नई दिल्ली : आज शारदीय नवरात्रि की षष्ठी तिथि है. पूरे देश में शारदोत्सव चरम पर है. अष्टमी-नवमी तिथि की तैयारियां जोरों पर हैं. देश के सभी देवी माता मंदिरों में श्रद्धालुओं की भीड़ उमड़ रही है. उज्जैन का माता हरसिद्धि मंदिर भी ऐसा ही है, जहां रोजाना भक्तों की भीड़ उमड़ रही है. यह मंदिर देवी के शक्तिपीठों में से एक है. पौराणिक कथाओं के अनुसार यहां पर माता सती की दाएं हाथ की कोहनी गिरी थी. यह मंदिर इसलिए भी खास है क्योंकि उज्जैन में महाकाल मंदिर भी है. इस तरह एक ही शहर उज्जैन में भगवान शिव और माता शक्ति दोनों के स्थान हैं.
हरसिद्धि मंदिर के पास ही उज्जैन के राजा विक्रमादित्य का भी स्थान है. माता हरसिद्धि राजा विक्रमादित्य की आराध्य देवी थीं. इस हरसिद्धि माता मंदिर की एक महत्वपूर्ण खासियत यहां की दीप मालाएं हैं, जो कि 2000 साल पुरानी हैं. हरसिद्धि माता मंदिर के बाहर 1011 दीप माला हैं जो 51 फीट ऊंची हैं. मान्यता है कि इस मंदिर में मांगी गई मुराद जरूर पूरी होती है और मन्नत पूरी होने के बाद श्रद्धालु ये दीप प्रज्वलित कराते हैं.
इन दीपों को प्रज्वलित कराने के लिए श्रद्धालुओं की लंबी वेटिंग रहती है. कई महीने पहले से श्रद्धालु दीपमाला जलाने के लिए बुकिंग करवा देते हैं. इन दीपमाला को जलाने के लिए 1 दिन का करीब 15 हजार रुपए का खर्च आता है. ये 1011 दीपक जलाने के लिए 4 किलो रुई और 60 लीटर तेल की जरूरत होती है. वहीं इन ऊंचे-ऊंचे दीप स्तंभों पर बने दीपकों को जलाना भी आसान नहीं होता है. फिर भी 6 लोग मिलकर 5 मिनट में ये 1011 दीप प्रज्जवलित कर देते हैं.
शास्त्रों के अनुसार माता सती का विवाह भगवान शिव से हुआ था. लेकिन राजा दक्ष अपनी बेटी से विवाह से नाखुश थे और अपने अहंकार में भगवान शिव का अपमान करते रहते थे. एक दिन राजा दक्ष प्रजापति ने यज्ञ का आयोजन किया और उसमें सभी देवी-देवता को आमंत्रित किया लेकिन भगवान शिव को नहीं बुलाया. जब वहां पहुंचने पर माता सती को ये बात पता चली तो वे अपने पति शिव जी का अपमान नहीं सह पाईं और उन्होंने खुद को यज्ञ की अग्नि के हवाले कर दिया. जब भगवान शिव को ये पता चला तो वे क्रोधित हो गए और सती के मृत शरीर को हाथों में उठाकर पृथ्वी का चक्कर लगाने लगे.
शिव जी को रोकने के लिए भगवान विष्णु ने सुदर्शन चक्र चलाकर माता सती के अंग के 51 टुकड़े कर दिए. माना जाता है कि जहां-जहां माता सती के शरीर के टुकड़े गिरे, वहां-वहां शक्तिपीठों का निर्माण हुआ. उज्जैन में सती माता की कोहनी गिरी थी, जहां हरसिद्धि मंदिर है.