प्रेग्‍नेंसी में स्‍ट्रेस लेने की वजह से रहता है प्रीटर्म डिलीवरी का खतरा

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गर्भ में पल रहे शिशु के विकास पर स्‍ट्रेस हार्मोंस अहम भूमिका निभाते हैं। प्रेगनेंट महिला के तनाव होने में इन हार्मोंस का लेवल बढ़ जाता है। स्‍ट्रेस हार्मोन कोर्टिसोल और एस्‍ट्राडिओल के हाई लेवल को लेबर को ट्रिगर करने वाला माना गया है।

एक नॉर्मल प्रेग्‍नेंसी 40 हफ्तों तक रहती है। अगर आपका बच्‍चा 37वें हफ्ते से पहले पैदा हो जाए तो उसे प्रीटर्म बेबी कहा जाता है। वर्ल्‍ड हेल्‍थ ऑर्गेनाइजेशन के अनुसार लगभग 15 मिलियन बच्‍चे प्रीटर्म होते हैं। इसका मतलब है कि 10 में से एक बच्‍चे के नौ महीने से पहले पैदा होने के चांसेस होते हैं। प्रेग्‍नेंसी की तीसरी तिमाही में सेक्‍स करने, स्‍वीमिंग आदि को भी प्रीटर्म डिलीवरी का कारण माना गया है। हालांकि, मॉडर्न मेडिसिन की मदद से प्रीमैच्‍योर बेबी केयर और जागरूकता की मदद से प्रीटर्म बेबी को सुरक्षित रखा जा सकता है।

BMC की एक स्‍टडी के अनुसार प्रेग्‍नेंसी में स्‍ट्रेस लेने वाली महिलाओं में प्रीटर्म काफी आम पाया गया जबकि नौ महीने के बाद हुई डिलीवरी वाली महिलाओं में स्‍ट्रेस नहीं था। जिन महिलाओं ने गर्भावस्‍था में स्‍ट्र्रेस लिया था, उनमें से 54 पर्सेंट औरतों में प्रीटर्म डिलीवरी के साथ स्‍ट्रेस को एक जोखिम कारक के रूप में देखा गया।

​क्रोनिक स्‍ट्रेस क्‍या है
वहीं जब आप लंबे समय तक तनाव में रहते हैं, तो इसे क्रोनिक स्‍ट्रेस कहा जाता है। क्रोनिक स्‍ट्रेस से ना सिर्फ प्रेग्‍नेंसी में दिक्‍कत हो सकती है बल्कि अन्‍य स्‍वास्‍थ्‍य समस्‍याएं भी पैदा हो सकती हैं। ncbi में प्रकाशित एक स्‍टडी के अनुसार गर्भावस्था के दौरान मनोवैज्ञानिक तनाव लेने वाली महिलाओं में प्रीटर्म डिलीवरी का खतरा काफी बढ़ जाता है।

​कैसे होता है स्‍ट्रेस
जब किसी महिला को तनाव होता है तो बॉडी स्‍ट्रेस हार्मोंस कोर्टिसोल को रिलीज करती है। कोर्टिसोल के ज्‍यादा होने की वजह से हाइपरटेंशन, डायबिटीज और यहां तक कि मिसकैरेज तक हो सकता है।

​दो तरह का होता है स्‍ट्रेस
स्‍ट्रेस दो तरह का होता है : एक्‍यूट और क्रोनिक। एक्‍यूट स्‍ट्रेस में कुछ समय के लिए तनाव रहता है और शरीर पर लंबे समय के लिए कोई असर नहीं पड़ता है। किसी बात पर कुछ समय के लिए होने वाले तनाव को एक्‍यूट स्‍ट्रेस कहते हैं।

​स्‍ट्रेस दूर कैसे करें
खुद को शांत और डि-स्‍ट्रेस करने का सबसे आसान तरीका है मेडिटेशन करना। एक आरामदायक पोजीशन में बैठ जाएं और कुछ गहरी सांसें लें। आप म्‍यूजिक की मदद से भी अपना स्‍ट्रेस दूर कर सकती हैं।

​सेंधा नमक से लाभ
स्‍ट्रेस को दूर करने के लिए एप्सम सॉल्ट से नहाना भी फायदेमंद होता है। एप्सम सॉल्ट में मैग्नीशियम और सल्फेट होते हैं जो त्वचा के अंदर जाकर तंत्रिका तंत्र को आराम देने और मांसपेशियों में खिंचाव को कम करने में मदद करते हैं।

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