लखनऊ: लोकसभा चुनाव के नतीजे भाजपा नेताओं के लिए कई मायनों में अहम होंगे। नतीजे अधिकांश नेताओं और विधायकों का भविष्य तय करने वाले तो होंगे ही, संगठन के विपरीत कार्य करने वाले नेताओं और विधायकों के ‘पर’ भी कतरे जा सकते हैं। लोकसभा चुनाव लड़ रहे केंद्र व राज्य सरकार के मंत्रियों का एक बार फिर जहां कद तय होगा, वहीं मंत्री बनने का सपना संजोए विधायकों और नेताओं की जमीनी पकड़ भी सामने आएगी। इतना ही नहीं, भितरघात करने वाले भी नहीं बख्शे जाएंगे।
राजनीतिक जानकारों की माने तो पार्टी ने कई ऐसे वरिष्ठ नेताओं को चुनाव के दौरान लगाया था, जिनकी अपनी एक राजनीतिक हैसियत है। इसके अलावा कई विधायकों और मंत्रियों को एक क्षेत्र के अलावा अन्य कई जगह भी प्रचार और लोगों के बीच माहौल तैयार करने के लिए उतारा गया था। पार्टी ने चुनाव के मौके पर बड़ी संख्या में दूसरे दलों के नेताओं को लाकर, समीकरणों को साधने के प्रयास किए हैं। उसका भी कितना असर हुआ, इसका भी पता चलेगा। सपा के बागी विधायक मनोज पांडेय को चुनाव के बीच शामिल कराकर एक बड़ा संदेश देने का प्रयास किया गया है। अमेठी, रायबरेली और आसपास की सीटों पर ब्राह्मण मतदाताओं पर उनकी पकड़ को परिणाम साफ कर देगा।
अंतिम चरण में सपा के पूर्व मंत्री नारद राय को भाजपा में शामिल कराकर पूर्वांचल में भूमिहार वोटों पर सेंधमारी कितनी हो पाई, यह भी पता चलेगा। इसके आलावा बस्ती से राजकिशोर सिंह और उनके भाई बृज किशोर सिंह को भी चुनावी फायदे के लिहाज से भाजपा में शामिल कराया गया। वह हरीश द्विवेदी के चुनाव पर कितना असर डाल पाएंगे। यह तो आने वाला वक्त तय करेगा। ऐसे ही कई अन्य चेहरे भी दूसरे दलों के नेता हैं, जिनका चुनावी भविष्य सिर्फ नतीजे ही तय करेंगे। इसके अलावा प्रदेश सरकार के लोक निर्माण मंत्री जितिन प्रसाद को पीलीभीत, उद्यान मंत्री दिनेश प्रताप सिंह को रायबरेली, पर्यटन मंत्री जयवीर सिंह को मैनपुरी और अनूप वाल्मीकि को हाथरस से मौका दिया गया है। इनकी हार-जीत बहुत कुछ तय करेगी। नगीना सीट से भाजपा विधायक ओमवीर के जरिए पश्चिम क्षेत्र के दलितों की कसौटी परखी जाएगी।
भाजपा के एक वरिष्ठ नेता ने बताया कि कुछ विधायक और पदाधिकारी चुनाव में टिकट मांग रहे थे, उन्हें टिकट नहीं मिलने पर चुनाव निष्क्रियता सामने आई थी। ऐसे कई विधायकों को संगठन और नेतृत्व ने आगाह भी किया। उसका कितना असर पड़ा यह तो आने वाले परिणाम ही तय करेंगे।