनी लॉन्ड्रिंग में अभियुक्त की संलिप्तता मान लेना आवश्यक है।
25 अगस्त, 2022 को सुप्रीम कोर्ट ने 27 जुलाई, 2022 के फैसले के खिलाफ चिदंबरम की समीक्षा याचिका के जवाब में केंद्र सरकार को नोटिस जारी किया था। उस समय कोर्ट ने संकेत दिया था कि ईसीआईआर की आपूर्ति और अपराध के रिवर्स ओनस से संबंधित केवल दो मुद्दों पर पुनर्विचार किया जाएगा, जबकि बाकी फैसले की समीक्षा नहीं की जाएगी। तब से, समीक्षा याचिका प्रभावी सुनवाई तक नहीं पहुंच पाई है, जबकि एक अलग तीन न्यायाधीशों की पीठ यह मूल्यांकन कर रही है कि क्या 2022 के फैसले की फिर से जांच की आवश्यकता है।