तालिबान को नहीं पसंद महिलाओं का आवाज उठाना, प्रदर्शनकारियों पर बरसाईं लाठियां

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नई दिल्ली: 30 सितंबर को अफगानिस्तान में काबुल के एक एजुकेशनल सेंटर पर फिदायीन हमला हुआ था. इस हमले में यूनाइटेड नेशंस की रिपोर्ट के मुताबिक 35 लोगों की मौत हो गई थी. जिनमें से ज्यादातर छात्राएं थी और शिया मुस्लिम हजारा समुदाय की थीं. इस आत्मघाती हमले में करीब 82 लोग गंभीर रूप से घायल हो गए थे. इनका इलाज किया जा रहा है. रविवार को इसी हमले के विरोध में हजारा समुदाय की दर्जनों महिलाएं सड़क पर उतर आईं.

हाल के हमलों में सबसे ज्यादा घातक हमले के बाद अफगानिस्तान के दक्षिण में स्थित हेरात शहर में महिलाओं ने विरोध प्रदर्शन में मार्च किया. इस दौरान उन्होंने ‘शिक्षा हमारा अधिकारी है, नरसंहार गुनाह है’ के नारे लगाए. नारेबाजी करते हुए महिलाओं का हुजूम हेरात यूनिवर्सिटी से स्थानीय गवर्नर की ओर चलता गया. इन महिलाओं ने प्रदर्शन के दौरान काले हिजाब और हैडस्कार्फ पहने हुए थे.

हथियारों से लैस तालिबानियों ने रास्ता रोका
इन महिलाओं की मार्च को हथियारों से लैस तालिबानी पुलिस ने रास्ते में ही रोक लिया. इन्होंने पत्रकारों से भी खबर जारी नहीं करने को कहा. एक प्रदर्शनकारी महिला वाहिदा साघरी ने कहा, ‘हमारे पास किसी तरह के कोई हथियार नहीं थे, हम बस स्लोगन बोलकर मार्च कर रहे थे.’ उन्होंने आगे बताया कि, ‘लेकिन उन्होंने हमारी लाठी से पिटाई की, महिलाओं को रोकने और भीड़ को हटाने के लिए हवा में फायर भी किए.’ वाहिदा ने गुहार लगाई है कि उनकी आवाज को अंतरराष्ट्रीय स्तर पर पहुंचाया जाए क्योंकि वह वहां सुरक्षित नहीं है.

महिलाओं के एक अन्य ग्रुप को पुलिस ने यूनिवर्सिटी में ही रोक लिया और प्रदर्शन में शामिल नहीं होने दिया. प्रदर्शनकारी महिला जुलैखा अहमदी ने बताया कि ‘हमे यूनिवर्सिटी से बाहर ही नहीं जाने दिया, क्योंकि तालिबानी फोर्सेस ने यूनिवर्सिटी का मेन गेट ही बंद कर दिया था.इस वक्त हमने नारे लगाना शुरू किया और यूनिवर्सिटी गेट को खोलने के लिए आवाज लगाई. लेकिन उन्होंने हवाई फायर करके हमें वहां से खदेड़ दिया. ‘ इस दौरान भी एक तालिबानी ने महिलाओं पर लाठी से हमला किया.

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