गुजर रहा सावन, न पड़े झूले, न बोले मोर!
"झूला तो पड़ गयो अमवा की डार मा, मोर-पपीहा बोले..!" ऐसे कुछ बुंदेली गीत हैं, जो सावन मास आते ही गली-कूचों और आम के बगीचों में गूंजने लगते थे। साथ ही मोर, पपीहा और कोयल की मधुर बोली के बीच युवतियां झूले का लुफ्त उठाया करती थीं। अब न तो पहले…
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